शाहिद को सिद्ध करना होगा अपना स्टारडम, तभी होगी 21 करोड़ की वसूली

शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) ने हाल ही में घोषणा की है कि उन्होंने अपनी फीस बढ़ा दी है। न सिर्फ बढ़ाई है अपितु डबल कर दी है। पहले एक फिल्म के लिए 8-10 करोड़ लेने वाले शाहिद कपूर अब 20 से 22 करोड़ प्रति फिल्म मांग रहे हैं। कहा जा रहा है कि करण जौहर (Karan Johar) ने उन्हें अपने बैनर की फिल्म ‘जर्सी’ के लिए 22 करोड़ की भारी राशि देने का वादा किया है। शाहिद कपूर (Shahid Kapoor) के करिअर में कबीर सिंह (Kabir Singh) से जो बदलाव आया है वह हर सितारे के करिअर में एक बार अवश्य आता है। यह सितारे के ऊपर निर्भर करता है कि वह उसे किस तरह से अपने साथ जोड़े रखने में सफल होता है। सलमान खान (Salman Khan) ने ‘वांटेड’ के बाद जिस तरह से स्वयं को सम्भाला उसने ही उन्हें बॉलीवुड का दबंग खान बनाया। शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) अपने करिअर में शीर्ष पर होते हुए स्वयं को भगवान समझने लगे तो दर्शकों ने उन्हें ऐसा जमीन पर गिराया है कि वे अब अपने लिए जमीन तलाशते फिर रहे हैं।

ऐसे में शाहिद कपूर ‘कबीर सिंह (Kabir Singh)’ की सफलता को अपने साथ रखने में कितना कामयाब होते हैं यह उनकी आने वाली फिल्मों से पता चलेगा। हाल ही में उन्होंने ‘जर्सी’ के अतिरिक्त बॉक्सर ‘डिंग्का सिंह’ की बॉयोपिक में काम करने की स्वीकृति दी है। यह दोनों फिल्में ऐसी हैं जो अलग-अलग मिजाज की हैं। जबकि ‘कबीर सिंह’ आम फार्मूला फिल्म रही है, जो दर्शकों को हमेशा याद रहेगी। करिअर की सफलता के शुरूआत में अचानक से जोनर को बदलकर शाहिद गलती कर रहे हैं। उन्हें ऐसी फिल्मों को तवज्जो देनी चाहिए जिनमें उनकी भूमिका कबीर सिंह से मिलती जुलती हो न कि ऐसी फिल्मों को जहाँ उनका किरदार दबा हुआ नजर आए। ‘जर्सी’ तेलुगू की सुपर हिट फिल्म का रीमेक है। दक्षिण के दर्शक हर नई कहानी को पसन्द करता है जबकि उत्तर भारतीय दर्शक सांप निकलने के बाद उसकी लकीर को पीटना ज्यादा पसन्द करता है। अर्थात् वो सितारे की उन्हीं फिल्मों को पसन्द करता है जिस तरह की फिल्म को वो पहले पसन्द कर चुका है।

जो निर्माता शाहिद (Shahid Kapoor) को लेकर फिल्में बनाना चाहते हैं उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि शाहिद में वो माद्दा नहीं है जो अपनी हर फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर हिट करवा सके। यदि ऐसा होता तो ‘हैदर’ के बाद आई उनकी ‘रंगून’ सिनेमाघरों का किराया निकालने के साथ ही लागत निकालने में सफल होती। कबीर सिंह की सफलता में शाहिद के अभिनय का बड़ा योगदान है लेकिन उससे ज्यादा अहमियत इस फिल्म की पटकथा, लेखक और निर्देशक की है जिन्होंने इस तरह के दृश्यों की रचना की जो आम तौर पर फिल्मों में दिखाई नहीं देते हैं। उदाहरण के तौर पर औरत की तलाश में भटकते युवा को जब वह नहीं मिलती है तो वह अपने मुख्य अंग पर बर्फ को मसलने लगता है। यह एक ऐसा दृश्य है जो यह बताता है कि वह अपनी आग को ठंडा कर रहा है। क्या कोई निर्देशक या लेखक इससे पहले ऐसे दृश्य की कल्पना कर सका है। नौकरानी के हाथों गलती से गिलास टूटने पर उसे मारने को दौड़ता नायक क्या आपने कभी देखा है। ऐसे बहुत से दृश्य हैं जो इस फिल्म की सफलता में अपनी अहम् भूमिका दर्शाते हैं। इसी के चलते शाहिद कपूर पर 21 करोड़ का दांव लगाना समझ से परे है। अब यह शाहिद पर है कि वे कैसे अपने निर्माताओं का विश्वास बनाए रखने में कामयाब होते हैं, क्योंकि हर फिल्म ‘कबीर सिंह’ नहीं होती और हर निर्देशक ‘संदीप रेड्डी वांगा’ नहीं होता।