निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ पहले ‘पद्मावती’ राजनीतिक शंतरज का शिकार हुई। इस फिल्म को सोची समझी गई रणनीति के तहत विरोध का शिकार होना पड़ा। उद्देश्य था आगामी लोकसभा व कई राज्य विधानसभा चुनाव। चुनाव में राजपूत वोटों की चाह में फिल्म को बलि का बकरा बनाया गया। इस बात का खुलासा देश के जाने-माने इतिहासकार ने पद्मावत पर हुए फसाद पर किया। हालांकि उन्होंने अपना नाम नहीं बताया। बॉलीवुड लाइफ डॉट कॉम के अनुसार इसके पीछे उन्होंने यह तर्क दिया कि नाम से लोग समझ जाएंगे कि मैं हिंदू नहीं हूँ और तब मेरी बातों को शायद कुछ लोग उसी नजरिए से लेंगे।
हाल ही में दिए अपने एक साक्षात्कार में इस इतिहासकार ने एक न्यूज एजेंसी से कहा, ‘यह इस देश का दुर्भाग्य है कि बिना इतिहास को समझे फिल्म को लेकर इतना हल्ला मचाया गया। राजपूती शान में सडक़ों पर उतरने वाली इस भीड़ ने अगर पद्मावत पढ़ ली होती तो यह फसाद होता ही नहीं।’
गौरतलब है कि संजय लीला भंसाली की यह फिल्म 16वीं सदी में लिखे मलिक मोहम्मद जायसी के सूफी महाकाव्य पर आधारित है, जो कि पूरी तरह से काल्पनिक है। पद्मावत में पद्मावती राजपूत भी नहीं हैं। वह श्रीलंका की राजकुमारी थी। चित्तौड् का राजा रतनसिंह पद्मावती के पिता को युद्ध में माकर उसकी बेटी को ब्याहकर लाता है। कहानी में पद्मावती बुद्धि और मानवीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। चित्तौड़ का पड़ोसी राजा पद्मावती के पास संदेश भेजकर उनसे शादी की इच्छा व्यक्त करता है, लेकिन जब रतनसिंह को यह वाकया पता चलता है तो दोनों राजाओं के बीच युद्ध होता। इस युद्ध में दोनों मारे जाते हैं, जिसके बाद दोनों राजाओं की रानियाँ जौहर कर लेती हैं।
जबकि संजय लीला भंसाली की फिल्म इससे हटकर बयां करती है। फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के पद्मावती के प्रति आसक्त होना बताया गया है। इस बारे में इन इतिहासकार का कहना था, ‘यह समझने की जरूरत है कि पद्मावत 16वीं सदी में लिखी गई, जबकि अलाउद्दीन खिलजी 13-14वीं सदी का सुल्तान था। पद्मावत अवधी भाषा में लिखी गई है और इसके रचयिता जायसी पूर्वी उत्तरप्रदेश के जायस से ताल्लुख रखते थे। उन्होंने राजस्थान की पृष्ठभूमि से जुड़ी एक सुनी हुई कहानी पर पद्मावत महाकाव्य लिखा। 17वीं शताब्दी में राजस्थान के किसी राजपूत परिवार ने ऐसी कहानियों का संकलन किया। उन कहानियों का एक अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टॉड ने अंग्रेजी में अनुवाद कर उसे एक किताब का नाम दिया लीजेंड्स ऑफ राजपूताना’। इसका बाद में हिन्दी और बांगला में अनुवाद किया गया। 19वीं सदी से पहले राजस्थान में पद्मावती का कोई जिक्र नहीं है। 19वीं सदी के बाद ही पद्मावती और खिलजी की कहानियाँ बनती चली गईं।
अम्बेडकर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की प्रोफेसर तनुजा कोठियाल ने खिलजी और पद्मावती के प्रसंग के बारे में कहा है, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि खिलजी इतिहास के क्रूरतम शासकों में शुमार रहा है। यह भी सच्चाई है कि उसने चित्तौड़ पर हमला किया था, लेकिन इसका कारण पद्मावती नहीं थी, बल्कि गुजरात का रास्ता राजस्थान से होकर गुजरता था। वह दिल्ली सल्तनत को बढ़ाना चाहता था।’ इसके साथ ही उनका कहना है कि ‘पद्मावत में जिस खिलजी का जिक्र किया गया है, वह अलाउद्दीन खिलजी नहीं, बल्कि जियासुद्दीन खिलजी है। खिलजी 13वीं सदी का शासक था, जबकि पद्मावत 16वीं सदी में लिखा गया और उस समय खिलजी नहीं था। एक और और जिस समय पद्मावत लिखा गया, उस समय रतन सिंह चित्तौड़ का राजा भी नहीं था।’
भंसाली की पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी और उनके गुलाम मलिक काफूर के बायसेक्सुअल संबंधों ने भी काफी सुर्खियाँ बटोरी हैं। इस बारे में उनका कहना है कि, इतिहास में इनके संबंधों का जिक्र है और यह उस दौर के हिसाब से नया नहीं है। उस दौर के कई शासकों के इस तरह के संबंध होते थे। मुगलकाल के प्रथम शासक बाबर के बारे में भी ऐसा कहा गया है।
इतिहास में यह दर्ज है कि काफूर की हत्या खिलजी के पुत्र ने की थी। इस बारे में तनुजा का कहना है कि मलिक काफूर खिलजी का करीबी था। उसे खिलजी का साया कहा जा सकता है। वह खिलजी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था, लेकिन यह भी सच है कि बीमारी की वजह से खिलजी की मौत होने के बाद काफूर ने ही सल्तनत संभाली लेकिन खिलजी के बेटे ने काफूर के षडयंत्र की सूचना मिलने पर उसे मार डाला था।