अपनी खास शैली से दिल जीतने वाले कैलाश खेर हुए 48 के, जानें सिंगर से जुड़ी कुछ और बातें

गायक कैलाश खेर आज यानी 7 जुलाई को अपना 48वां जन्मदिन मना रहे हैं। फैंस उन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से विश कर रहे हैं। कैलाश एक पॉप-रॉक गायक हैं जिनकी शैली भारतीय लोक संगीत से प्रभावित है। वे 18 भाषाओं में गा चुके हैं। उनके खाते में 300 से ज्यादा बॉलीवुड गीत हैं। कैलाश का जन्म मेरठ में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। कैलाश ने शुरुआती पढाई दिल्ली से पूरी की। उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था। जब वे 12 साल के थे, तभी से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। उन्होंने पाकिस्तानी सूफी गायक नुसरत फतेह अली खान से प्रेरणा ली। कहते हैं कि कैलाश ने 13 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था।


कैलाश से कद में लम्बी हैं उनकी पत्नी शीतल

कैलाश की शादी 2009 में शीतल खेर से हुई है। वह उनसे उम्र में 11 साल छोटी है। दोनों के एक बेटा है। शीतल कद में कैलाश से लंबी हैं। कैलाश जहां 5 फीट 2 इंच के हैं, वहीं शीतल की हाइट करीब साढ़े 5 फीट की है। कैलाश पूरी दुनिया में करीब 1000 से ज्यादा म्यूजिक कॉन्सर्ट में परफॉर्म कर चुके हैं। वर्ष 2017 में भारत सरकार कैलाश खेर को पद्मश्री अवार्ड से नवाज चुकी है।

अल्ला के बंदे हंस दे…गाने से मिली शोहरत

कैलाश को शुरुआत में बेहद संघर्ष करना पड़ा। उन्हें पहचान अक्षय कुमार की फिल्म अंदाज से मिली। इसमें उन्होंने 'रब्बा इश्क ना होवे' गाने में आवाज दी। इसके बाद उन्होंने 2003 में आई फिल्म वैसा भी होता है में 'अल्ला के बंदे हम' गाने में आवाज दी, जो उनका अब तक का सबसे प्रसिद्ध और हिट गाना है। इन दोनों गानों से कैलाश अव्वल दर्जे के गायकों की श्रेणी में शुमार हो गए। वर्ष 2006 में कैलाश का गाना ‘तेरी दीवानी…’ फैंस के सामने पेश हुआ। इस गाने ने तहलका मचा दिया था।


सूफी गाने हैं कैलाश की पहचान

कैलाश हिंदी सिनेमा में सूफी गानों के लिए जाने जाते हैं। मल्टीस्टारर फिल्म सलामे इश्क में उन्होंने या रब्बा… गाने में अपनी आवाज दी। यह गाना उस दौर का सबसे हिट गाना साबित हुआ था। उनकी गायकी का परचम सिर्फ हिंदी सिनेमा में ही नहीं बल्कि कन्नड़ और तेलुगु सिनेमा में भी लहरा रहा है।

डिप्रेशन का हुए थे शिकार, करना चाहते थे सुसाइड!

वर्ष 1999 के आस-पास कैलाश को जब सफलता नहीं मिली तो वे खासा निराश हो गए और एक दोस्त के साथ बिजनेस करने लगे। लेकिन यहां भी कैलाश को परेशानी ही झेलनी पड़ी। बताया जाता है कि व्यापार में तगड़ा घाटा होने से वे डिप्रेशन में चले गए थे और आत्महत्या तक करने की सोच रहे थे। बाद में मुंबई में एक दिन उनकी मुलाक़ात संगीतकार राम संपत से हुई और यहीं से उन्हें सही दिशा मिल गई। राम संपत ने उन्हें कुछ रेडियो जिंगल गाने का मौका दिया।