'मैं उतना मर्द नहीं था, इसलिए कोई मेरे साथ खेलना नहीं चाहता था' — बचपन की यादों में डूबे करण जौहर

अपनी फिल्मों और बेबाक अंदाज़ के लिए पहचाने जाने वाले करण जौहर ने हाल ही में अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी एक मार्मिक कहानी साझा की है। जय शेट्टी के साथ बातचीत में करण ने बताया कि बचपन में वे खुद को दूसरों से बिल्कुल अलग पाते थे और इसी कारण उनके साथ कोई बच्चा खेलना नहीं चाहता था। करण का कहना है कि उन्होंने बचपन में 'मर्दाना' मानकों को पूरा नहीं किया और इसका असर उनके आत्मविश्वास पर पड़ा।

फिल्म निर्माता और निर्देशक करण जौहर, जो बॉलीवुड में अपने अनोखे स्टाइल और बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं, ने हाल ही में एक साक्षात्कार में अपनी भावनात्मक यात्रा को साझा किया। जय शेट्टी के साथ एक बातचीत में करण ने बताया कि बचपन में उन्हें बहुत अलग महसूस होता था और समाज की पारंपरिक 'मर्दाना' उम्मीदों पर खरे न उतरने के कारण वे अकेलेपन और अस्वीकृति का शिकार रहे।

करण ने बताया, “80 के दशक में, जब मैं बड़ा हो रहा था, मुझे खुद नहीं पता था कि मैं क्या हूं। मेरा हेडस्पेस बहुत कन्फ्यूज था। मैं अपनी उम्र के लड़कों जैसा नहीं था। मुझे खेलों में दिलचस्पी नहीं थी, मेरी चाल, मेरी आवाज़ और बातचीत करने का तरीका बाकियों से अलग था।” करण ने यह भी कहा कि वे फुटबॉल या क्रिकेट टीम का हिस्सा बनना चाहते थे, लेकिन कोई उन्हें चुनता नहीं था क्योंकि वे ‘उतने मर्द’ नहीं थे जितना समाज अपेक्षा करता था।

उन्होंने कहा, “हम अपार्टमेंट में रहते थे, जहां हर शाम सभी बच्चे नीचे खेलने आते थे। मैं बस उनके साथ रहना चाहता था, टीम का हिस्सा बनना चाहता था, लेकिन मैं कभी चुना नहीं जाता था। वो मुझे नहीं चुनते थे क्योंकि मैं उतना अच्छा खिलाड़ी नहीं था, उतना स्पोर्टी नहीं था, और शायद उतना मर्द नहीं था।”

करण जौहर ने इस बातचीत में उन सामाजिक मानकों पर भी सवाल उठाए जिनके आधार पर बचपन में बच्चों को ‘मर्द’ या ‘औरतों जैसा’ कहकर आंका जाता है। उन्होंने माना कि उनके शौक, पसंद और जीवन के चुनाव बाकी बच्चों से अलग थे और यही चीज़ें उन्हें अलग बनाती थीं — पर उस समय यह भिन्नता उनके लिए पीड़ा का कारण बनी।

जय शेट्टी के साथ हुई इस बातचीत में करण की आने वाली फिल्म धड़क 2 की चर्चा भी हुई, लेकिन सबसे अधिक ध्यान खींचा उनके आत्म-स्वीकृति के इस सफर ने, जिसमें उन्होंने अपने बचपन के भावनात्मक संघर्षों को ईमानदारी से साझा किया।

करण जौहर के इस बयान ने एक बार फिर यह साबित किया है कि ग्लैमर की दुनिया में चमक के पीछे भी दर्द की कई परतें होती हैं। उनका यह खुलासा न केवल उन्हें और अधिक मानवीय बनाता है, बल्कि यह भी बताता है कि समाज को अब लैंगिक अपेक्षाओं से ऊपर उठकर संवेदनशीलता और स्वीकार्यता की ओर बढ़ना चाहिए।