कृष्ण लीलाओं की कहानी बयां करते हैं वृंदावन के ये 10 खूबसूरत घाट, आपकी यात्रा को बनाएंगे आनंदमय

भगवान कृष्ण की बात करते ही उनकी लीलाएं जहन में घूमने लगती हैं और इन लीलाओं को आज भी जीवंत करती हैं वृंदावन नगरी। यमुना नदी के किनारे बसे वृंदावन में भगवान कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था। जिसके चलते वृंदावन को अनगिनत कृष्ण लीलाओं का गवाह माना जाता है। वृंदावन के घाट भी कृष्ण लीलाओं की कहानी बयां करते हैं। हांलाकि वृंदावन में भगवान की लीलाओं का बखान करने वाले 38 घाटों में से अधिकतर घाट अपना अस्तित्व भी खो चुके हैं। जो घाट बचे हैं, वो अपने अस्तित्व से जूझ रहे हैं। आज इस कड़ी में हम आपको वृंदावन के कुछ प्रमुख घाट के बारे में बताने जा रहे हैं जहां जाना आपकी यात्रा को आनंदमय बनाने का काम करेगा। आइये जानते हैं इन घाट के बारे में...

केशी घाट

बता दें केशी घाट वृंदावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमर घाट के समीप स्थित है। वर्तमान समय में यह घाट नगर के प्रमुख घाट के रूप में है और अपना अस्तित्व बचा पाने में सक्षम है। इससे जुड़े पौराणिक उल्लेख के अनुसार कंस ने केशी नामक दानव को भगवान श्रीकृष्ण का वध करने भेजा, जो घोड़े के रूप में यमुना किनारे पहुंचा। मगर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध कर दिया। इस घटना के बाद से ही इस घाट का नाम केशी घाट पड़ गया। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से गया में किए गए पिंडदान के समान फल मिलता हैं।

कालीय मर्दन घाट

भगवान श्रीकृष्ण जब अपने सखाओं के साथ यमुना किनारे खेल रहे थे तो उनकी गेंद यमुना में पहुंच गई। उस समय यमुना में कालीय नाग ने यमुना जल को विषैला कर रखा था। कोई भी यहा यमुना में नहीं उतरता था। भगवान को तो अपनी लीला करनी थी। गेंद लाने के बहाने यमुना में छलाग लगा दी। सखाओं में हड़कंप मच गया। मैया यशोदा और नंदबाबा बेचैन थे। मगर कुछ ही देर में भगवान श्रीकृष्ण ने कालीय मर्दन कर उसे यमुना से चले जाने पर मजबूर कर दिया और कालीय नाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना से बाहर निकले। तब से इस घाट का नाम कालीय मर्दन घाट पड़ गया। यह वाराह घाट से लगभग आधे मील उत्तर में अवस्थित है। इस घाट का निर्माण होल्कर राव ने कराया था।

चीर घाट

वृंदावन में स्थित चीर घाट भगवान कृष्ण के चीर चुराने की लीला का प्रतीक है। मान्यताओं के अनुसार यमुना नदी के इसी घाट पर भगवान कृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुराए थे। कहा जाता है कि अपनी इस लीला से भगवान गोपियों को, बिना वस्त्र पहने नदी में न नहाने का संदेश देना चाहते थे। क्योंकि मान्यता के अनुसार नदी में बिना वस्त्र पहने नहाने से वरुण दोष लगता है। वहीं चीर घाट के किनारे भगवान कृष्ण का नृत्यगोपाल मंदिर भी उपस्थित है।

धीर समीर घाट

धीर समीर घाट केशीघाट से पूर्व दिशा में स्थित है। यहां की मान्यताओं के अनुसार यहां वृंदा देवी की अनेक लीलाओं का उल्लेख है। तो वहीं यहीं पर श्रीकृष्ण की राधा जी के प्रति व्याकुल मिलन की उत्कंठा देखकर वृंदा देवी बेहोश हो गईं। भगवान श्रीकृष्ण की उत्कंठा देख राधा जी भी तुरंत वृंदा देवी के साथ आई जिसके बाद प्रिया-प्रियतम मिलन देख सखिया प्रसन्न हो गई। कहा जाता है इसलिए ही इस घाट का नाम धीर समीर रखा गया।

सूरज घाट

इस घाट को द्वादश या आदित्य घाट के नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण को कालीय नाग दमन के बाद ठंड लगने लगी। तब भगवान सूर्यदेव ने प्रखर तेज से श्रीकृष्ण को गर्माहट दी। तब श्रीकृष्ण को कुछ गर्माहट मिली और उनको पसीना आने लगा। यहां श्रीकृष्ण का पसीना यमुना में जाकर मिल गया। तब से मान्यता है कि इस घाट पर स्नान करने वालों के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पाच सौ साल पहले सनातन गोस्वामी इसी टीले पर ठा। मदन मोहन जी की सेवा करते थे। मंदिर अभी भी इसी आदित्य टीले पर बना हुआ है।

बिहार घाट

वृंदावन का बिहार घाट भी भगवान कृष्ण की कई लीलाओं का गवाह माना जाता है। मान्यता है कि बचपन में गाय चराने के दौरान कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और अन्य ग्वाल-वालों के साथ इसी घाट पर बैठकर भोजन किया करते हैं। वहीं इस घाट के किनारे कृष्ण ने कई लीलाएं भी रचाई थीं।

युगल घाट

सूरज घाट के उत्तर में युगल घाट अवस्थित है। इस घाट पर ठा। युगल बिहारी का प्राचीन मंदिर शिखर विहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक ओर जुगल किशोर का मंदिर है। मान्यता है कि यहा गोपियों ने भगवान के प्रेम में उन्मुक्त होकर लीला गायन किया, इसलिए इस घाट का नाम युगल घाट पड़ गया। यहा स्थित युगल बिहारी मंदिर का निर्माण 1680 में राजा प्रतापादित्य के चाचा बसंत राय ने कराया। ग्राउस की पुस्तक में इस घाट के निर्माण का उल्लेख हरिदास व गोविंद दास ठाकुर के नाम से भी मिलता है।

गोविंद घाट

वृंदावन का गोविंद घाट अपने महारास के लिए विश्वभर मे विख्यात है। पौराणिक कहानियों के अनुसार गोपियों द्वारा महारास का आयोजन करने पर भगवान कृष्ण इसी घाट पर प्रकट हुए थे। जिसके बाद इस घाट को गोविंद घाट कहा जाने लगा। आज भी इस घाट पर साल भर रास लीलाएं की जाती हैं।

वंशीवट घाट

यमुना किनारे पर स्थित घाट को वंशीघाट के नाम से जाना जाता है। कहा जता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधा जी व गोपियों संग जिस भूमि पर महारास किया तो वंशीवट घाट है। चूंकि भगवान की बासुरी से निकले स्वरों से मुग्ध होकर राधाजी व गोपिया रातभर महारास करती रहीं, इसके चलते वंशीवट ऐसा कहा जाता है कि आज भी भगवान के महारास की गाथा गा रहा है।

पानी घाट

इस घाट का नाम पाणि घाट है। भाषा अपभ्रंश के चलते इसे अब पानी घाट के नाम से जाना जाता है। उल्लेख है कि एक बार दुर्वासा मुनि को भोजन कराने को गोपिया यमुना पार जा रही थीं। गोपियों ने श्रीकृष्ण से यमुना पार जाने का उपाय पूछा तो भगवान ने कहा कि यमुना से कह दो कि हमने अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया है, लिहाजा उस तप के बल से रास्ता दे दो। गोपियों ने हंसते हुए ऐसे ही प्रार्थना कर दी और यमुनाजी खाली हो गईं, गोपिया पार चली गईं। शाम को जब गोपिया वापस आईं तो उन्होंने दुर्वासा मुनि से प्रश्न किया। मुनि के बताए ज्ञान के बाद गोपिया पुन लौट आईं और यमुना भी अपने रूप में आ गई। तब से इस घाट का नाम पानी घाट पड़ गया।