फिल्म समीक्षा - 'मुक्काबाज' : अनुराग कश्यप की सशक्त वापसी का दस्तावेज, रेटिंग: 4 स्टार

'बॉम्बे वेलवेट' की असफलता के बाद एक बार फिर से अनुराग कश्यप दर्शकों के सामने हाजिर हुए हैं। अनुराग कश्यप का सिनेमा बॉलीवुड से हटकर है। उनकी फिल्में समाज को आइना दिखाती हैं, स्वप्न नहीं। वास्तविकता के धरातल पर फिल्में बनाने वाले अनुराग कश्यप की 'मुक्काबाज' सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई है। टोरंटो फिल्म समारोह और मामी फिल्मोत्सव में स्टैंडिंग ओवेशन पाने वाली 'मुक्काबाज' अपने घर में दर्शकों को तरस रही है। प्रात:कालीन शोज में बमुश्किल 10 प्रतिशत दर्शक इस फिल्म को देखने आए।

'मुक्काबाज' बॉक्सिंग पर आधारित एक प्रेम कहानी है, जिसमें हर वो तत्त्व मौजूद है जो एक मसाला फिल्म में होता है। अनुराग कश्यप ने पूरी तरह से एक मसाला फिल्म बनाई है लेकिन अपने अंदाज में। उन्होंने 'खेल' में राजनीतिक दखलंदाजी को खुलकर दिखाया है। फिल्म में प्रेम दृश्य भी हैं लेकिन आम बॉलीवुड फिल्मों की तरह नहीं।

तकनीकी दृष्टि से फिल्म बहुत मजबूत है। अपने कथानक और प्रस्तुतीकरण के चलते 'मुक्काबाज' दर्शकों पर गहरा प्रभाव डालती है। अनुराग कश्यप ने जिस अंदाज में बैक ग्राउण्ड स्कोर का प्रयोग किया है, वह हॉलीवुड फिल्मों की याद दिलाता है। फिल्म को उजले रंगों के स्थान पर घूसर रंग में फिल्माया गया है, जहाँ अंधेरे के साथ मटमैली रोशनी नजर आती है।

विजेन्द्र सिंह लिखित और अभिनीत यह फिल्म अनुराग कश्यप की ''गैंग्स ऑफ वासेपुर' का मुकाबला तो नहीं करती है किन्तु यह बॉलीवुड को उसका असली चेहरा दिखाती है। अनुराग कश्यप ने विजेन्द्र सिंह के कथानक में अपना तडक़ा लगाया है। राजनीति में जकड़े खेल को उन्होंने सशक्त संवादों के जरिए उतारा है। अपने विषय और प्रस्तुतीकरण के कारण यह फिल्म दंगल और सुल्तान से कहीं ऊपर है। सितारों ने डूब कर काम किया है जो उनकी भावाभिव्यक्ति से नजर आता है।

अनुराग कश्यप की इस फिल्म को हर वर्ग के दर्शक को एक बार जरूर देखना चाहिए। सीमित लागत और संसाधनों से बनी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल होगी इसमें कोई दोराय नहीं है। फिल्म की सफलता बॉलीवुड के नवांगुत फिल्मकारों को प्रेरित करेगी।