श्राद्ध पक्ष जारी हैं जो कि 10 सितंबर से शुरू हुआ और 25 सितंबर तक जारी रहने वाला हैं। 25 सितंबर को अमावस्या के दिन अंतिम श्राद्ध किया जाना हैं। हिन्दू धर्म में सनातन काल से पूर्वजों के आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान किए जाते हैं। प्रत्येक हिंदू का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह मृत परिवार के सदस्यों का सम्मान करें और आत्मा को मुक्त करने और उन्हें शांति देने के लिए पिंडदान करे। पूर्वजों के निमित लोग इसे अपने घर पर करते हैं। लेकिन देश में कुछ जगहें ऐसी पवित्र बताई गई हैं जहां पिंड दान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। व्यक्ति के मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को यहां ले जाकर पिंड दान करने का अपना विशेष महत्व होता हैं। आइये जानते हैं इन जगहों के बारे में...
# वाराणसीवाराणसी भारत की सबसे पवित्र नदियों के किनारे स्थित है, इस शहर को भारत के सबसे टॉप तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। इस जगह पर हर दिन लाखों भक्त भगवान शिव के दर्शन करने और अंतिम संस्कार करने के लिए यहां आते हैं। गंगा घाट पर पिंड दान समारोह आयोजित करने की प्रथा है, जहां स्थानीय ब्राह्मण पंडित अनुष्ठान शुरू करते हैं जिसमें मंत्र जप और फिर पिंड का प्रसाद होता है। पूजा में गेहूं के आटे, दूध और शहद के साथ चावल शामिल होते हैं। इसके अलावा गंगा नदी में डुबकी लगाने से सभी पाप भी धुल जाते हैं।
# उज्जैनमहाकाल की नगरी उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे पिंडदान करवाया जाता है। पूर्वजों की मोक्ष प्राप्ति की पूजा करवाने के बाद बाबा महाकाल के दर्शन करना न भूलें, महाकाल बारहवे ज्योतिर्लिंग हैं। उज्जैन के पास में ओंकारेश्वर और महेश्वर जैसी जगह हैं जहां नर्मदा नदी है।
# बद्रीनाथ उत्तराखंड के बद्रीनाथ में ब्रह्माकपाल पर पिंडदान किया जा सकता है। कहते हैं कि यहां पर पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को नरकलोक से मुक्ति मिल जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार ब्रह्मकपाल का पिंडदान गया से आठ गुणा अधिक फलदायी श्राद्ध तीर्थ है। इसी स्थान पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए शिव जी ने भी प्रायश्चित किया था।
# गयागया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग में वास करते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस जगह का वर्णन रामायण और महाभारत दोनों में गयापुरी के रूप में किया गया है। कहते हैं कि बिहार के लगभग हर लोग बोध गया में ही पिंड दान के लिए जाते हैं। यहां 20 से अधिक जगह हैं, जहां पिंड दान किया जाता है। यहां पिंड दान करने के बाद आप महाबोधि मंदिर, ब्रह्मयोनि हिल आदि भी जा सकते हैं।
# कुरुक्षेत्रउत्तर भारत में हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर में स्थित सन्निहित सरोवर है और झील को सात पवित्र नदियों के संगम का स्थान माना जाता है। भक्त दिवंगत के पिंडदान समारोह के लिए यहां पहुंचते हैं और पानी में डुबकी लगाते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं। यही नहीं पूर्वजों की आत्मा और उनके नाम के चावल की बॉल्स बनाकर उन्हें अर्पित करते हैं। समारोह आयोजित करने से आत्मा को शांति और वंशजों को मन की शांति मिलती है।
# पुष्करमाना जाता है कि राजस्थान के पुष्कर में पवित्र झील भगवान विष्णु की नाभि से निकली थी और कुछ के अनुसार, ये तब अस्तित्व में आई जब भगवान ब्रह्मा ने यहां कमल का फूल गिराया था। झील और स्नान वाली जगह के चारों ओर 52 घाट हैं जहां भक्त आमतौर पर अश्विन के पवित्र महीने के दौरान आयोजित पिंड दान समारोह में शामिल होते हैं।
# हरिद्वारइसके अतिरिक्त हरिद्वार भी पिंडदान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। हरिद्वार में नारायणी शिला पर पिंडदान का महात्म्य बताया जाता है। इसीलिए पितृ पक्ष में हरिद्वार में भी बहुत से लोग आकर अपने पुरखों के लिए पिंडदान करते हैं। जहां हरिद्वार की गंगा में डुबकी लगाने ने पाप से मुक्ति मिलती है वहीं यहां पिंडदान करने से पित्तरों को मोक्ष मिलता है। साथ ही घर परिवार में सुख-शांति आती है।
# प्रयागराज गंगा-यमुना और सरस्वती नदी के संगम तट पर स्थित प्रयागराज पिंड दान करने के लिए एक पवित्र जगह है। इस जगह को लेकर यह धारणा है कि नदियों के संगम तट पर जो भी अपने पूर्वजों का पिंड दान करता है उसे एक गुना नहीं बल्कि दस गुना पुण्य मिलता है। एक अन्य मान्यता है कि यहां मौजूद त्रिवेणी संगम में स्नान करने मात्र से जीवन के सभी पाप अपने आप धुल जाते हैं। ऐसे में अगर आप प्रयागराज में पिंड दान करने के लिए जाना चाहते हैं तो त्रिवेणी संगम तट पर जा सकते हैं।
# मथुरामथुरा एक पवित्र तीर्थ शहर है और पिंड दान समारोहों के लिए पसंदीदा स्थानों में से एक है। ये आमतौर पर यमुना नदी के तट पर विश्रंति तीर्थ, बोधिनी तीर्थ या वायु तीर्थ में आयोजित किए जाते हैं। सात पिंड या चावल के गोल आकार की गेंदे बनाकर, शहद और दूध के साथ मिलाकर मृतक और पूर्वजों की आत्मा को प्रसाद के रूप में देने के लिए तैयार किए जाते हैं और इन्हें मंत्रों के जाप के लिए चढ़ाया जाता है।