शिवसेना जैसे बडे राजनीतिक दल की स्थापना करने वाले और महाराष्ट्र की राजनीति में अहम् स्थान रखने वाले बाल ठाकरे की जिन्दगी पर बन रही फिल्म ‘ठाकरे’ के कुछ दृश्यों पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति जताई है। इसे लेकर सेंसर बोर्ड और निर्माता आमने-सामने की स्थिति में आ गए हैं।
सेंसर बोर्ड ने ‘ठाकरे’ फिल्म में आए तीन संवादों पर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है। फिल्म के लेखक-निर्माता और शिवसेना सांसद संजय राउत सेंसर बोर्ड की इस आपत्ति को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। वे इन संवादों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं। इससे सेंसर बोर्ड के साथ उनके टकराव की स्थिति बन गई है।
जिन तीन संवादों को लेकर टकराव है, उनमें से दो दक्षिण भारतीयों के सम्बन्ध में कहे गये हैं और एक संवाद अयोध्या के विवादित बाबरी मस्जिद के ढाँचे पर है। फिल्म के लेखक-निर्माता और शिवसेना सांसद संजय राउत ने पत्रकारों से चर्चा में कहा है कि बाला साहेब ठाकरे का 50 साल से अधिक लम्बा सामाजिक और राजनीतिक जीवन रहा है। उनकी जिन्दगी को हम जस की तस दिखा रहे हैं, इसलिए हमारी फिल्म पर ऑब्जेक्शन का कोई कारण नहीं है।
ज्ञातव्य है कि पिछले बुधवार को इस फिल्म का ट्रेलर जारी किया गया था। ट्रेलर की शुरूआत मुंबई में हुए दंगों के दृश्य से होती हुई दिखायी गई है। इसी दौरान पृष्ठभूमि में एक आवाज आती है, ऐसे वक्त में केवल एक ही आदमी मुंबई को शांत करवा सकता है। आवाज के बंद होने के साथ ही ठाकरे के रूप में नवाजउद्दीन सामने आते हैं।
ट्रेलर में बाल ठाकरे के आम आदमी से सीएम बनने और उसके बाद एक कद्दावर इंसान बनने तक का सफर दिखाया गया है। उन्होंने कैसे मराठी मानुष का आंदोलन खडा किया, कैसे राजनीति में प्रवेश किया, कैसे शिवसेना की स्थापना हुई यह सब कुछ दिखाने का प्रयास किया गया है। 2.54 मिनट के ट्रेलर में सिर्फ नवाजउद्दीन ही छाए हैं। सबसे बडी बात यह है कि मराठी ट्रेलर में वे विवादित संवाद भी हैं, जिन पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति की है। क्या ट्रेलर पर सेंसर की कैंची नहीं चलती है, जो उन पर फिल्म प्रदर्शन के दौरान आपत्ति दर्ज करवाई जा रही है।