
नए अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि अत्यधिक मोटापा (Severe Obesity) केवल शरीर का वजन बढ़ाने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह स्वास्थ्य से जुड़ी 16 सामान्य लेकिन गंभीर समस्याओं के खतरे को भी कई गुना बढ़ा देता है। इनमें स्लीप एपनिया (नींद में सांस रुकना), टाइप 2 डायबिटीज, और फैटी लिवर जैसी जानलेवा बीमारियाँ प्रमुख हैं।
'क्लास 3 मोटापा' शरीर के कई अंगों पर डालता है घातक असरजब किसी व्यक्ति का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 40 या उससे अधिक होता है — या 35 से ऊपर होते हुए मोटापे से जुड़ी बीमारियाँ हो जाती हैं — तो इसे क्लास 3 मोटापा या गंभीर मोटापा कहा जाता है। यह स्थिति शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करती है और कई तरह की जटिल स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन सकती है। पिछले अध्ययनों में इन बीमारियों को अलग-अलग देखा गया था, जिससे मोटापे के समग्र प्रभाव को समझना कठिन था। लेकिन यह नया शोध मोटापे के बहुस्तरीय और समग्र खतरे को स्पष्ट रूप से सामने लाता है।
मोटापा सिर्फ वज़न नहीं, बीमारियों की जड़ हैमोटापा अब केवल शरीर की बनावट से जुड़ी एक समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह कई गंभीर बीमारियों का कारण बन चुका है। एक नए अध्ययन में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई है कि मोटापे से पीड़ित, विशेष रूप से अत्यधिक मोटापे (Severe Obesity) वाले लोगों में कई स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के वैज्ञानिकों ने अमेरिका के 2.7 लाख से अधिक वयस्कों के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि जैसे-जैसे किसी व्यक्ति का मोटापा बढ़ता है, वैसे-वैसे 16 आम और गंभीर बीमारियों के शिकार होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
मोटापे की श्रेणियों के अनुसार बढ़ता जोखिमअध्ययन में मोटापे को तीन श्रेणियों में बांटा गया: पहली श्रेणी (BMI 30-34.9) – 21.2% लोग
दूसरी श्रेणी (BMI 35-39.9) – 11.3% लोग
तीसरी श्रेणी (BMI 40 और उससे अधिक) – 9.8% लोग
जिन लोगों का BMI तीसरी श्रेणी में आता है, उन्हें “गंभीर मोटापा” (Class 3 Obesity) कहा जाता है। शोध से यह स्पष्ट हुआ कि मोटापे की श्रेणी जैसे-जैसे बढ़ती गई, वैसे-वैसे बीमारियों के मामलों में भी बढ़ोतरी देखी गई। इसका सीधा संकेत यह है कि मोटापा अकेले नहीं आता, बल्कि अपने साथ कई बीमारियाँ भी लेकर आता है।
मोटापे से जुड़ी 16 खतरनाक बीमारियाँउच्च रक्तचाप (High Blood Pressure): अत्यधिक चर्बी शरीर में रक्त वाहिकाओं पर अतिरिक्त दबाव डालती है, जिससे हृदय को रक्त पंप करने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इससे रक्तचाप लगातार बढ़ा रहता है, जो स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ाता है।
टाइप 2 डायबिटीज: मोटापा इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ाता है, जिससे शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप रक्त में शुगर का स्तर बढ़ता है और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बहुत ज्यादा हो जाता है।
हाइपरलिपिडिमिया / डिस्लिपिडेमिया: मोटे लोगों के शरीर में अक्सर खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) और ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा अधिक होती है, जबकि अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) का स्तर कम हो जाता है। यह स्थिति हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार होती है।
हार्ट फेलियर: अधिक वजन हृदय पर अतिरिक्त दबाव डालता है। लंबे समय तक यह दबाव हृदय की मांसपेशियों को कमजोर कर देता है, जिससे हार्ट फेलियर का खतरा पैदा होता है।
अनियमित दिल की धड़कन (Arrhythmia): मोटापा दिल के इलेक्ट्रिकल सिस्टम को प्रभावित कर सकता है, जिससे धड़कन अनियमित हो जाती है। अफिब्रिलेशन (Atrial Fibrillation) जैसी स्थितियां अधिक आम हो जाती हैं।
एथेरोस्क्लेरोटिक हृदय रोग: मोटे लोगों की धमनियों में वसा जमा हो जाती है, जिससे वे संकरी हो जाती हैं और रक्त प्रवाह बाधित होता है। इससे एथेरोस्क्लेरोसिस नामक स्थिति उत्पन्न होती है, जो गंभीर हृदय समस्याओं की जड़ होती है।
क्रोनिक किडनी रोग: डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी मोटापे से जुड़ी स्थितियां किडनी को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे धीरे-धीरे किडनी फेलियर तक हो सकता है।
पल्मोनरी एंबोलिज्म (Pulmonary Embolism): मोटे लोगों में रक्त जमने (Blood Clots) की संभावना अधिक होती है। ये थक्के फेफड़ों तक पहुंच कर जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं।
नसों में खून का थक्का (DVT - Deep Vein Thrombosis): लंबे समय तक एक जगह बैठे रहना और धीमा मेटाबोलिज्म रक्त का प्रवाह कम करता है, जिससे गहरी नसों में थक्का बन सकता है जो बाद में पल्मोनरी एंबोलिज्म का कारण बन सकता है।
गाउट (Gout): मोटे लोगों में यूरिक एसिड का स्तर अधिक होता है, जो जोड़ो में जमकर असहनीय दर्द और सूजन पैदा करता है।
फैटी लिवर (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease): अत्यधिक चर्बी लिवर में भी जमा हो जाती है, जिससे वह सामान्य रूप से काम नहीं कर पाता। यह लिवर सिरोसिस या लिवर फेलियर तक पहुंचा सकता है।
पित्त की पथरी (Gallstones): मोटापा पित्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे पथरी बनने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। यह स्थिति पेट में तेज दर्द और पाचन से जुड़ी समस्याएं पैदा करती है।
स्लीप एप्निया: गर्दन और गले में जमा अतिरिक्त वसा श्वास नली को अवरुद्ध कर देती है, जिससे नींद के दौरान सांस रुकने की समस्या हो जाती है। यह नींद की गुणवत्ता और हृदय स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
दमा (Asthma): मोटापा फेफड़ों और श्वसन तंत्र पर दबाव डालता है, जिससे सांस की तकलीफ और दमा के दौरे अधिक होते हैं। मोटे लोगों में दमा अधिक गंभीर रूप ले सकता है।
गैस्ट्रिक रिफ्लक्स (GERD): अधिक पेट की चर्बी पेट और भोजन नली के बीच के वाल्व पर दबाव डालती है, जिससे अम्ल पेट से ऊपर चढ़ने लगता है। यह जलन, खट्टी डकार और भोजन नली की सूजन का कारण बनता है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस: अधिक वजन हड्डियों और जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव डालता है, खासकर घुटनों और कूल्हों पर। इससे जोड़ों का घिसाव जल्दी शुरू हो जाता है और चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है।
मोटापे से सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बीमारियांशोध में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि स्लीप एप्निया, टाइप 2 डायबिटीज, और फैटी लिवर जैसी बीमारियों से मोटापे का सबसे गहरा और सीधा संबंध पाया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि अत्यधिक चर्बी शरीर के अंगों की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित करने लगती है। चर्बी जहां नींद के दौरान सांस की नली को अवरुद्ध करती है, वहीं यह शरीर की इंसुलिन संवेदनशीलता और लिवर की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करती है। परिणामस्वरूप, ये बीमारियां तेज़ी से विकसित होती हैं और व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में बदलाव की जरूरतइस शोध का सबसे अहम संदेश यह है कि अब मोटापे को सिर्फ एक व्यक्ति विशेष की जीवनशैली की समस्या मानना पर्याप्त नहीं है। यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते जन-जागरूकता नहीं बढ़ाई गई और प्रभावी इलाज और रोकथाम की व्यवस्था नहीं की गई, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और भी भयावह रूप ले सकती है। अब वक्त आ गया है कि सरकारें और स्वास्थ्य संस्थान मोटापे से जुड़ी बीमारियों को रोकने के लिए सशक्त और व्यापक रणनीतियाँ बनाएं। बेहतर पोषण, शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान और नियमित हेल्थ चेकअप जैसी पहलें इसमें अहम भूमिका निभा सकती हैं। इस अध्ययन के आधार पर यह भी सुझाव दिया गया है कि मोटापे को प्राथमिकता में रखते हुए स्वास्थ्य नीतियों में व्यापक सुधार किए जाएं ताकि बढ़ते जोखिम को समय रहते नियंत्रित किया जा सके।