अरब सागर की रानी - कोचीन

कोच्चि शहर, भूतपूर्व कोचीन, अरब सागर पर प्रमुख बंदरगाह, पश्चिम-मध्य केरल राज्य, दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित है। इसे पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है। कोच्चि एक अनूठा पर्यटन स्थल है और अपने जीवनकाल में इसे एक बार अवश्य देखना चाहिए। यह शानदार शहर भारत का प्रमुख बंदरगाह शहर है और यह अपने शक्तिशाली अरब सागर के पानी पर इठलाता है।

पूर्व में एक रियासत राज्य का नाम भी 'कोचीन' था, जो आजकल कभी-कभी एर्णाकुलम, मत्तनचेरी, फ़ोर्ट कोचीन, विलिंग्डन द्वीप, आइपिन द्वीप और गुंडू द्वीप को मिलाकर बनने वाले द्वीपों और कस्बों के समूह के लिए भी प्रयुक्त होता है। शहरी संकेद्रण में त्रिक्कारा, एलूरू, कलमस्सेरी और त्रिप्पुनिधुरा के इलाके शामिल हैं। नयनाभिराम अनूपों और पश्चजल के बीच बसे कोच्चि में काफ़ी बड़े स्तर पर पर्यटन व्यवसाय होता है। फोर्ट कोचीन में पुर्तग़ालियों द्वारा 1510 में बनाया गया सेंट फ्रांसिस चर्च है, जो भारतीय भूमि पर पहला यूरोपीय गिरजाघर होने के कारण विख्यात है, यहाँ कुछ समय के लिए वास्कोडिगामा को दफ़नाया गया था, बाद में उनके पार्थिव अवशेष पुर्तग़ाल ले जाए गए। अन्य गिरजाघरों के साथ ही यहाँ हिन्दू मंदिर, मस्जिदें और मत्तनचेरी का ऐतिहासिक सिनेगॉग (यहूदी उपासना गृह) विद्यमान हैं, चौथी शताब्दी में बसा कोच्चि का यहूदी समुदाय भारत में सबसे पुराना था, हालांकि हज़ारों सदस्यों में से लगभग सभी 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक इजराइल चले गए थे।

सांस्कृतिक इतिहास

कोच्चि केरल का तटवर्ती शहर है। इसको अरब सागर की रानी कहा जाता है। कोचीन मछुआरों का एक महत्त्वहीन सा गाँव था, बाद में अरब सागर के पश्चजल और घाटों से उतरने वाली जलधाराओं ने गाँव को मुख्यभूमि से अलग कर दिया, जिससे यह भूमिबद्ध बंदरगाह भारत के दक्षिण-पश्चिम तट के सर्वाधिक सुरक्षित बंदरगाहों में से एक बन गया। इस बंदरगाह को एक नया सामरिक महत्त्व मिला और यहाँ वाणिज्यिक समृद्धि आई, जब 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तग़ालियों ने हिन्द महासागर में प्रवेश किया और भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर पहुँचकर 1500 ई. में पुर्तग़ाली नाविक पेड्रो अल्वारेस कैब्रल ने भारतीय भूमि पर पहली यूरोपीय बस्ती की स्थापना कोचीन में की, भारत क समुद्री मार्ग को खोजने वाले वास्कोडिगामा ने 1502 ई. में पहली पुर्तग़ाली फैक्ट्री (व्यापार केंद्र) की स्थापना की और पुर्तग़ाली वाइसरॉय अलफ़ांसो-द-अल्बुकर्क ने वहाँ सन् 1503 ई. में पहला पुर्तग़ाली क़िला बनवाया। सन् 1663 ई. में डचों द्वारा जीते जाने तक यह शहर पुर्तग़ाली स्वामित्व में रहा। शहर में अब भी बहुत सा पुर्तग़ाली स्थापत्य विद्यमान है।

केरल का यह शहर औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियों का केन्द्र है। कोच्चि में हमें पुर्तग़ाली, यहूदी, ब्रिटिश, फ्रेंच, डच और चाइनीज संस्कृति का मिला जुला रूप देखने को मिलता है। कोच्चि का इतिहास पुर्तग़ालियों के आगमन से पूर्व स्पष्ट नहीं है। कोच्चि के इतिहास में पुर्तग़ालियों का आना अहम पड़ाव साबित हुआ। इन विदेशियों का स्वागत कोच्चि के राजाओं ने किया क्योंकि उन्हें कालीकट के जमोरिन की शत्रुता के कारण एक शक्तिशाली सहयोगी की तलाश थी। केशव राम वर्मा के शासनकाल में यहूदियों ने भी राजकीय संरक्षण प्राप्त किया। ये यहूदी मूल रूप से कोदनगलूर से व्यापार के उद्देश्य से आए थे। कोच्चि का बंदरगाह 17वीं शताब्दी में डच के अधीन हो गया था। आगे चलकर सन् 1795 ई. में कोच्चि पर अंग्रेज़ों ने अधिकार जमा लिया था जो भारत के आज़ादी के साथ ही मुक्‍त हुआ।

कैसे पहुंचें कोच्चि

वायुमार्ग


कोचीन का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो भारत के प्रमुख शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है। यहाँ एक हवाई अड्डा है, जहाँ से मुंबई, नई दिल्ली, बंगलोर और चेन्नई प्रमुख भारतीय शहरों के लिए उड़ाने हैं।

रेलमार्ग

एरनाकुलम में दो रेलवे स्टेशन हैं। एक उत्तर और दूसरा दक्षिण में है। यहाँ से कोच्चि जाने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएँ ली जा सकती हैं। एरनाकुलम भारत के अनेक शहरों से रेलगाड़ियों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

कोच्चि सड़क मार्ग से अनेक पर्यटन केन्द्रों और शहरों से जुड़ा हुआ है। बैंगलोर से कोच्चि की दूरी 565 किलोमीटर, कोयंबटूर से 223 किलोमीटर, मैसूर से 470 किलोमीटर, मद्रास से 694 किलोमीटर और गोवा से 848 किलोमीटर है। राज्य परिवहन निगम की बसें कोच्चि के लिए नियमित रूप से चलती हैं।