केरल का अनंतपुर मंदिर जो कासरगोड में स्थित है, यह केरल का एकमात्र झील मंदिर है। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि इस मंदिर की रखवाली एक ऐसा मगरमच्छ करता है जो कभी मांस का सेवन नहीं करता, जी हां ये मगरमच्छ पूर्ण रूप से शाकाहारी है। जानिए इस खास मंदिर के अद्भुत और अनोखे राज़।
‘बबिआ’ नाम के मगरमच्छ से फेमस इस मंदिर में यह भी मान्यता है कि जब इस झील में एक मगरमच्छ की मृत्यु होती है तो रहस्यमयी ढंग से दूसरा मगरमच्छ प्रकट हो जाता है। दो एकड़ की झील के बीचों-बीच बना यह मंदिर भगवान विष्णु (भगवान अनंत-पद्मनाभस्वामी) का है। मान्यता है कि मंदिर की झील में रहने वाला यह मगरमच्छ पूरी तरह शाकाहारी है और पुजारी इसके मुंह में प्रसाद डालकर इसका पेट भरते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि कितनी भी ज्यादा या कम बारिश होने पर झील के पानी का स्तर हमेशा एक-सा रहता है। यह मगरमच्छ अनंतपुर मंदिर की झील में करीब 60 सालों से रह रहा है। भगवान की पूजा के बाद भक्तों द्वारा चढ़ाया गया प्रसाद बबिआ को खिलाया जाता है। प्रसाद खिलाने की अनुमति सिर्फ मंदिर प्रबंधन के लोगों को है। मान्यता है कि यह मगरमच्छ पूरी तरह शाकाहारी है और प्रसाद इसके मुंह में डालकर खिलाया जाता है।
पौराणिक कथामाना जाता है कि इसी स्थान पर कभी दिवाकर मुनी विल्वामंगलम ( महान तुलु ब्राह्मण ऋषि ) ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एक बालक के रूप में दर्शन दिया। उस बालक के मुख से दिव्य रोशनी प्रकाशित हो रही थी। जिस वक्त दिवाकर मुनी ने उस दिव्य बालक को देखा तो वे काफी व्याकुल हो गए। उन्होंने बालक से पुछा कि 'तुम कौन हो' ? बालक ने कहा मैं मेरा नहीं है न पिता न माता न ही कोई घर बार। विल्वामंगलम ऋषि को बालक की बात सुन काफी दया आई और उन्होंने उस बालक को यहीं रहने के लिए कहा। पर बालक ने एक शर्त रखी कि अगर ऋषि उसके साथ दुर्व्यवहार करेंगे वे ये स्थान छोड़ चला जाएगा। दरअसल भगवान विष्णु ऋषि की परीक्षा लेना चाहते थे। उस बालक ने अपनी शरारतों से ऋषि को परेशान करना शुरू किया। एक दिन शरारतों से तंग आकर विल्वामंगलम ऋषि ने बालक को डांट लगा दी। बालक उसी क्षण अपनी शर्त अनुसार वह स्थान छोड़ चला गया। जाते-जाते बालक ने कहा कि अगर मुझे ढूंढने की इच्छा जगे तो आपको अनंथनकट (Ananthankat) आना होगा। कहते हैं ऋषि कहे स्थान पर बालक को ढूंढने गए जहां उन्हें साक्षात भगवान विष्णु के दर्शन हुए। वे समझ गए थे कि वो बालक और कोई नहीं बल्कि भगवान विष्णु थे।
मगरमच्छ शाकाहारी हैस्थानीय लोगों का कहना है कि मगरमच्छ शाकाहारी है और वह झील के अन्य जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाता। कहते है कि 1945 में एक अंग्रेज सिपाही ने तालाब में मगरमच्छ को गोरी मारकर मार डाला और अविश्वसनीय रूप से अगले ही दिन वही मगरमच्छ झील में तैरता मिला। कुछ ही दिनों बाद अंग्रेज सिपाही की सांप के काट लेने से मौत हो गई। लोग इसे सांपों के देवता अनंत का बदला मानते हैं। माना जाता है कि अगर आप भाग्यशाली हैं तो आज भी आपको इस मगरमच्छ के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के ट्रस्टी श्री रामचन्द्र भट्ट जी कहते हैं, “हमारा दृढ़ विश्वास है कि ये मगरमच्छ ईश्वर का दूत है और जब भी मंदिर प्रांगण में या उसके आसपास कुछ भी अनुचित होने जा रहा होता है तो यह मगरमच्छ हमें सूचित कर देता है”।
मूर्तियां धातु या पत्थर की नहीं बल्कि 70 से ज्यादा औषधियों की सामग्री से बनी हैं इस मंदिर की मूर्तियां धातु या पत्थर की नहीं बल्कि 70 से ज्यादा औषधियों की सामग्री से बनी हैं। इस प्रकार की मूर्तियों को ‘कादु शर्करा योगं’ के नाम से जाना जाता है। हालांकि, 1972 में इन मूर्तियों को पंचलौह धातु की मूर्तियों से बदल दिया गया था, लेकिन अब इन्हें दोबारा ‘कादु शर्करा योगं’ के रूप में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनंत-पद्मनाभस्वामी का मूल स्थान है। स्थानीय लोगों का विश्वास है की भगवान यहीं आकर स्थापित हुए थे।
अनंतपुर मंदिर केरल के कासरगोड जिले में स्थित है जहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी हवाईअड्डा कोच्चि है जो जिले से लगभग 200 किमी की दूर पर स्थित है। रेल मार्ग के लिए आप कासरगोड रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। कासरगोड के अलावा आप जिले के त्रिकिपुर, चेरुवथुर, नीलेश्वर, कान्हागढ़ कुम्बला, अपप्ला और मंजेश्वर आदि स्थानों से भी रेल सेवा ले सकते हैं। आप चाहें तो यहां सड़क मार्ग से भी आ सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों से कासरगोड राज्य के मुख्य शहरों से अच्छी तरह हुआ है।