क्रिकेट से जुडी ये तकनीक जो बनाती है खेल को और रोमांचक और मजेदार

अभी के समय में क्रिकेट का बहुत अच्छा दौर चल रहा हैं। समय के साथ-साथ क्रिकेट में भी काफी बदलाव देखने को मिले है। बदलते दौर के साथ-साथ अब क्रिकेट स्टेडियम में भी काफी बदलाव हुए हैं। इन मैचो का मजा तब दुगुना हो जाता है जब तकनीक के सहारे आपके पसंदीदा खिलाड़ी के पक्ष में निर्णय आता है जिसका सारा श्रेय क्रिकेट में वर्तमान में प्रयुक्त हो रही प्रणाली है। इन तकनीको ने एम्पायर का काम भी आसान कर दिया और थोडा सा संदेह होते ही वो तकनीक का सहारा लेकर एकदम सही निर्णय ले लेते है।

आइये आज आपको क्रिकेट में इस्तमाल होने वाली ऐसी ही आधुनिक तकनीको के बारे में रोचक जानकारी देते है जिससे यह खेल ओर भी रोमाचंक और मजेदार हो जाता है। बात अगर आधुनिक तकनीकों की करें तो आज क्रिकेट में कई ऐसी नई तकनीक ने जन्म ले लिया है जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। आईए नजर डालते हैं ऐसी ही आधुनिक तकनीकों पर...

* स्पाइडर कैम :

टेलीविजन पर आपको हर एंगल से मैदान दिखाने के लिए स्पाइडर कैम का इस्तेमाल होता है। यह कैमरा बहुत ही पतली केबल में जुड़कर स्टेडियम के हर कोने में लगा रहता है। स्पाइडर कैमरा ब्रॉडकास्टर की जरूरतों के मुताबिक स्टेडियम में होने वाली गतिविधियों को टिल्ट, जूम या फोकस कर देता है। इसके पतले केबल में फाइबर ऑप्टिक केबल भी होते हैं, जो कैमरा में रिकॉर्ड होने वाली तस्वीरों को प्रोडक्शन रूम तक पहुंचाते हैं।

* गिल्लियो से रोशनी :

जिंग विकेट सिस्टम LED लाइट वाले स्टंप और उनके उपर लगने वाली गिल्ली है जो गेंद टकराते ही फ़्लैश होने लगती है यानि इसमें रोशनी चमक उठती है। इस तकनीक की के गिल्ली की कीमत तकरीबन 30 से 50 हजार रूपये कीमत के बराबर होती है और इसका पूरा सेट लगभग 25 लाख रूपये तक आता है। इसमें लगे In-built सेंसर की मदद से यह सैंकड़ के हजारवे हिस्से में ही पास आने वाली चीज को डिटेक्ट कर लेता है। रन आउट या स्टंप आउट के समय एक बल्लेबाज को तभी आउट दिया जाता है जब गिल्ली पुरी तरह हट जाए। स्टम्प में माइक्रोप्रोसेसर और कम वोल्टेज वाली बैटरी लगी रहती है।

* स्निकोमीटर :

क्रिकेट स्टेडियम में शोर-शराबे की कमी नहीं होती। ऐसे में अंपायर के लिए हल्की आवाजों को सुनना लगभग असंभव हो जाता है, लिहाजा अंपायरों की मदद के लिये स्निकोमीटर का प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक को इस तरह से प्रोग्राम किया गया है कि आवाज में थोड़े बदलाव को भी पहचान लिया जाए। इससे यह पता लग जाता है कि बल्ले ने बॉल को छुआ है या नहीं। स्निकोमीटर में एक माइक्रोफोन लगा होता है। इसे पिच की दोनों तरफ किसी एक स्टंप में लगाया जाता है और यह ऑसीलोस्कोप से कनेक्ट रहता है, जो ध्वनि तरंगों को मापती है।

* सुपर स्लो मोशन :

आपने क्रिकेट मैच में रिप्ले जरुर देखा होगा। ब्रॉडकास्टर्स स्लो मोशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई सालो से कर रहे है। सुपर स्लो मोशन कैमरा को स्टेडियम में 500 फ्रेम प्रति सैंकड़ पर लगाया जाता है। वही एक समान्य कैमरा 24 फ्रेम प्रति सैंकड़ इमेज रिकॉर्ड करता है। आप इससे अंदाजा लगा सकते हो कि स्लो मोशन तकनीक कितनी कारगर साबित होती है। इस तकनीक का इस्तेमाल रीप्ले ,रन आउट और स्टम्पिंग देखने के लिए किया जाता है।

* स्पीड गन :

इस तकनीक का इस्तेमाल सबसे पहले टेनिस में हुआ था। गेंदबाज के हाथ से बॉल किस गति पर छूटी, यह मापने के लिए स्पीड गन का इस्तेमाल किया जाता है। गेंद की गति का पता लगाने के लिए डॉपलर रडार का इस्तेमाल किया जाता है। स्पीड गन माइक्रोवेव तकनीक का इस्तेमाल करती है।