खतरनाक है आँखों को रगड़ना, जा सकती है रोशनी, फट सकता है कॉर्निया

जब भी हमारी आंखो में कुछ चला जाता है तो हमें बेचैनी होने लगती है। तिनके भर की चीज शरीर में उथल पुथल मचा देती है। जब तक हम उस तिनके को आंख से निकाल नहीं लेते तब तक चैन से नहीं बैठते और ऐसा करने के लिए हम हमेशा आंखों को तुरंत रगड़ने लगते हैं। बार-बार रगड़ते-रगड़ते चाहे आंखें लाल ही क्यों ना हो जाएँ पर जब तक आंखों में फसा तिनका बाहर नहीं निकलता तब तक आराम नहीं मिलता। सिर्फ इतना ही नहीं जब हम बहुत थक जाते है तो फ्रेश होने के लिए या आंखों का तनाव कम करने के लिए भी आंखो को रगड़ते हैं। ऐसा करने से हमारा ध्यान काम से हटकर दूसरी जगह चला जाता है और तनाव के साथ साथ रक्त चाप भी धीमा हो जाता है। लेकिन यह तनाव काम करने की तकनीक तब ही काम करती है जब हम आंखों को हल्के प्रेशर के साथ मसले। यदि ये प्रेशर तेज़ और भारी हुआ तो इसके बुरे परिणाम हमारी डेलिकेट आंखों को भुगतना पड़ता है।

आंखों को रगड़ने से भले सुकून मिलता है, लेकिन यह जितना हल्का महसूस कराता है उतना ही नुक़सानदेह भी है। जानिए अनजाने में हम अपनी आंखों को कितना नुक़सान पहुंचा रहे हैं। अक्सर हम सभी अपनी आंखों को रगड़ते रहते हैं। हल्की-सी खुजलाहट या नींद महसूस हुई तो आंखों को रगड़ लिया। किसी संक्रमण से दिक्कत होने पर या उलझन होने पर भी आंखों को हम मसल लेते हैं। अगर सर्दी-ज़ुकाम या थकावट है तो आंखों को रगड़ने में और आनंद महसूस होता है। कई लोगों के लिए आंखों को रगड़ना आदत बन जाती है। आंखें नाज़ुक और संवेदनशील होती हैं, इसलिए अगर उन्हें बहुत ज़ोर से या ज़्यादा मसला या रगड़ा तो आप उन्हें चोटिल कर सकते हैं।

आंखो के साथ हम इतनी बेरहमी से पेश आते हैं, जबकि सबसे ज़्यादा दबाव और तनाव हमारी शरीर में हमारी आंखें ही झेलती है।आँखें शरीर का सक्रिय अंग है, हम चाहे जिस अवस्था में हो, लेकिन आँखें अपना काम करती हैं। 24 घंटे में से 18 घंटे लगातार आंखें जागकर अपना काम करती हैं। यह सिर्फ सोते वक्त बंद होती हैं।

आज हम अपने पाठकों को बार-बार आँखों को रगड़ने या मसलने से होने वाले नुकसानों के बारे में बता रहे हैं।

आंखों को रगड़ने से होंगे ये नुक़सान...

आँखों के चारों ओर पड़ जाती हैं झुर्रियाँ

विशेषज्ञ कहते हैं कि दिन में एक या दो बार आंखों को मलना या रगड़ना सामान्य बात होती है। लोग ऐसा तब करते हैं जब वे जागते हैं या थकान महसूस करते हैं। लेकिन आंखों को बार-बार रगड़ने से पलकों और आंखों के कोनों में कोलेजन बॉन्ड ढीले हो सकते हैं। आईबैग झूल सकते हैं। आंखों के चारों ओर महीन रेखाएं और झुर्रियां हो सकती हैं।

कीटाणुओं का स्थानांतरण

दिन भर में हमारे हाथ ना जाने कितनी चीज़ों को छूते हैं। किस चीज़ पर कीटाणु जमा हो हमें इसके बारे में ज्ञात नहीं होता। कोरोना के बाद से तो किसी चीज को हाथ लगाने के बाद आंखों को भूलकर भी नहीं छूना चाहिए। बिना हाथ धोए या किसी संक्रमित चीज को छू लेने के बाद जलन होने पर हम अपनी आंखों को रगड़ लेते हैं, जिससे हाथ में मौजूद सभी कीटाणु आंखों में स्थानांतरित हो जाते हैं। ऐसे में आंखो में एलर्जिक रिएक्शन और फंगल इंफेक्शन फैलने का भी खतरा बढ़ जाता है।

कॉर्निया का फटना

आंखो को बार-बार रगड़ने से आंखों में मौजूद कॉर्निया फट सकता है। कॉर्निया आंखों का अहम हिस्सा है। जब हम बहुत तेज दबाव के साथ आंखो को रगड़ देते हैं तो हमारी आंखो की सतह यानी कॉर्निया पर घाव बन जाता है। इस घाव के कारण कॉर्निया पर खरोचें आ जाती हैं और आंखों में दर्द भी होने लगता है। ऐसा होने से आंखों में धुंधलापन भी आने लगता है। साफ दिखने में आंखों को तकलीफ होती हैं। कई मामलों में कॉर्निया फटने से आंख में सूजन भी देखी गई है। जब बच्चे अपनी आंखें रगड़ते हैं तो उनकी आंखों में कॉर्निया के उभरने का जोखिम रहता है। इससे नज़रें कमज़ोर हो सकती हैं, कॉर्निया पर निशान पड़ सकते हैं और स्थिति गंभीर हुई तो कॉर्निया ट्रांसप्लांटेशन की ज़रूरत पड़ सकती है।

आंखों में खून आना


आंखों में पतली रक्त वाहिकाएं होती हैं जो बहुत नाज़ुक और मुलायम होती हैं। इन धमनियों का काम रक्त संचार को बनाए रखना होता है। जब हम आंखों को ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हैं तो इन नाज़ुक धमनियों को नुक़सान पहुंच सकता है या टूट सकती हैं, जिसके चलते आंखों से ख़ून निकलने की स्थिति बन सकती है। ऐसे में आंखों की सफेद परत जिससे कंजाक्टीवा कहते हैं वह खराब होने लगती है। इसी स्थिति को विज्ञान की भाषा में सबकंजक्टिवल हैमरेज इसमें आंखो के उपर लाल खून जमा हो जाता है। हालांकि यह अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता है।

डार्क सर्कल

डार्क सर्कल से लोग काफी परेशान रहते हैं। डार्क सर्कल से छुटकारा पाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाते हैं। लेकिन वही तरीके हमारी कुछ आदतों के कारण व्यर्थ चले जाते हैं। आंखो को बार-बार रगड़ने से धमनियां टूटने लगती हैं और रक्त के बहाव में लीकेज हो जाती है। इस कारण रक्त इधर-उधर बहने लगता है। परिणाम स्वरूप आंखो के नीचे की त्वचा कमजोर और ढीली पड़ जाती है। ऐसी स्थिति में आंखो के नीचे काले घेरे बन जाते हैं।

ग्लूकोमा के रोगियों में अंधापन

ग्लूकोमा के रोगियों को कम दिखाई देता है। यह अक्सर 60 की उम्र के बाद होता है। ग्लूकोमा में आंखो पर दबा व बनता है जो दिमाग से योजित ऑप्टिक नर्व को प्रभावित करता है। ऐसे में अगर आंख को आए दिन रगड़ा जाए तो यह दबाव उत्प्रेरक होकर ऑप्टिक नर्व को बुरी तरह से नुकसान पहुंचता है, जिसका परिणाम व्यक्ति को अंधा बना सकता है। इस अवस्था में अंधापन ही एक मात्र दुषपरिणाम है।

आंखें शरीर का काफी संवेदनशील अंग है, इसमें समस्या आने पर हमारा पूरा शरीर प्रभावित हो सकता है। इसलिए बेहतर है कि अपनी आखों को बार-बार रगड़ने से बचें।

ऐसे बचाएं आंखों को...

- आंखों में रोज़ ड्रॉप डालें। इससे आंखों का कचरा निकल जाएगा। आंखों में सूखापन और तनाव के कारण भी आंखों में खुजली होती है। पर आई ड्रॉप चिकित्सक की सलाह से ही लें।
- अगर आंखों में किरकिरापन महसूस हो रहा है तो हाथों का उपयोग करने के बजाय पानी से इन्हें धोएं। परंतु पहले हाथों को अच्छी तरह से धोएं, फिर आंखों में पानी डालें।
- टीवी या कंप्यूटर स्क्रीन पर अधिक समय बिताने के कारण भी आंखों में सूखापन आ सकता है या उलझन हो सकती है। ऐसे में आंखों को मसलने से भले आराम मिलेगा लेकिन ऐसा करने से ख़ुद को रोकें।
- किसी कपड़े और टिशू पेपर से भी आंखों को साफ़ न करें। ख़ासतौर गीला चेहरा पोंछते वक़्त आंखों का ख़याल रखें।
- अगर कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल करते हैं तो हाथों को आंखों पर बिल्कुल न लगाएं। आंखें मलने पर कॉन्टैक्ट लेंस इनको क्षति पहुंचा सकते हैं।