हमारे देश में सर्व पंथ समादर का भाव है जिसके चलते हर धर्म के धार्मिक स्थलों को देश की एकता के लिए जाना जाता है। ऐसा ही एक है 'स्वर्ण मंदिर' जहाँ पर हर धर्म के लोग अपना शीश नवाते है और आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचते हैं। देशभर में ऐसे कई गुरूद्वारे हैं जो पूरी दुनिया में अपनी विशेषता के चलते बहुत प्रसिद्द हैं और हर दिन यहाँ कई सैलानी दर्शन करने के लिए पहुँचते हैं। तो आइये जानते है देश के इन प्रसिद्द गुरूद्वारे के बारे में।
* तख्त श्री पटना साहिब सिख धर्म के लोग तख्त श्री पटना साहिब को गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म स्थान मानते हैं इसलिए यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण गुरुद्वारों में से एक है। गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अन्तिम गुरू थे। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म स्थान होने के अतिरिक्त, पटना साहिब दुनिया भर के सिखों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि गुरु तेग बहादुर भी पटना गए थे और उसी जगह पर ठहरे थे।
* गुरुद्वारा श्री केश्घर साहिब गुरुद्वारा श्री केश्घर साहिब, पंजाब के आनंदपुर शहर में है। कहा जाता है कि आनंदपुर शहर की स्थापना सिखों के 9वें गुरू तेग बहादुर ने की थी। साथ ही यह गुरुद्वारा सिख धर्म के खास 5 तख्तों में से एक है। इसी कारणों से इस गुरुद्वारे को बहुत ही खास माना जाता है।
* गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब सिंह ‘गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब सिंह’ को ‘श्री दरबार साहिब’ और ‘स्वर्ण मंदिर’ भी कहते हैं। गुरुद्वारे को बचाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह जी ने गुरुद्वारे का ऊपरी हिस्सा सोने से ढँक दिया। इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर का नाम भी दिया गया है। यह अमृतसर, पंजाब में स्थित है। यह सिखों का सबसे प्रमुख तीर्थ माना जाता है। इस मंदिर के चार दरवाज़े इस बात का प्रतीक हैं कि यह सभी धर्म और आस्था के लोगों के लिए खुला है।
* गुरुद्वारा बंगला साहिब मध्य दिल्ली में स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब के रुप में मौजूद जगह पहले राजा जय सिंह की थी, जिसे बाद में गुरु हरकिशन जी की याद में एक गुरुद्वारे में तब्दील कर दिया गया। शुरुआती दिनों में इसे जयसिंहपुरा पैलेस कहा जाता था, जो बाद में बंगला साहिब के नाम से मशहूर हुआ। यह बँगला गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान से भी गहरे तक जुड़ा हुआ है।
* सीस गंज गुरुद्वारा यह दिल्ली का सबसे पुराना और ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। यह गुरु तेग बहादुर और उनके अनुयायियों को समर्पित है। इसी जगह गुरू तेग बहादुर को मौत की सजा दी गई थी, जब उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब के इस्लाम धर्म को अपनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। यह गुरूद्वारा 1930 में बनाया गया था, इस जगह अभी भी एक ट्रंक रखा है, जिससे गुरू जी को मौत के घाट उतार दिया गया था।