'Plan B' / कोरोना महामारी से बचने के लिए सबको संक्रमित कर देना चाहिए! छिड़ी बहस

कोरोना वायरस महामारी को लेकर अब पूरी दुनिया में एक बहस छिड़ चुकी है। इस बहस के तहत कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए सभी लोगों को इससे संक्रमित होने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। इसके पक्ष में भी दलीलें आ रही हैं तो इसके खिलाफ भी। आखिर इस विकल्प का आधार क्या है और क्यों इस तरह की चर्चा छिड़ी है, आइए समझते हैं।

दरअसल, जब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक खतरा बहुत ही ज्यादा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती लॉकडाउन जारी रहे? बिल्कुल नहीं, क्योंकि तब बीमारी से ज्यादा लोग इसे रोकने की इस कवायद से मरने लगेंगे। इकॉनमी चौपट हो जाएगी, अभूतपूर्व बेरोजगारी बढ़ जाएगी। हो सकता है कि लोगों के भूखों मरने की नौबत तक आ जाए।

ऐसी सूरत में वैक्सीन बनने तक 'हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity)' के कॉन्सेप्ट से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं। इसी को प्लान बी के तौर पर बताया जा रहा है कि लोगों को खुला छोड़ दें संक्रमण के लिए, इससे 'हर्ड इम्यूनिटी' विकसित होगी और आखिरकार महामारी खत्म हो जाएगी। लेकिन इसमें इतना ज्यादा जोखिम है कि दुनिया भर के विशेषज्ञ इसे लेकर बंट चुके हैं। ऐसे में हम आपको बताते है कि आखिर क्या है 'हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity)'?

जब बहुत सारे लोग किसी संक्रामक बीमारी के प्रति इम्यून (Immune) हो जाते हैं यानी उनमें उसके प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है तो वह बीमारी बाकी बचे असंक्रमित लोगों को अपनी चपेट में नहीं ले पाती है क्योंकि पूरा समूह ही इम्यून हो चुका होता है। इसी को हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं।

यह प्रतिरोधक क्षमता या तो वैक्सीन के जरिए मिलेगी या फिर बड़ी तादाद में लोगों के संक्रमित होने और उनके भीतर संबंधित बीमारी के प्रति इम्यूनिटी विकसित होने से होगी। उदाहरण के तौर पर न्यूमोनिया और मेनिन्जाइटिस जैसी बीमारियों की वैक्सीन देकर बच्चों को इसके प्रति इम्यून बनाने का नतीजा यह हुआ कि वयस्क लोगों के इन बीमारियों की चपेट में आने की गुंजाइश बहुत कम हो गई। अगर कुछ लोगों में ही किसी बीमारी के प्रति इम्यूनिटी है तो वह संक्रामक बीमारी आसानी से फैलती है। अगर ज्यादातर लोगों में वैक्सीन या एक्सपोजर की वजह से इम्यूनिटी आ जाए तो वायरस का फैलना रुक जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 (Covid-19) की बात करें तो अगर 60 से 85% आबादी में इसके प्रति इम्यूनिटी आ जाए तो इसे हर्ड इम्यूनिटी करेंगे। डिप्थीरिया में यह आंकड़ा 75%, पोलियो में 80 से 85% और मीजल्स में 95% है।

अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक बड़ी आबादी मरने के लिए छोड़ दी जाए?

कई विशेषज्ञ 'हर्ड इम्यूनिटी' का तीखा विरोध कर रहे हैं। अगर लोगों को वायरस के संक्रमण में आने के लिए छोड़ दिया जाए तो जोखिम वाले लोग जैसे बुजुर्ग और पहले से गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के साथ यह बहुत बड़ा अन्याय होगा। ऑस्ट्रेलिया के एपिडेमियोलॉजिस्ट गिडियन मेयरोविट्जकाट्ज ने द गार्डियन में लिखा, 'इसके लिए हमें इकॉनमी की बलि वेदी पर जोखिम वाले लोगों की बलि देनी पड़ेगी।' हर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को संक्रमित होने के लिए छोड़ना बहुत खतरनाक हो सकता है। 60 से 85% आबादी संक्रमित हो जाए तो इसके विनाशकारी नतीजों की कल्पना तक नहीं की जा सकती। तब लाखों लोग या हो सकता है कि करोड़ में लोगों की मौत हो जाए। कनाडा के चीफ पब्लिक हेल्थ ऑफिसर थेरेसा टैम ने चेताया है कि अगर ऐसा किया गया तो मौत ही नहीं, बीमारी के असर भी खतरनाक साबित होंगे। उन्होंने कहा, 'सिर्फ मौत ही चिंता की बात नहीं है। बीमारी से जो जिंदा बच रहे हैं उनके किडनी, लिवर, हृदय और दिमाग को होने वाला नुकसान भी बड़ी चिंता की बात होगी।'

बता दे, दुनिया में कोरोना वायरस से अब तक 32 लाख 19 हजार 424 लोग संक्रमित हैं। 2 लाख 28 हजार 197 की मौत हो चुकी है, जबकि 10 लाख लाख 293 ठीक हो चुके हैं। डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को किसी आतंकी हमले से भी ज्यादा खतरनाक बताया है। संगठन ने कहा कि यह दुनिया में उथल-पुथल मचा सकता है, इसलिए सभी देशों को एकजुट होकर इसका मुकाबला करना चाहिए। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ टेड्रोस गेब्रियेसस ने बुधवार को कहा, 'इस वायरस को हराने के लिए इतिहास के किसी भी क्षण से ज्यादा इस समय मानव जाति को एक साथ खड़े होने की जरूरत है। यह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक उथल-पुथल मचाने में सक्षम है।'