छत्तीसगढ़ के इन धार्मिक स्थलों का है एक अनूठा इतिहास, जाने

छत्तीसगढ़ भारत का एक राज्य है। छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य स्थित हैं। यह प्रदेश ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। यहाँ साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है। यहाँ सबसे ज्यादा मिस्रित वन पाया जाता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। यहाँ के लोकगीतों में विविधता है। गीत आकार में अमूमन छोटे और गेय होते है एवं गीतों का प्राणतत्व है -- भाव प्रवणता। छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में से कुछ हैं: भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डण्डा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत। इनमें से सुआ, करमा, डण्डा व पंथी गीत नाच के साथ गाये जाते हैं। छत्तीसगढ़ में बहुत से पर्यटन स्थल हैं। इनमें ढ़ेरों धार्मिक महत्व के हैं।

मां बम्लेश्वरी मंदिर

माँ बम्लेश्वरी देवी के मंदिर के लिये विख्यात डोंगरगढ एक ऎतिहासिक नगरी है। यहां माँ बम्लेश्वरी के दो मंदिर है। पहला एक हजार फीट पर स्थित है जो कि बडी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। मां बम्लेश्वरी के मंदिर मे प्रतिवर्ष नवरात्र के समय दो बार विराट मेला आयोजित किया जाता है जिसमे लाखो की संख्या मे दर्शनार्थी भाग लेते है। चारो ओर हरी-भरी पहाडियों, छोटे-बडे तालाबो एवं पश्चिम मे पनियाजोब जलाशय, उत्तर मे ढारा जलाशय तथा दक्षिण मे मडियान जलाशय से घिरा प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण स्थान है डोंगरगढ।

महामाया मदिर, बिलासपुर

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर के पूर्वी पहाडी पर प्राचिन महामाया देवी का मंदिर स्थित है। इन्ही महामाया या अम्बिका देवी के नाम पर जिला मुख्यालय का नामकरण अम्बिकापुर हुआ। एक मान्यता के अनुसार अम्बिकापुर स्थित महामाया मन्दिर में महामाया देवी का धड स्थित है इनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर के महामाया मन्दिर में है। इस मन्दिर का निर्माण महामाया रघुनाथ शरण सिहं देव ने कराया था। चैत्र व शारदीय नवरात्र में विशेष रूप अनगिनत भक्त इस मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते है।

दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों में स्तिथ है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्‍वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है । जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है। दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी का 52 वा शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। 51 शक्ति पीठों की जानकारी और शक्ति पीठों के निर्माण कि कहानी आप हमारे पिछले लेख 51 शक्ति पीठ में पढ़ सकते है। दंतेश्‍वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदीयों के संगम पर स्तिथ हैं। दंतेश्‍वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्ज़ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोति पहनकर ही मंदीर में जाना होगा।

चंद्रहासिनी देवी मंदिर, जांजगीर

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले के डभरा तहसील में मांड नदी,लात नदी और महानदी के संगम पर स्थित चन्द्रपुर जहाँ माँ चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है।यह सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्ति पीठ है।मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से जानी जाती है।माँ चंद्रहासिनी पर हम सभी का अपार श्रद्धा एवं विश्वास है।भक्त माता के दरबार में नारियल, अगरबत्ती, फूलमाला लेकर पूजा-अर्चना करके अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।माँ अपने बच्चों का नि:स्वार्थ भाव से सबकी मनोकामना पूर्ण करती है।यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालुजन अपना इच्छित कामना की पूर्ति करते हैं। माता पर भक्तों का आस्था की कोई सीमा नहीं है, उसकी प्रकार माँ की कृपा भक्तों पर इसकी भी कोई सीमा नहीं है।

बंजारी माता मंदिर, रायगढ़

यहां रावांभाठा स्थित मां बंजारी मंदिर प्रदेशभर में प्रसिद्ध है। करीब 500 साल पहले मुगलकालीन शासकों के जमाने में छोटा-सा मंदिर था, जो 40 साल पहले विशाल मंदिर के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ। बंजर धरती से प्रकट होने के कारण प्रतिमा बंजारी देवी के नाम से मशहूर हुई। देशभर में घूमने वाले बंजारा जाति के लोगों की देवी चूंकि बंजारी माता को माना जाता है, इसलिए इस मंदिर में बंजारे पूजा-अर्चना करते थे। कालांतर में मंदिर का नाम ही बंजारी मंदिर पड़ गया। बंजारी माता की मूर्ति बगुलामुखी रूप में होने से तांत्रिक पूजा के लिए विशेष मान्यता है। मंदिर में स्वर्ग-नरक के सुख और यातना को विविध मूर्तियों व पेंटिंग के माध्यम से दर्शाया गया है।

जतमई घटारानी, रायपुर

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर जतमई पहाड़ी पर माता जतमई मंदिर स्थित है, जिसे ‘जतमई घटारानी मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। माता जतमई को समर्पित इस अद्भुत मन्दिर की बहुत अधिक मान्यता है। अत्यंत आश्चर्यजनक बात यह कि जतमई पहाड़ी 200 मीटर क्षेत्र में फैली हुई है और 70 मीटर ऊँची है, और इसी पहाड़ी पर जतमई घटारानी का मंदिर ऊँचे जलप्रपात के किनारों पर स्थित है। यहाँ शिखर पर विशालकाय पत्थर एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार सटे हुए हैं, जैसे किसी शिल्पकार के द्वारा जमाये गये हों। घटारानी प्रपात तक पहुँचना आसान नहीं है, अतः पर्यटकों के लिए वहाँ तक पहुँचने के पर्याप्त साधन जुटाए गए हैं।

शिवानी माता मंदिर, कांकेर

यह मंदिर कांकेर शहर में स्थित है। इस मंदिर को शिवानी मां मंदिर कहा जाता है। देवी की मूर्ति उत्कृष्ट है। एक मिथक के अनुसार यह देवी दो माता देवी नाम काली माता और दुर्गा मा के संयोजन हैं। खड़ी और देवी काली का आधा हिस्सा और शेष आधे भाग देवी दुर्गा का है। इस प्रकार की प्रतिमा पूरी दुनिया में केवल दो संख्या है एक कोलकाता में है और दूसरा कांकर में है इस मंदिर में नवरात्रि और त्योहार गरमी से मनाया सभी धर्मों के लोगों को इस मंदिर में विश्वास है।

पाताल भैरवी मंदिर, राजनांदगाव

माँ पाताल भैरवी का मंदिर राजनांदगाँव में जी ई रोड पर स्थित है। जो बारफानी आश्रम के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक परंपराओं और संस्कृति को कायम रखने के उद्देश्य से स्थापित इस मंदिर में जमीन से 16 फिट नीचे वृत्ताकार गर्भगृह में विराजित माँ पाताल भैरवी की 15 फिट ऊची और 11 टन वजनी रौद्र रूपी प्रतिमा को देखकर श्रद्धालु अचंभित हो जाते है। आप मंदिर के शीर्ष पर 108 फिट का एक विशाल शिवलिंग को देख सकते हैं। जो श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। शिवलिंग के सामने एक विशाल नंदी प्रतिमा भी है। माँ पाताल भैरवी मंदिर तीन स्तरों पर फैल गया है। ऊपरी स्तर भगवान शिव का है, नीचे का स्तर त्रिपुरा सुंदरी या नवदुर्गा मंदिर है और गर्भगृह में माँ पाताल भैरवी मंदिर है। नवरात्रि में यहाँ आस्था का मेला लगता है। देशभर के कोने कोने से हजारों श्रद्धालु यहाँ जड़ी बूटी युक्त खीर का प्रसाद लेने आते है।

भोरमदेव मदिर

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में कबीरधाम से 18 कि॰मी॰ दूर तथा रायपुर से 125 कि॰मी॰ दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। मंदिर के चारो ओर मैकल पर्वतसमूह है जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं। यह मंदिर एक एतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा देवराय ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे जो कि शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा।

हाटकेश्वर मंदिर

छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर शहर से 5 किमी दूर, खारून नदी के किनारे हाटकेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर प्रमुख हिन्दू तीर्थ-स्थलों में से एक है। इस मंदिर के गर्भगृह में विराजित शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है। सन् 1402 में, कलचुरी राजा रामचन्द्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के शासनकाल में हाजीराज नाइक ने हाटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। बारीक नक़्क़ाशी से सुसज्जित इस भव्य मंदिर के आंतरिक और बाहरी कक्षों की शोभा देखते ही बनती है। इस मंदिर के मुख़्य आराध्य हाटकेश्वर महादेव नागर ब्राह्मणों के संरक्षक देवता (इष्ट देवता या कुल देवता) माने जाते हैं। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक, इस मंदिर में हाटकेश्वर महादेव के दर्शन करने प्रतिवर्ष हज़ारों की संख्या में श्रद्धालुजन देश के कोने-कोने से आते हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हाटकेश्वर महादेव मंदिर में महादेव घाट मेले का आयोजन होता है। यह मेला 20 दिनों तक लगता है। असंख्य भक्तजन इस मेले के दौरान हाटकेश्वर महादेव के दर्शन करने इस मंदिर में आते हैं।