दिग्गज अभिनेता अजय देवगन की फिल्म ‘मैदान’ इस साल अप्रैल में सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। इसमें अजय ने मशहूर फुटबॉलर सैयद अब्दुल रहीम का रोल प्ले किया था। फिल्म से काफी उम्मीदें थीं, जिन पर यह खरी नहीं उतर पाई। क्रिटिक्स की तारीफ के बावजूद फैंस ने इसे नकार दिया। फिल्म फ्लॉप रही और इसने महज 70 करोड़ रुपए कमाए। फिल्म के निर्माता बोनी कपूर ने अब इस पर बात की है। बोनी ने न्यूज 18 के साथ बातचीत में कहा कि ‘मैदान’ के फ्लॉप होने के बाद स्वाभाविक रूप से मैं परेशान था।
मैं कुछ दिनों तक अकेला रहा, लेकिन फिर आगे बढ़ने का फैसला किया। राज कपूर सबसे सफल फिल्म निर्माता थे। उन्होंने कई हिट और ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं, उनकी भी ऐसी फिल्में थीं, जो उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं। ‘मैदान’ एक बेहतरीन फिल्म थी, क्योंकि रिलीज से पहले हर कोई फिल्म की तारीफ कर रहा था। मैंने बॉलीवुड इंडस्ट्री के लोगों के लिए कई स्क्रीनिंग रखीं और हर कोई फिल्म देखकर खुश था और कहानी की तारीफ कर रहा था।
कई डायरेक्टर्स ने मुझे फोन किया और आश्चर्य जताया कि पता नहीं क्यों ये बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुई। हालांकि मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक हो सकती है। अजय एक बेहतरीन अभिनेता हैं। उनकी फिल्में काफी अच्छी होती हैं, लेकिन ‘मैदान’ शायद पर्याप्त भीड़ को सिनेमाघरों में नहीं खींच पाई। शायद मैं ही ढंग से कहानी को नहीं दिखा पाया। कुल मिलाकर मुझे अपनी फिल्म पर गर्व है और हमेशा रहेगा।
फिल्म की शूटिंग के दौरान नाना के लिए खुद जूते लेकर आए थे सूरजनाना पाटेकर कई सालों से एक्टिंग की दुनिया में एक्टिव हैं। वे इन दिनों अपनी फिल्म वनवास को लेकर खबरों में हैं। फिल्म 20 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। हालांकि फिल्म को फैंस से कोई खास रिस्पोंस नहीं मिला, लेकिन 73 वर्षीय नाना के अभिनय की प्रशंसा हो रही है। इस बीच नाना ने प्रख्यात फिल्म निर्माता सूरज बड़जात्या की जमकर तारीफ की है। नाना ने सूरज के साथ अपने शुरुआती दौर में ‘प्रतिघात’ फिल्म में काम किया था।
नाना ने कहा कि सूरज की फिल्मों के सेट पर एक पारिवारिक माहौल होता है। भले ही वे एक बड़े बिजनेसमैन हैं, लेकिन उनकी विनम्रता अद्भुत है। वे तब राजश्री प्रोडक्शन के संभावित मालिक थे। एक दिन सूरज मेरे लिए जूते लेकर आए। मैंने उनसे कहा कि ऐसा मत करो, मैं खुद जूते ले सकता हूं। लेकिन उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि नहीं, सर। मैंने फिर कहा कि सूरज, तुम इस बड़े संगठन के वारिस हो, ऐसा करना मत।
तब उन्होंने कहा कि मैं असिस्टेंट हूं, यही मेरा काम है। इस घटना के कई सालों बाद हम किसी समारोह में मिले। उन्होंने मुझे आते देखा और फिर से हाथ जोड़कर झुके। मैं हैरान था कि उनमें जरा भी बदलाव नहीं आया है। वह पहले जैसे ही सरल हैं। उनकी अच्छाई का दिखावा नहीं है, बल्कि वह सच में ऐसे ही हैं। इसलिए जब भी मैं उनसे मिलता हूं, मुझे अच्छा लगता है।