Ganesh Chaturthi 2018 : महाराष्ट्र के इन मंदिरों में है गणपति का वास, गणेश चतुर्थी पर होता है विशेष आयोजन

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्रीगणेश का जन्म हुआ था और उसी उपलक्ष्य में गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मनाया जाता हैं। माना जाता है कि इस दिन श्री गणेश धरती पर आते हैं और भक्तों के दुखों को दूर करते हैं। गणेश चतुर्थी का यह पर्व पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं, लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व को देखने का अपना ही मजा हैं। आज इस गणेश चतुर्थी के पर्व पर हम आपको महाराष्ट्र के कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो बहुत प्रसिद्द हैं और वहाँ गणपति का वास माना जाता हैं। तो आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में।

* मनचे गणपति, मनचे पुणे

महाराष्ट्र का शहर पुणे जितना खूबसूरत है, उतना ही धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां मौजूद 5 मनचे गणपति का काफी महत्व है। इन्हें गणपति का जन्म स्थल माना जाता है। 5 मनचे गणपति अलग-अलग जगहों पर स्थित हैं।

* अष्टविनायक मंदिर, अष्टविनायक

अष्टविनायक से अभिप्राय है- आठ गणपति। पुणे के नजदीक स्थित ये 8 मंदिर दरअसल, प्राचीन मंदिर हैं, इसलिए खास महत्व है। इन्हें 8 शक्तिपीठ भी कहा जाता है। अष्टविनायक के ये आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। इन मंदिरों का पौराणिक महत्व और इतिहास है। इन मंदिरों में स्थापित मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि ये सभी मूर्तियां खुद प्रगट हुई थीं। इसलिए इन्हें स्वयंभू भी कहा जाता है। इनका उल्लेख मुद्गल पुराण में भी है।

* सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई

सिद्धिविनायक मंदिर गणपति का सबसे लोकप्रिय मंदिर है और उनका सिद्धिविनायक भी उनके भक्तों को सबसे ज्यादा प्रिय है। गणेश जी के जिन मूर्तियों में सूड़ दाईं ओर मुड़ी होती है वह सिद्धिपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्धिविनायक मंदिर कहलाते हैं। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है। वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

* दगड़ूसेठ हलवाई, पुणे

दगड़ू सेठ हलवाई गणपति मंदिर महराष्ट्र के पुणे स्थित है। यह महाराष्ट्र का दूसरा सबसे मशहूर और लोकप्रिय गणेश मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण बड़ी ही खूबसूरती से किया गया है। भगवान गणेश की 7।5 फीट ऊंची है और 4 फीट चौड़ी है। इस मूर्ति को सजाने में 8 किलोग्राम सोना लगा है।

* दशाभुज मंदिर, पुणे

दशाभुज मंदिर पुणे के कारवे रोड पर स्थित है। दरअसल, गणपति के इस रूप के पीछे एक प्रचलित कहानी है। मान्यता के अनुसार आदिकाल में जब ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर रहे थे, तभी मधु-कैटभ नाम के एक असुर ने उनके काम में रुकावट डालनी शुरू कर दी और वह सृष्टि का नाश करने लगा। भगवती कैटभी और भगवान मधुसूदन ने इसका संहार कर दिया। लेकिन इसके बाद गणासुर, रुद्र केतु और उसके पुत्र नारांतक ने सृष्टि को नष्ट करना शुरू कर दिया। देवों में त्राहिमाम मच गया और वह उन्होंने अपनी रक्षा के लिए महादुर्गा की अराधना की। महादुर्गा ने देवों की रक्षा के लिए सुरभि के गोबर से दशभुजा गणेश का निर्माण किया और उन्हें अपना वाहन सिंह प्रदान कर अपने अस्त्र-शस्त्र भी सौंप दिए। दशभुजा गणेश ने सभी दानवों का नाश कर दिया। दैत्यों का अंत कर गणपति ‘दशभुजा आदिदेव गणपति’ कहलाए।