36 की उम्र में यह अभिनेत्री बनी बिन ब्याही माँ, समाज को दिखाया आइना और फिर की सिनेमाई परदे पर जबरदस्त वापसी

बॉलीवुड की चमकदार दुनिया में जितनी रौशनी है, उतना ही गहरा अंधेरा भी — और इस अंधेरे को चीरकर आगे बढ़ने वाली शख्सियतों में से एक हैं नीना गुप्ता। एक ऐसी अभिनेत्री, जिन्होंने सिर्फ अपने अभिनय से नहीं, बल्कि अपने निजी जीवन के साहसिक फैसलों से भी समाज को आइना दिखाया। उनकी जिंदगी सिर्फ ग्लैमर से भरी कहानी नहीं है, यह संघर्ष, अकेलेपन, साहस और आत्मसम्मान की मिसाल है।

शुरुआती सफर और अभिनय का संघर्ष

दिल्ली में जन्मी नीना गुप्ता का अभिनय की ओर झुकाव बचपन से ही था। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से एक्टिंग की पढ़ाई की और यहीं से उनके जीवन की असल यात्रा शुरू हुई। शुरुआत में उन्होंने थिएटर और टेलीविजन से जुड़ाव रखा। दूरदर्शन के धारावाहिक ‘खानदान’ और 'मिर्जा गालिब' में उनके काम को काफी सराहा गया।

1980-90 के दशक में जब बॉलीवुड में महिला कलाकारों को मुख्य भूमिकाओं में कम ही जगह मिलती थी, नीना ने छोटे लेकिन दमदार किरदारों से अपनी छाप छोड़ी। ‘वो छोकरी’ में उनके अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला, लेकिन मुख्यधारा की फिल्मों में उन्हें लंबे समय तक वह स्थान नहीं मिला जिसकी वह हकदार थीं।

विवियन रिचर्ड्स से रिश्ता: एक बहादुरी भरा फैसला

नीना की जिंदगी का सबसे चर्चित पहलू था उनका विवियन रिचर्ड्स के साथ रिश्ता। उस दौर में जब बिना शादी के मां बनना समाज के लिए असहज और शर्मनाक माना जाता था, नीना ने यह फैसला लिया कि वह अपनी बेटी को अकेले पालेंगी।

यह कोई आम निर्णय नहीं था। हर मोड़ पर समाज ने उन्हें ताने मारे, उनके चरित्र पर सवाल उठाए, लेकिन नीना ने हार नहीं मानी। उन्होंने साफ तौर पर कहा, “मैंने वह किया जो मुझे सही लगा और मुझे उस पर गर्व है।”

उनकी बेटी मसाबा गुप्ता आज एक नामी फैशन डिजाइनर हैं और मां-बेटी की यह जोड़ी आज भी प्रेरणा की मिसाल है। नीना और मसाबा की कहानी को वेब सीरीज़ Masaba Masaba में भी दर्शाया गया, जिसे खूब सराहा गया।

सतीश कौशिक: एक दोस्त जो संकट में ढाल बना

किसी भी महिला के जीवन में अगर ऐसा दोस्त हो जो समाज से ऊपर उठकर सिर्फ इंसानियत में भरोसा करे, तो वह कभी नहीं टूट सकती। नीना गुप्ता की जिंदगी में यह रोल निभाया अभिनेता-निर्देशक सतीश कौशिक ने।

जब नीना प्रेग्नेंट थीं और दुनिया की नज़रों में अकेली पड़ गई थीं, सतीश उनके पास आए और कहा, अगर तुम्हारा बच्चा काला निकला, तो मैं कह दूंगा कि यह मेरा है। यह सिर्फ एक मज़ाक नहीं था, बल्कि एक दोस्त की भावना थी — जो हर हाल में साथ देने को तैयार था।

दूसरी पारी और वापसी की कहानी

लंबे समय तक अभिनय के बावजूद नीना गुप्ता को कभी उस स्तर की पहचान नहीं मिली, जिसकी वह हकदार थीं। लेकिन फिर आया साल 2018 — जब फिल्म बधाई हो रिलीज़ हुई। इस फिल्म में एक अधेड़ उम्र की प्रेग्नेंट महिला का किरदार निभाकर नीना ने न सिर्फ दर्शकों को चौंका दिया बल्कि पूरी इंडस्ट्री को अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाया।

इसके बाद उन्हें गुडबाय, पंचायत, शुभ मंगल ज्यादा सावधान, मुल्क, सरदार का ग्रैंडसन , अचारी बुआ जैसी फिल्मों में दमदार किरदारों में देखा गया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि उम्र महज़ एक संख्या है और हुनर की कोई सीमा नहीं होती।

नीना गुप्ता की सोच: आज की महिलाओं के लिए मार्गदर्शन

नीना हमेशा खुलकर बोलने वाली शख्सियत रही हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा Sach Kahun Toh में अपने जीवन के हर पहलू को बेबाकी से सामने रखा — चाहे वो प्रोफेशनल रिजेक्शन हो या निजी संबंधों की कड़वाहट।

एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, कभी किसी शादीशुदा मर्द से प्यार मत करना। बहुत दर्द होता है।” यह उनके जीवन का अनुभव था, जिसे उन्होंने अपने शब्दों में लाखों लड़कियों को सीख के रूप में दिया।

प्रेरणा, आत्मसम्मान और नई सोच की पहचान

नीना गुप्ता की कहानी सिर्फ बॉलीवुड में एक सफल अभिनेत्री बनने की नहीं है, यह उन महिलाओं की कहानी है जो परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ती हैं। उन्होंने समाज की रूढ़ियों को नकारा, अपने फैसलों पर कायम रहीं और खुद को साबित किया।

वह कहती हैं, “मुझे पछतावा नहीं, बल्कि गर्व है कि मैंने अपनी बेटी को अकेले पाला। मैंने कोई गलती नहीं की।” आज नीना गुप्ता एक आदर्श हैं — अभिनय की दुनिया में भी और जीवन की चुनौतियों के सामने डटे रहने में भी।

नीना गुप्ता का जीवन आज लाखों महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने यह सिखाया कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता ही असली ताकत है। चाहे समाज कितना भी विरोध करे, अगर मन मजबूत हो, तो हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।