Movie Review: बेहतरीन अभिनय से सजी है ELKDTAL, झलकते हैं आँख से आँसू

लगभग 23 साल पूर्व निर्मात्री, अभिनेत्री और निर्देशिका दीपा मेहता ने बॉलीवुड में समलैंगिक रिश्तों पर ‘फायर’ नामक फिल्म बनाई थी, जिसने बॉलीवुड को अन्दर तक हिला कर रख दिया था। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म ने आग लगा दी थी। फिल्म का जबरदस्त विरोध भी हुआ था लेकिन यह बॉलीवुड की पहली ऐसी फिल्म बनी जिसमें होमोसेक्सुअल को उजागर किया गया था। वक्त बदला बॉलीवुड बदला और समलैंगिक रिश्तों को लेकर न खुलकर चर्चा होती है अपितु समाज इन रिश्तों को स्वीकार करने लगा है। आज ऐसी ही फिल्म ‘एक लडक़ी को देखा तो ऐसा लगा’ देखने का मौका मिला जिसने अपने कथानक और प्रस्तुतीकरण के चलते दर्शकों की आँखों में आँसू लाने में सफलता प्राप्त की है। इस विषय पर फिल्म बनाना विधु विनोद चोपड़ा का सराहनीय कदम है और तारीफ करेंगे सोनम कपूर की जिन्होंने इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है। करण जौहर ने भी कुछ वर्ष पूर्व अपनी फिल्म कपूर एण्ड संस में इस मुद्दे को उठाया था लेकिन उनका प्रयास बहुत हल्का था, यहाँ लेखिका-निर्देशिका शैली चोपड़ा धर ने उसे बहुत शिद्दत से उठाया है।

वर्ष 2019 फिल्म उद्योग के लिए यादगार साबित होने जा रहा है। पिछले महीने में प्रदर्शित हुई ‘उरी’ के बाद इस माह की शुरूआत में एक और बेहतरीन फिल्म देखने को मिली है। शैली चोपड़ा धर के निर्देशन में बनी ‘एक लडक़ी को देखा तो ऐसा लगा’ देखते हुए जहाँ रोंगटे खड़े हो जाते हैं वहीं दूसरी ओर फिल्म के कई ऐसे दृश्य हैं जो आँख में आँसू ला देते हैं। अरसे बाद कोई ऐसी फिल्म आई है जिसको देखते हुए महिला दर्शक न सिर्फ रूआंसी हो रही हैं अपितु उनकी आँखों से झर-झर करके पानी बहने लगता है।

कहानी

फिल्म की कहानी पंजाब के शहर मोगा में रहने वाले एक पंजाबी परिवार की है, जो अपनी लडक़ी स्वीटी (सोनम कपूर) की शादी के लिए लडक़ा ढूंढ़ रहे हैं। इसके लिए वह समाज की शादियाँ और शादी कराने वाली वेबसाइट का सहारा ले रहा है। कहानी में रोचक मोड़ तब आता है जब स्वीटी से नाटककार साहिल मिर्जा को प्यार हो जाता है। घटनाओं के उतार-चढ़ाव के बाद साहिल को इस बात का पता चलता है कि स्वीटी समलैंगिक है। उसे कुहु नामक लडक़ी से प्यार है। इस बात की जानकारी परिवार को स्वीटी के बड़े भाई से मिलती है और पूरा परिवार उसके विरोध में हो जाता है। ऐसे में समाज और परिवार को समझाने में साहिल स्वीटी का मददगार बनता है। क्या समाज और परिवार इस बात को स्वीकार कर पाएगा यही फिल्म का मूल विषय है। इसको जानने के लिए दर्शकों को सिनेमाघर जाना ही पड़ेगा।

अदाकारों की अदाकारी

जितना फिल्म का कसा हुआ कथानक है उतना ही शानदार फिल्म का निर्देशन और अदाकारों की अदाकारी है। सोनम कपूर और अनिल कपूर के अभिनय का एक नया रूप देखने को मिला है। बेहतरीन कैमिस्ट्री है इन दोनों की। अनिल कपूर ने समृद्ध परिवार के मुखिया और एक बेबस बाप के रूप में बड़े परदे को जीवंत कर दिया है। फिल्म देखते हुए ऐसा महसूस हो रहा था जैसे हम अनिल कपूर के वास्तविक घर की परिस्थितियों को देख रहे हैं। अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर के नक्शे कदम पर चलते हुए अनिल कपूर ने चरित्र अभिनेता के तौर पर इस फिल्म के जरिये अपने आपको स्थापित किया है। इन दोनों के बाद सर्वाधिक प्रशंसित काम किया है राजकुमार राव ने, वे फिल्म की रीढ़ की हड्डी की तरह हैं। उनके बिना फिल्म का कथानक पूरा नहीं हो पाता है।

फिल्म का निर्देशन शैली चोपड़ा धर का है, जिन्होंने इस फिल्म की कथा-पटकथा भी लिखी है। तीनों मोर्चों पर उन्होंने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई है। फिल्म को उन्होंने बेहद ही संवेदनशीलता और खूबसूरती के साथ परदे पर उकेरा है। फिल्म के हर दृश्य में उनकी पकड़ नजर आती है। इसमें उनका साथ दिया है एडिटर ने, जिन्होंने फिल्म की गति और तारतम्य को बनाए रखा है। फिल्म की फोटोग्राफी लाजवाब है, गीत संगीत अच्छा है और सबसे बड़ी बात पूरी फिल्म को बिना किसी झिझक के बच्चों सहित बड़ों के साथ एक साथ बैठकर देखा जा सकता है।