उडि्डयान का अर्थ है ऊपर की तरफ तथा बंध का अर्थ है बांधना। उडि्डयान बंध प्राणायाम शुरू करने से पहले आपको कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
- यह आसन खाली पेट ही करना चाहिए। तथा सांस लेने के पहले नही बल्कि सांस छोड़ने के बाद करना चाहिए।
- जिस समय आपने सांस बाँधी हुई है, आपको जलंधर बांध आसन भी करना चाहिए।
- बहुत से योग गुरुओं का कहना है की आपको इस आसन की शुरुआत खड़े होकर करनी चाहिए, जब आपको अनुभव हो जाए उसके बाद ही बैठने की मुद्रा में जाना चाहिए।
आसन को करने की विधि –- दोनों पैरों को थोडा फैलाते हुए खड़े हो जाएँ।
- नाक से गहरी सांस लें फिर जल्दी और बल पूर्वक सांस को बाहर की ओर छोड़ें।
- अब अपने फेफड़ों से हवा बाहर की तरफ निकालने के लिए पेट की मांसपेशियों को पूरी तरह सिकोड़ें। और फिर पेट को आराम से छोडें।
- अब एक नकली सांस लें मतलब छाती को फुलाएं जैसे की आप सांस ले रहे हैं पर वास्तव में नही। इस तरह से छाती को फुलाने से पेट की मांसपेशियां तथा आंते सिकुड़ जाती हैं। जिससे पेट खाली हो जाता है। इससे पेट तथा नाभि रीढ़ की तरफ उठने लगते हैं।
- 5 से 15 सेकंड के लिए इस बंध को रखें। अब धीरे धीरे पेट की पकड़ को छोड़े और सांस अन्दर की तरफ खींचे। अपनी क्षमता के अनुसार 3 से 5 बार इस क्रिया को दोहरायें।
सावधानीअगर आप किसी दिल की बीमारी या पेट के जख्म से पीड़ित हैं तो उड्डियान बंध का अभ्यास ना करें। गर्भवती महिला को भी यह नहीं करना चाहिए।
उद्दियन बंध आसन के लाभ- यह पेट की मांसपेशियों तथा पिंजरे को मजबूत करता है।
- यह आसन पेट, आँतों, ह्रदय तथा फेफड़ों की मालिश करता है।
- इससे पाचन में सुधर आता है, तथा यह विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर पाचन तंत्र को स्वच्छ करता है।
- पेट तथा मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को बढाता है, जिससे ऊर्जा स्तर में बढ़ोत्तरी होती है।
- पेट और कमर की चर्बी घटती है।
- यह मधुमेह घटाने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है।
- चिड़चिड़ापन, क्रोध और अवसाद दूर होता है।