अनुराग बसु द्वारा निर्देशित फिल्म 'मेट्रो...इन दिनों' रिश्तों की जटिलताओं, भावनाओं और नए जमाने की उलझनों को बड़े ही दिलचस्प ढंग से प्रस्तुत करती है। 'लाइफ इन अ मेट्रो' की तरह ही इस फिल्म में भी म्यूज़िक को कहानी में घुला-मिला कर पेश किया गया है, लेकिन इस बार शैली कुछ नई और अंतरराष्ट्रीय रंग लिए हुए है।
कहानी का सारफिल्म की कहानी कई किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। मुंबई में रहने वाले मोंटी (पंकज त्रिपाठी) और काजोल (कोंकणा सेन शर्मा) की शादी को दो दशक हो चुके हैं, लेकिन आपसी तनाव और दूरी उनके रिश्ते को खोखला बना चुकी है। मोंटी एक डेटिंग ऐप के ज़रिए बाहर रोमांच ढूंढने की कोशिश करता है, जिसका परिणाम हास्यप्रद और भावनात्मक दोनों होता है।
वहीं, काजोल की मां शिवानी (नीना गुप्ता) अपनी बेरंग शादी से ऊबकर पुराने प्रेमी परिमल (अनुपम खेर) से मिलने कोलकाता जाती हैं। दूसरी ओर, काजोल की बेटी चुमकी (सारा अली खान) एक कॉर्पोरेट प्रोफेशनल है, जिसकी ज़िंदगी में परथ (आदित्य रॉय कपूर) और श्रुति (फातिमा सना शेख) की एंट्री से नया मोड़ आता है। श्रुति का संघर्ष मातृत्व और करियर के बीच झूलता है, जबकि उनके पति आकाश (अली फज़ल) अपनी नौकरी छोड़कर गायक बनने के सपने में जीते हैं। इन सभी कहानियों का मेल दर्शकों को एक जज़्बाती और दिलचस्प सफर पर ले जाता है।
निर्देशन और पटकथाअनुराग बसु की कहानी आधुनिक रिश्तों के संघर्षों को बेहद सजीव रूप में प्रस्तुत करती है। फिल्म की लंबाई 162 मिनट है, लेकिन फिल्म पर निर्देशक की पकड़ इतनी मजबूत है कि वह दर्शकों का ध्यान कहीं भटकने नहीं देता है, क्योंकि हर मिनट कुछ न कुछ नया होता है। म्यूज़िकल फॉर्मेट का उपयोग 'जग्गा जासूस' के बाद अनुराग बसु ने और बेहतर किया है। 'लाइफ इन अ मेट्रो' के फैंस को यह शैली एक सुखद अनुभव देगी।
हालांकि, फिल्म की शुरुआत कुछ उलझी सी लगती है और दर्शक किरदारों से जुड़ने में वक्त ले सकते हैं। इसके साथ ही मध्यान्तर के बाद की कुछ घटनाएँ अतिरंजित भी लगती हैं, खासकर मोंटी-काजोल की कहानी में और परिमल का प्लान भी अव्यावहारिक सा प्रतीत होता है।
अभिनयनिर्देशकीय पकड़ के बाद फिल्म का दूसरा सबसे सशक्त पहलू अदाकारों का अभिनय है। फिल्म में सभी कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है, लेकिन बाजी पंकज त्रिपाठी ने मारी है। वे पूरी फिल्म में अपने सभी साथी कलाकारों पर भारी पड़ते हैं। उनके किरदार में जो मासूमियत है, वही उन्हें यादगार बना देती है। कोंकणा सेन शर्मा हमेशा की तरह प्रभावशाली हैं। सारा अली खान सीमित दायरे में ठीक हैं जबकि आदित्य रॉय कपूर अपने किरदार में सहज हैं। फातिमा सना शेख एक बार फिर अपनी सशक्त अभिनय प्रतिभा दिखाती हैं। अली फज़ल, नीना गुप्ता और अनुपम खेर अपने-अपने रोल में शानदार हैं। फिल्म में अनुराग बसु और इम्तियाज़ अली की कैमियो उपस्थिति भी प्रशंसनीय है।
संगीत और तकनीकी पक्षफिल्म का संगीत इसकी जान है। प्रीतम द्वारा रचित 12 से अधिक गानों को बहुत ही खूबसूरती से कहानी में पिरोया गया है। फिल्म के दो गीत ऐसे हैं जिन्हें दर्शक फिल्म देखने के बाद सिनेमाघर से बाहर निकलते हुए गुनगुनाता देखा जा सकता है। यह दोनों गीत 'धागेना तिनक धिन' और 'ज़माना लगे' सबसे प्रभावशाली हैं। इसके अलावा, संवादों को गीतों के रूप में प्रस्तुत करना फिल्म को अलग पहचान देता है। सिनेमैटोग्राफी, बैकग्राउंड स्कोर और लोकेशन्स फिल्म की गुणवत्ता को और ऊंचा उठाते हैं।
'मेट्रो...इन दिनों' एक ताजगी भरी, संगीत प्रधान फिल्म है जो रिश्तों की उलझनों को बेहद ईमानदारी और भावनात्मक गहराई से प्रस्तुत करती है। फिल्म हास्य, ड्रामा, संगीत और संवेदनाओं का अद्भुत मिश्रण है। मल्टीप्लेक्स दर्शकों के बीच यह फिल्म निश्चित रूप से लोकप्रिय हो सकती है और बॉक्स ऑफिस पर संतोषजनक प्रदर्शन कर सकती है।