हर महिला को करना पड़ता हैं गर्भावस्था में इन 10 समस्याओं का सामना, जानें बचाव के तरीके

गर्भावस्था का समय किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होता हैं। यह एक चुनौतियों से भरा सफ़र होता हैं जिसमें महिलाओं को अपने साथ अपने अंदर पल रहे बच्चे की सेहत का भी ख्याल रखना होता हैं। हांलाकि इससे मिलने वाली खुशी में महिला अपनी हर परेशानी को हंसकर भुला देती है। आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्याओं के बारे में। इनमे से कुछ समस्याएं न सिर्फ महिला के लिए मुश्किलें बढ़ाती हैं, बल्कि उसके होने वाले बच्चे के जीवन को भी संकट में डाल सकती हैं। ऐसे में आज हम आपको इन समस्याओं से बचाव के बारे में भी जानकारी देने जा रहे हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...

बहुत ज्यादा उल्टी होना

प्रेगनेंसी के दौरान उल्टी होना आम परेशानी है, इसलिए महिलाएं इसे देखकर बहुत गंभीरता से नहीं लेतीं। लेकिन अगर आपको उल्टी हद से ज्यादा हो रही है, तो आपको विशेषज्ञ को इसके बारे में जरूर बताना चाहिए क्योंकि इससे आपको डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। डिहाइड्रेशन की वजह से मां और बच्चे दोनों को परेशानी हो सकती है।

यूटीआई

शरीर में प्रोजेस्ट्रेरोन की मात्रा ज्यादा बढ़ने की वजह से औरतों को इस समय यूटीआई इंफेक्शन का खतरा बना रहता है, जिसका सीधा असर महिलाओं के किडनी पर पड़ता है। इस प्रॉब्लम से निजात पाने के लिए महिलाओं को चाहिए कि वो ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें और सही डाइट प्लान को गंभीरता से फॉलो करें।

फ्लू

अमेरिका की सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक यदि कोई गर्भवती महिला इन्फ्लुएंजा फ्लू का टीका नहीं लगवाती और गर्भावस्था के दौरान फ्लू से ग्रसित हो जाती है, तो वो अपने साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी खतरा बढ़ाती है। गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में फ्लू होने से बच्चे में जन्म दोष हो सकता है। इसलिए गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में ही फ़्लू का टीका लगवाएं और फौरन इसका इलाज करवाएं।

बच्चे की गतिविधियां कम होना

इसका कोई निर्धारित पैमाना तो नहीं कि बच्चे की कितनी गतिविधि होनी चाहिए लेकिन गर्भावस्था के दौरान बच्चे की गतिविधियों का एहसास हर मां को होता है। अगर आपको बच्चे की गतिविधियां कम लगती है तो इसे जांचने का एक आसान तरीका है। कुछ ठंडा खाएं और फिर करवट लेकर थोड़ी देर लेटें। इस दौरान बच्चे की गतिविधियां हो रही हैं या नहीं, इस पर ध्यान दें। दो घंटों में बच्चा कम से कम दस बार किक मारेगा तो सब सामान्य है, वरना डॉक्टर से तुरंत मिलें।

हाई ब्लड प्रेशर

गर्भावस्था से पहले और उसके दौरान हाई ब्लड प्रेशर की समस्या गर्भवती महिला और उसके बच्चे को खतरे में डालता है। यह प्रसूति संबंधी जटिलताओं जैसे कि प्रीक्लेम्पसिया एक्सैटरनल आइकन, प्लेसेंटल एबॉर्शन और जेस्टेशनल डायबिटीज के लिए बढ़े हुए जोखिम के साथ जुड़ा हुआ है। इन महिलाओं को डिलीवरी में कई परेशानियां हो सकती हैं, जैसे कि प्रसवपूर्व प्रसव, उम्र के हिसाब से शिशु छोटा होना और शिशु मृत्यु। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गर्भवती होने से पहले रक्तचाप की समस्याओं पर चर्चा करें ताकि गर्भावस्था से पहले आपके रक्तचाप का उचित उपचार और नियंत्रण हो सके।

डायबिटीज

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं द्वारा सही खानपान नहीं करने से जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है, जिसका बुरा असर बच्चे पर सीधा पड़ता है जिससे नवजात बच्चे में कुछ जन्मजात बीमारियां के होन की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में औरतों को चाहिए कि वह ऐसे समय में आलू, चावल, जंक फूड, मीठी चीजों का सेवन एकदम ना करें और प्रत्येक 3 महीने में OGTT (ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट) अवश्य करवाएं।

ब्लीडिंग होना

गर्भावस्था के बाद भी पीरियड्स हो रहे हैं, तो इसे सामान्य मानकर टालें नहीं। इस अवस्था को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहा जाता है। इसमें फर्टिलाइज एग गर्भाशय तक पहुंच ही नहीं पाता और रास्ते में ही फंस जाता है। ऐसे में मिसकैरेज की आशंका भी बढ़ जाती है।

पैरों और कमर में दर्द

गर्भावस्था के दौरान औरतों के पैर दर्द होने, कमर दर्द होने, मांसपेशियों में दर्द होने, सूजन और खिंचाव के चलते उठने-बैठने में मुश्किल होने लगती है। इससे बचने के लिए ज्यादा आराम करें और भारी सामान उठाने से परहेज करें। इसके साथ ही सोने की पोजिशन का भी ध्यान रखें और सही तरिके से सोएं।

एनीमिया

गर्भावस्था के दौरान सही खानपान ना होने से औरतों के शरीर में खून की कमी होने लगती है। इससे ना केवल बच्चे की ग्रोथ रूकती है बल्कि यह गर्भपात का कारण भी बन सकता है। ऐसे में आपको डाइट में अनार, चुकंदर, चीकू, हरी पत्तेदार सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स,सेव, अंजीर, खजूर जैसे आयरन युक्त चीजें खाएं, ताकि शरीर में खून की कमी ना हो।

मोटापा और वजन बढ़ना

गर्भवती होने से पहले एक महिला का वजन जितना ज्यादा होता है, गर्भावस्था की जटिलताओं का उतना ही अधिक जोखिम होता है, जिसमें प्रीक्लेम्पसिया, जीडीएम, स्टिलबर्थ और सिजेरियन डिलीवरी शामिल हैं। साथ ही, सीडीसी शोध से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान मोटापा कई सारी परेशानियों को और बढ़ा देता है। इसके अलावा वजन का कम होना भी प्रेग्नेंसी की परेशानियों को और बढ़ा सकता है।