दीवार ने पूरे किए 44 साल, एक नजर इस कालजयी फिल्म पर

वर्ष 1975 में 24 जनवरी को प्रदर्शित हुई निर्देशक यश चोपड़ा की फिल्म ‘दीवार’ आज अपने प्रदर्शन के 44 साल पूरे कर रही है। 44 साल के लंबे अन्तराल के बाद भी यह फिल्म दर्शकों के जेहन में ऐसी बसी है जैसे कल ही यह प्रदर्शित हुई हो। जिन दर्शकों ने अमिताभ बच्चन की इस फिल्म को देखा है वो इसे भूल नहीं पाए हैं। इस फिल्म का एक-एक संवाद, एक-एक दृश्य उनके दिमाग में रच बस गया है। उस वक्त की पीढ़ी अपनी आज की पीढ़ी को अमिताभ बच्चन का जिक्र आते ही इस फिल्म का जिक्र करना शुरू कर देती है। यश चोपड़ा निर्देशित यह कालजयी फिल्म अमिताभ बच्चन, शशि कपूर और निरुपा राय के बीच कई झकझोरने वाले दृश्यों और संवादों के लिए विख्यात है।

मुम्बई के मिनर्वा सिनेमा घर और राजस्थान की राजधानी जयपुर के जैम सिनेमा घर (अब बंद हो चुका) में प्रदर्शित हुई यह फिल्म उस वर्ष की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म साबित हुई थी। उस वर्ष के फिल्मफेयर पुरस्कारों में इस फिल्म ने सात पुरस्कार अपनी झोली में डाले थे। ‘जंजीर’ के जरिये एंग्रीयंगमैन की छवि को पाने वाले अमिताभ बच्चन को इस फिल्म ने जबरदस्त मजबूती प्रदान की थी। दीवार की कथा, पटकथा और संवाद सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखे थे।

इस फिल्म का एक दिलचस्प वाक्या है। दीवार के पोस्टरों में अमिताभ बच्चन का खाकी पैंट और नीली डेनिम शर्ट पहने का लुक बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस दृश्य में अमिताभ के दोनों हाथ अपनी कमर पर हैं, शर्ट के बटन खुले हैं और उन्होंने अपनी शर्ट को कमर से गांठ लगाकर बांधा हुआ है। उनके बायें कंधे पर रस्सी लटकी है। जितनी देर तक अमिताभ बच्चन परदे पर कुली के किरदार में नजर आए थे, उन्होंने यही ड्रेस पहनी हुई थी। अपने इस लुक के बारे में एक बार अमिताभ बच्चन ने कहा था कि यह लुक किसी ने डिजाइन नहीं किया था, बल्कि दर्जी की गलती की वजह से यह उन्हें मिला था। अमिताभ की शर्ट की लम्बाई अधिक हो गई थी, जिसकी वजह से उसे कमर पर रोकने के लिए उसमें गांठ लगानी पड़ी थी।

आइए डालते हैं एक नजर इस फिल्म के उन संवादों पर जो आज भी दर्शकों के जेहन में ताजा हैं—

1. जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ पर लिखा—मेरा बाप चोर है।
2. जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरी मां को पत्थर मारा।
3. भाई तुम साइन करोगे या नहीं।
4. वो तेरा क्या लगता था जिसने तेरे हाथ पर लिखा कि तेरा बाप चोर है। कोई नहीं।
5. वो तेरा क्या लगता था जिसने तेरी मां को पत्थर मारा। कोई नहीं।
6. पर तू तू तो मेरा बेटा है।
7. आज मेरे पास गाड़ी है, बंगला, बैंक बैलेंस, नौकर-चाकर हैं मगर तुम्हारे पास क्या है। क्या है तुम्हारे पास।
8. मेरे पास माँ है।
9. आज खुश हो बहुत होंगे तुम. . . .। मंदिर में भगवान शिव को बोलते हुए अमिताभ बच्चन।
10. मैं आज भी फैके हुए पैसे नहीं लेता।

ये कुछ ऐसे संवाद हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता और बोला जाता है।

कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन और शशि कपूर से पहले इस फिल्म के लिए यश चोपड़ा राजेश खन्ना और नवीन निश्चल के साथ वैजयंती माला को लेना चाहते थे। लेकिन इस फिल्म के कथा-पटकथाकार और संवाद लेखक सलीम-जावेद इसमें अमिताभ बच्चन और शुत्रघ्न सिन्हा को चाहते थे। इनका कहना था कि उन्होंने इस फिल्म की पटकथा को इन दोनों सितारों को नजर में रखकर ही लिखा है। शत्रु ने फिल्म में काम करने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि पहले यह राजेश खन्ना को दी गई थी और उनकी उनसे बनती नहीं थी। वैजयंती माला ने इस फिल्म को इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि इसमें से राजेश खन्ना बाहर हो गए थे और नवीन निश्चल ने भी इसीलिए इसे छोड़ दिया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस फिल्म को इसलिए छोड़ा क्योंकि वे अमिताभ के साथ सैकण्ड लीड में नजर नहीं आना चाहते थे। हालांकि इस फिल्म के काफी वर्षों बाद उन्होंने ‘देशप्रेमी’ सैकण्ड लीड रोल अमिताभ के सामने किया था। ऐसा ही शत्रु के साथ हुआ था। बाद के वर्षों में वे अमिताभ के साथ सैकण्ड लीड में ‘दोस्ताना’, ‘नसीब’ और ‘काला पत्थर’ में नजर आए थे। अन्त में इस फिल्म में भाई के रोल में शशि कपूर नजर आए। हालांकि उस वक्त शशि कपूर अमिताभ बच्चन से उम्र में 4 वर्ष बड़े थे, लेकिन उन्होंने छोटे भाई की भूमिका निभाई।