थायराइड एक ऐसा रोग है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। अगर आपके परिवार में पहले से ही किसी भी व्यक्ति को थायराइड है, तब भी इसके आगे की पीढ़ी के लोगों में होने की संभावना बढ़ जाती है। इस बात को लेकर चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है समय रहते इलाज शुरू कर दीजिए और अपनी दिनचर्या में बदलाव कर योग और उचित खानपान के द्वारा इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। सबसे पहले जरूरी है इसके लक्षणों को अनदेखा ना करें क्यों कि जितनी जल्दी इसका इलाज शुरू होगा उतनी जल्दी इस पर रोक लगाई जा सकती है। थायराइड का एक कारण आनुवांशिक लक्षण हैं। इसीलिए जल्द से जल्द जांच के बाद ही एक सफल इलाज संभव है।
थायराइड से घबराने की जरूरत नहीं अगर इसके लक्षणों के पता लगने के तुरंत बाद आप इलाज शुरू करा देते हैं तो इससे ठीक होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। इसके लिए सही समय पर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से जांच करवा लेनी चाहिए। जीवनशैली में कुछ बदलाव, नियमित दवाओं से सेवन और योग, व्यायाम के माध्यम से थायराइड को नियंत्रित और गंभीर स्तर तक ले जाने से रोका जा सकता है।
थायराइड में महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर प्रभावथायराइड की समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा रहती है और ऐसे में इसका महिलाओं के प्रजनन क्षमता पर भी काफी प्रभाव पड़ता है। कई महिलाओं में आकंशा बनी रहती है कि वो थायराइड के बाद मां बन सकती हैं या नहीं थायराइड ग्रंथी ट्राईआयोडोथायरोनिन और थायरोक्सिन नामक हार्मोन का उत्पादन करती है जो कि भ्रूण के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं और इसीलिए महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच कराना आवश्यक है।
थाइराइड में गर्भधारण कब कर सकते हैंथाइराइड़ के सफल इलाज के बाद तो महिला गर्भ धारण कर सकती है पर थायराइड की समस्या के बाद कोई महिला गर्भधारण के बारे में सोच रही है तो पहले उसे डॉक्टर से सलाह लेना आवश्यक है आपकी थायराइड की फैमली हिस्ट्री क्या है, खून में थायराइज हार्मोन की मात्रा कितनी है डॉक्टर को ये सारी जानकारी आपको देनी होगी साथ ही डॉक्टर आपको सीरम टीएसएच टेस्ट के लिए भी कह सकते हैं। इससे रक्त में थायराइड के हार्मोन की मात्रा का भी पता लगाया जा सकेगा।
थायराइड में गर्भधारण हो गया हो तबथायराइड में गर्भधारण करने की सलाह डॉक्टर नहीं देते पर फिर भी यदि गर्भधारण हो गया है तो सबसे पहले डॉक्टर के पास जा कर परामर्श लेना चाहिए। थायरइड हार्मोन का कम होने यानी हाइपोथायराइड की स्थिति में डॉक्टर लिवोथायरोक्सिन दे सकते हैं वहीं, हाइपरथायराडिज्म की स्थिति में डॉक्टर प्रोपिलिथिओरासिल और मेथिमाजोल जैसी दवाएं दे सकते हैं पर फिर भी एक स्वस्थ्य बच्चे को जन्म देने के लिए कोशिश यही करनी चाहिए कि अगर आप थायराइड की समस्या के ग्रसित हैं तो फिर गर्भधारण तभी करें जब बिमारी कंट्रोल हो जाए।
गर्भावस्था के दौरान हाइपरथायरॉयडिज्म रोग होने के कारणगर्भावस्था में आमतौर पर यह बीमारी ग्रेव्स रोग की वजह से होती है। ग्रेव्स की बीमारी में आमतौर पर आप थकान को काफी महसूस करते हैं और आपकी आंखें भी बाहर की तरफ आ जाती है। यह आपकी प्रतिरक्षा तंत्र की समस्या होती है। इस समस्या में आप की प्रतिरक्षा प्रणाली इस तरह के एंटीबॉडीज को विकसित करना शुरू करती है जिसकी वजह से थायरॉयड ग्रंथि ज्यादा मात्रा में थायरॉयड हार्मोन बनाना शुरू करने लगती है। थायरॉयड को बढ़ाने वाले इन एंटीबॉडी को पीएसआई भी कहते हैंयह रोग गर्भावस्था के समय हो सकता है।
यदि गर्भवती महिला को यह बीमारी पहले से हो तो वह इसके लक्षणों से निपटने के लिए दूसरे और तीसरे महीने में ही इलाज भी करा सकती है। बच्चा पैदा होने के बाद आने वाले कुछ महीनों में जब महिलाओं के शरीर का पीएसआई लेवल बढ़ जाता है तो ग्रेव्स की बीमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है। इसके लिए डॉक्टर हर महीने परीक्षण करते हैं और इनके आधार पर इस बीमारी का इलाज किया जाता है। थायरॉयड की ज्यादा मात्रा गर्भवती महिला और उसके शिशु की सेहत के लिए खराब मानी जाती है। हाइपरथायरॉयडिज्म के कुछ मामलों में महिला को उल्टियां आना या फिर जी मिचलाना जैसी दिक्कतें आ सकती हैं। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं का थायरॉयड में वजन कम होना आम होता है और उनके शरीर में पानी की भी कमी हो जाती है।
गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरॉयडिज्म के कारणगर्भावस्था में हाइपोथायरॉयडिज्म मुख्य तौर पर हाशिमोटो रोग की वजह से होता है। गर्भधारण करने वाली 100 में से दो से तीन महिलाओं में ही यह रोग होता है। हाशिमोटो रोग एक प्रकार का प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी विकार है। हाशिमोटो की बीमारी में प्रतिरक्षा तंत्र इस तरह के एंटीबॉडीज बनाता है जो थायरॉयड ग्रंथि पर सीधा हमला करते हैं जिससे कि इस ग्रंथि में सूजन आ जाती है। इस वजह से यह ग्रंथि थायरॉयड हार्मोन को बनाने में कम सक्रिय हो जाती है।
गर्भावस्था में थायरॉयड से बच्चे पर होने वाले असरगर्भावस्था के समय होने वाला थायरॉयड आपऔर आपके बच्चे पर असर डाल सकता है। हाइपरथायरॉयडिज्म और हाइपोथायरॉयडिज्म यह दोनों ही ऐसी स्थितियां है जो आप या आपके बच्चे पर असर डालती हैं। जानने की कोशिश करते हैं ऐसी स्थिति में बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है:
—समय से पहले शिशु का जन्म
—जन्म के दौरान शिशु के वजन का कम होना
—गर्भधारण के आखिरी चरण में मां के रक्तचाप में तेजी से वृद्धि होना
—थायरॉयड संबंधी गंभीर स्थिति उत्पन्न होना
—दिल का काम करना बंद करना
—दिल की धड़कन तेज होना और दिल का सही से काम ना करना
—बच्चे के सिर पर नरम स्थान होना
—जन्म के बाद बच्चे में चिड़चिड़ापन होना
—बच्चे की सांस की नली पर दबाव पड़ना जिससे कि बच्चे को सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है।
गर्भावस्था में हाइपरथायरॉयडिज्म का इलाजमहिलाओं में थायरॉयड के साइड इफेक्ट कई हैं। अगर आप की स्थिति काफी गंभीर है तो डॉक्टर आपको एंटीथायरॉयड दवा देंगे। इन दवाओं की वजह से आपकी थायरॉयड ग्रंथि कम थायरॉयड हार्मोन का निर्माण करती है। इस तरह से आपका बढ़ा हुआ थायरॉयड हार्मोन शिशु के खून में नहीं जा पाता। ऐसा करने के लिए आपको किसी विशेषज्ञ के पास जाना होता है। यह विशेषज्ञ आप की स्थिति की सही से जांच करेंगे और उचित दवा दे पाएंगे।इलाज के लिए विशेषज्ञ के पास ही जाना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि इसमें कहीं इस तरह की दवाई होती हैं जो बच्चे के लिए काफी खतरनाक हो सकती हैं। कई गर्भवती महिलाओं को तीसरी तिमाही तक थायरॉयड मेडिसिन लेने की आवश्यकता नहीं होती है। आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि महिलाओं में थायरॉयड कितनी होना चाहिए ताकि जब यह बढ़े तो आप तुरंत डॉक्टर के पास परमर्श के लिए जाएँ।
गर्भावस्था में हाइपोथायरॉयडिज्म का इलाजइस अवस्था में हार्मोन की मात्रा को बढ़ाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए महिला को कुछ दवाई दी जाती है। यह टी3 की तरह होती है। थायरॉयड में टी3 और टी4 दो प्रकार के हार्मोन का निर्माण होता है जिन का कार्य मेटाबॉलिज्म को सही करना होता है। डॉक्टर जिन दवाइयों को देता है वह बच्चे के लिए सुरक्षित होती हैं। इसके साथ ही जब तक बच्चे में खुद से थायरॉयड हार्मोन नहीं बनता है तब तक यह दवाई फायदेमंद मानी जाती है।
गर्भधारण के दौरान कैसे करें थायराइड को कंट्रोल- गर्भधारण के दौरान थायराइड के ग्रसित महिला को दवा तो नियमित लेना ही चाहिए इसके अलावा आपको तनाव से भी दूर रहना होगा। तनाव से मरीज का कोर्टिसोल नामक हार्मोन बढ़ जाता है और ये थायराइड ग्रंथि को हार्मोन रिलीज करने से रोकता है।
- वहीं गर्भावस्था में महिलाओं को हल्के व्यायाम और योग करते रहना चाहिए। योग और व्यायाम से थायराइड हार्मोन को संतुलित रखा जा सकता है जिससे गर्भावस्था के दौरान थायराइड पर कंट्रोल किया जा सकता है।
- गर्भावस्था के दौरान महिला को खाने में चीनी, रिफाइंड तेल और चाय का सेवन कम करना चाहिए।