मत रोको इन्हें पास आने दो, ये मुझसे मिलने आए हैं. . . . .जावेद अख्तर

भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में अपना डंका बजा चुके जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पूरे विश्व के साहित्यकारों को मंच प्रदान किया जाता है। जहाँ पहुंचकर वे अपनी बात को बेबाकी के साथ श्रोताओं के सामने रखते हैं। हालांकि पिछले दो-तीन सीजन इस फेस्टिवल के काफी विवादास्पद रहे थे लेकिन इस बार कोई विवाद उत्पन्न नहीं हुआ है।

जेएलएफ के दूसरे दिन बॉलीवुड के ख्यातनाम व्यक्ति जावेद अख्तर अपनी पत्नी शबाना आजमी के साथ उपस्थित हुए। इस दौरान उन्होंने मीडिया से कई पहलुओं पर बातचीत की। इस बातचीत के मध्य उन्होंने अपने पिता की नज्म आखरी मुलाकात सुनाई जो उन्होंने हॉस्पिटल में डिक्टेट की थी: मत रोको इन्हें पास आने दो, ये मुझसे मिलने आए हैं, मैं खुद न जिन्हें पहचान सकूँ, कुछ इतने धुंधले साए हैं। दो पांव बने हरियाली पर, इक तितली बैठी डाली पर, कुछ जगमग जुगनू जंगल से, कुछ झूमते हाथी बादल से, ये एक कहानी नींद भरी, इक तख्त पर बैठी एक परी। कुछ गिन गिन करते परवाने, दो नन्हें नन्हें दस्ताने, कुछ उड़ते रंगीन गुब्बारे, बब्बे के दुपट्टे के तारे, यह चेहरा बन्नो बूढ़ी कर, ये टुकड़ा माँ की चूड़ी का... ये मुझसे मिलने आए हैं, मत रोको इन्हें पास आने दो, ये मुझसे मिलने आए हैं...

जावेद अख्तर ने जिस तरह से इस नज्म का पाठ किया उसकी तारीफ के शब्द नहीं हैं हमारे पास। नज्म को बोलते वक्त उनकी आँखों और चेहरे पर आए भावों को देखकर महसूस हो रहा था कि वे अपने पिता को शिद्दत से याद कर रहे हैं।