National Organ Donor Day: भारत अंगदान के मामले में बहुत पीछे, अभाव में हो रही मौतें

आज 14 फरवरी जहां वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाता हैं वहीँ दूसरी ओए यह राष्ट्रीय अंगदान दिवस (National Organ Donor Day) के रूप में भी मनाया जाता हैं। इस दिन का उद्देश्य हैं लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करना ताकि लाखों लोगों की जिंदगी को बचाया जा सकें। भारत में अंगदान के आंकड़े बहुत खराब हैं जिसे बढ़ावा देने के लिए ऑप्ट आउट' प्रणाली को अपनाने की जरूरत है।

2016 में, स्पेन में कुल 4,818 अंग प्रत्यारोपित किए गये। यानी स्पेन में हर दस लाख लोगों में से 43.4 लोग अपने अंग दान करते हैं, वहीं अमेरिका में 26.6 लोग और युनाइडेट स्टेट्स में 19.6 लोग अंगदान करते हैं। स्पेन लंबे समय से अंगदान के मामले में सबसे अग्रणी देश बना हुआ है। इसका कारण वहां का एक खास नियम है, जिसे 'ऑप्ट आउट' सिस्टम कहते हैं।
क्या है ऑप्ट आउट सिस्टम?

स्पेन में अंगदान को एक बड़ी सफलता बनाने वाले कारकों में वहां का ऑप्ट आउट सिस्टम बहुत काम आया है। इस सिस्टम के तहत सभी नागरिक जन्म से ही अपने आप अंग दान करने के लिए पंजीकृत हो जाते हैं जब तक कि वे विशेष रूप से इसे अस्‍वीकार नहीं करते हैं। अंगदान करने वाले अन्य देशों में क्रोएशिया, फ्रांस, नॉर्वे और इटली भी शामिल हैं।

भारत में अंगदान की स्थिति

दूसरी तरफ, भारत के मामले में जब अंग दान की बात आती है, तब आंकड़ों का स्‍तर बहुत खराब स्थिति को दर्शाता है, क्‍योंकि यहां प्रतीक्षा सूची की वजह से हजारों लोगों के अंग प्रतिवर्ष मर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार भारत में किडनी की सालाना आवश्यकता 1-2 लाख के बीच है। हालांकि, वास्तव में एक यहां मामूली रूप से 5,000 अंगों का प्रत्यारोपण होता है। इनमें से अधिकांश कैडेवर डोनर (मृत दाताओं) के बजाय लाइव डोनर (जीवित दाताओं) हैं।

जैसा कि अक्सर इस बात की चर्चा की जाती है, कैडेवर डोनर्स की खराब दर भारत के ऑर्गन डोनर प्रोग्राम (अंग दान कार्यक्रम) के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। भारत में मृतक अंग दाता दर लगभग 0.34 पर मिलियन है, जो कि विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत में अंग दान करने वाले ज्‍यादातर जीवित लोग हैं, जो या तो मरीज से सीधे तौर पर संबंधित हैं या अंग की अदला-बदली की व्यवस्था का हिस्सा हैं। मस्तिष्क मृत्यु, सामाजिक सांस्कृतिक कारकों, धार्मिक विश्वासों और अपर्याप्त प्रत्यारोपण केंद्रों सहित संगठनात्मक रूप से समर्थन की कमी के बारे में जागरूकता की कमी, अच्छी तरह से प्रशिक्षित प्रत्यारोपण समन्वयकों की कमी हमारे देश में अंग दान कार्यक्रम के मामले में सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियां हैं।

2011 के बाद से भारतीय कानून और संशोधन में एक नियम है जो इंटेंसिव केयर डॉक्‍टर्स (गहन देखरेख चिकित्‍सक) के लिए आवश्यक अनुरोध के प्रावधान को पेश करता है ताकि मस्तिष्क मृत्यु की स्थिति में मरीज से अंग दान के लिए कहा जा सके। हालांकि, मस्तिष्क की मृत्यु की अवधारणा अभी भी लोगों को भ्रमित करती है और ऐसे में इसके प्रति जागरूकता की कमी के कारण यह यथास्थिति बनी हुई है।