कोरोना : बचाव के उपायों के साथ-साथ सकारात्मकता बेहद जरूरी, चिंता नहीं, योग करें

देश इस समय वैश्विक महामारी कोरोना का दंश झेल रहा है। ऐसे में लॉकडाउन का प्रयोग करना पड़ा। हालांकि अब लोग घरों से बाहर निकलना शुरू कर चुके हैं, पर कोरोना के मामले दिन-ब-दिन तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहे हैं। लॉकडाउन ने हम सभी को यह सिखा दिया है कि बीमारी के संपर्क में आने से बड़ा डर है, भूखे पेट मरने का डर। लोग अपने काम पर लौट रहे हैं।

इसका यह मतलब नहीं है कि अब कोरोना का डर उनमें नहीं है या अब कोरोना घातक नहीं रह गया है। कोरोना अब भी उतना ही ख़तरनाक है। यही कारण है कि जिन लोगों को बाहर निकलना पड़ रहा है ख़ुद वे और उनके परिवार वाले काफ़ी स्ट्रेस में रहते हैं। एक बात तो साफ़ है, हमें फ़िलहाल तो इस बीमारी के साथ ही रहना होगा।

सुरक्षा के विभिन्न उपायों के साथ बाहर निकलना नया नॉर्म है जो विशेषज्ञों की मानें तो लंबे समय तक चलने वाला है। अगर हमें कोरोना से सही मायने में बचना है तो अपनी बाहरी सुरक्षा के साथ-साथ दिमाग़ी सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। यह दिमाग़ी सुरक्षा है स्ट्रेस से मुक्ति। और यह काम होगा योग से।

पिछले कुछ महीनों में बढ़ा है तनाव

कोविड-19 ने लोगों में चिंता और तनाव को बढ़ा दिया है। भले ही हम अनलॉक होने की तरफ़ बढ़ रहे हैं, पर अब भी चीज़ों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। बढ़ता हुआ तनाव अगर कंट्रोल में नहीं किया गया तो जल्द ही भारत में डिप्रेशन यानी अवसाद के मामले काफ़ी बढ़ जाएंगे। वैसे भी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन की मानें तो दुनियाभर में डिप्रेशन के मामलों में भारत अपने पड़ोसी चीन के बाद दूसरे नंबर पर है।

हालांकि यह 2016 के आंकड़े हैं, पर डिप्रेशन के मामले में तस्वीर अब भी भारत और चीन में कड़ी टक्कर हो रही है। जहां भारत तनाव और अवसाद के मामलों के बढ़ने की समस्या से उलझा हुआ था, कोरोना की वजह से अनिवार्य हुए आइसोलेशन, सोशल डिस्टेंसिंग ने इसे और बढ़ा दिया है। जो लोग कोरोना के संपर्क में आ जाते हैं, वे गहरे अवसाद में चले जाते है। लोगों से पूरी तरह कटकर रहने का ख़्याल ही डरावना होता है। क्वारंटाइन सेंटर्स के बारे में आने वाली ख़बरें भी उन्हें डराती हैं। इसके अलावा कई काम-धंधे मंदे हो गए हैं। लोगों के रोज़गार पर बन आई है।

जहां कई लोगों की नौकरियां छूट गई हैं तो कइयों पर छंटनी की तलवार लटक रही है। लोगों की सैलरी कम कर दी गई है। दिहाड़ी पर काम करने वाले ज़्यादातर लोग टेम्प्रेरी बेरोज़गार हो गए हैं। जो लोग काम कर भी रहे हैं, वे घरों से काम कर रहे हैं। बाहर नहीं निकलने से दूसरों से मिलना-जुलना नहीं हो पा रहा है। इन सबसे धीरे-धीरे स्ट्रेस ने समाज के बड़े तबके में अपने पैर पसार लिए हैं। लोग वर्तमान के अकेलेपन से चिंतित हैं और साथ ही साथ भविष्य की अनिश्चितता से भी डरे हुए हैं। यानी कुल मिलाकर मानसिक रूप से हर इंसान टाइम बम बना हुआ है, जो कभी भी भावनात्मक रूप से फूट या टूट सकता है।


इस तनाव को कैसे घटाया जा सकता है?

अकेलेपन और आर्थिक अनिश्चितता की स्थिति को रातों-रात कम कर दिया जाएगा, ऐसा नहीं है। यह अपने आपमें एक विचित्र और अनूठी स्थिति है। इससे निपटने के लिए आपको मानसिक रूप से मज़बूत होना होगा और इसकी राह निकलती है योग से. डॉ तिलक सुवर्णा, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट, एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट, मुंबई तनाव से निकलने का रास्ता बताते हुए कहते हैं,‘‘सेल्फ़ आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ने से ज़ाहिर है लोग पहले की तुलना में अधिक अकेले और चिंतित महसूस करेंगे। ऐसे में योग और मेडिटेशन जैसी स्ट्रेस घटाने वाली तकनीक काफ़ी अहम् हो जाती हैं। डेली रूटीन में इन्हें शामिल करके काफ़ी हद तक तनाव मुक्त रहा जा सकता है।


तनाव घटाने में योग की भूमिका पर, क्या कहती हैं रिसर्च?

दुनियाभर के एक्सपर्ट्स ने कई शोधो में यह पाया है कि नियमित रूप से योग करने से दर्द सहने की क्षमता बढ़ती है। ऐसा योग करने वालों पर फ़ंक्शनल एमआरआई स्टडीज़ करके पाया गया है। दिमाग़ दर्द के प्रति प्रतिक्रिया कम कर देता है। जब व्यक्ति को दर्द कम होता है तब उसे तनाव भी कम महसूस होता है।

मई 2020 में ब्रिटिश जरनल ऑफ़ स्पोर्ट्स मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ छह देशों (अमेरिका, भारत, जापान, चीन, जर्मनी और स्वीडन) के 1080 प्रतिभागियों पर की गई 19 विभिन्न स्टडीज़ में यह बात सामने आई है कि नियमित रूप से योग करने यानी योग को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाने से मानसिक स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार देखने मिला है।

इतना ही नहीं जरनल ऑफ़ साइकिएट्रिक प्रैक्टिस में प्रकाशित बॉस्टन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्यनन की रिपोर्ट भी इस नतीजे पर पहुंची है कि क्लीनिकल डिप्रेशन के मामलों में दवाइयों के साथ-साथ योग करने पर जल्द और सकारात्मक नतीजे मिलते हैं। उष्ट्रासन, सेतु बंधासन, भुजांगासन, अर्ध मत्स्येंद्रासन, बालासन और प्राणायाम तनाव और चिंता को दूर करने में बेहद कारगर योगासन हैं।

तनाव के चलते दूसरी शारीरिक परेशानियां भी पैदा हो जाती हैं, जैसे पीठ दर्द या गर्दन का दर्द, अनिद्रा, सिरदर्द, एकाग्रता में कमी आदि। जब आप योग करते हैं तब न केवल तनाव से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित होता है और सकारात्मकता से भर उठते हैं। कोरोना को हराने में बचाव के उपायों के साथ-साथ सकारात्मकता की भी बहुत ज़रूरत है तो आप चिंता नहीं, योग करिए।