Happy Birthday : जीवंत इतिहास का अहसास कराता - अमिताभ बच्चन

सोनी टीवी पर इन दिनों प्रसारित हो रहे शो 'कौन बनेगा करोड़पति' के 9वें सीजन की मेजबानी करने वाले अमिताभ बच्चन ने आज जिन्दगी के 76वें वसंत में प्रवेश किया है। अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद में विजयादशमी के दिन सुप्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन के घर हुआ था। अमिताभ के पिता ने पहले उनका नाम इंकलाब रखा था, लेकिन कवि सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर उनका नाम अमिताभ रखा गया और उन्होंने सच में अपने नाम को सार्थक कर दिखाया। अमिताभ ने अपनी पढ़ाई नैनीताल के प्रसिद्ध शेरवुड कॉलेज और दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से की।

अभिनय की दुनिया में आने से पहले अमिताभ बच्चन ने कोलकाता की एक फर्म में काम किया। उन्होंने आकाशवाणी के सुप्रसिद्ध कार्यक्रम विविध भारती के लिए अपनी आवाज का टेस्ट दिया था, जहाँ उनकी आवाज को अस्वीकार कर दिया गया था। अमिताभ फिल्मों में काम करना चाहते थे, जिसके चलते उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और मुम्बई आ गए। यहाँ उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। अपने संघर्ष के निराशजनक दौर में उन्होंने एक बार अपने पिता से कहा कि जब आपको पता था कि जिन्दगी में इतना संघर्ष करना पड़ता है तो उन्हें पैदा क्यों किया। अपने पुत्र की निराशा को देखकर पिता हरिवंश राय बच्चन सोच में पड़ गए और उन्होंने रातभर जागते हुए एक कविता लिखी, जिसे उन्होंने अमिताभ बच्चन के तकिये के नीचे रख दिया। सुबह अमिताभ बच्चन ने जब उस कविता को पढा तो उन्हें अपने कथन पर अफसोस हुआ और वे एक बार फिर से मुंबई लौटे। उस एक कविता ने अमिताभ की जिन्दगी का अर्थ और तकदीर बदल दी। आगे जाकर अमिताभ बच्चन ने अपने पिता की उस कविता का उपयोग मुकुल एस. आनन्द निर्देशित फिल्म 'अग्निपथ' में किया। जिसकी अन्तिम पंक्ति ह - अग्निपथ.. अग्निपथ.. अग्निपथ...

वर्ष 1969 में उन्हें ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी' में सातवें हिन्दुस्तानी की भूमिका दी। हालांकि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई करिश्मा नहीं दिखाया। इसके बाद अमिताभ बच्चन ने कुछ और फिल्मों में काम किया। इन फिल्मों में विशेष रूप से उल्लेखनीय रही 'आनन्द', जिसमें उन्होंने पहली बार उस वक्त के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ काम किया था। पूरी तरह से राजेश खन्ना की फिल्म होने के बावजूद इस फिल्म ने अमिताभ को एक मुकाम दिया, जिसकी उन्हें तलाश थी।

वर्ष 1972 में निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा 'जंजीर' बनाने जा रहे थे। प्रकाश मेहरा 'जंजीर' से पहले शशि कपूर को लेकर सुपर हिट फिल्म 'हसीना मान जाएगी' दे चुके थे, उन्हें उम्मीद थी कि उनके साथ कोई न कोई बड़ा सितारा काम करने को राजी हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस फिल्म के लिए उन्होंने राजकुमार, देव आनन्द, धर्मेन्द, राजेन्द्र कुमार इत्यादि सितारों से सम्पर्क किया लेकिन किसी ने भी सलीम जावेद लिखित इस फिल्म में काम करने की स्वीकृति नहीं दी। अन्त में सलीम जावेद ने उन्हें अमिताभ बच्चन को लेने का सुझाव दिया। मन मसोस कर प्रकाश मेहरा ने 'जंजीर' के लिए अमिताभ को साइन किया। इस फिल्म के जरिये दो ऐसे व्यक्तियों का मिलन हुआ जो फिल्म उद्योग में अपना-अपना मुकाम बनाना चाहते थे। 'जंजीर' बनी और प्रदर्शन के बाद इसने एक ऐसे अभिनेता को जन्म दिया जो आगे जाकर फिल्म उद्योग में एक 'मिथक' बन गया। जिस आवाज के लिए कभी आकाशवाणी ने उसे अस्वीकार कर दिया था, वही आवाज 'जंजीर' के बाद सिने उद्योग और दर्शकों के लिए सुबह की पहली 'चाय' बन गई।

वर्ष 1973 से शुरू हुआ सफलता का यह दौर 1984 तक लगातार चला। इस दौरान अमिताभ ने जिस फिल्म में काम किया वह सुपर हिट साबित हुई। अपने समय में अमिताभ फिल्म उद्योग के एक मात्र ऐसे सितारे रहे जिनकी फिल्मों ने लगातार बॉक्स ऑफिस पर 1 करोड से ज्यादा का कारोबार किया था। यह फिल्में थीं - शोले, हेरा फेरी, खून पसीना, मुकद्दर का सिकंदर, नसीब, अमर अकबर एंथोनी, डॉन, लावारिस, याराना, नमक हलाल, कालिया आदि। ऐसा नहीं है कि उन्होंने इस दौर में असफल फिल्में नहीं दी, दी लेकिन उनकी असफल फिल्म भी उन सितारों की सफल फिल्मों से ज्यादा कारोबार करती थी, जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट मानी जाती थी। उदाहरण के तौर पर अमिताभ बच्चन की 'महान' असफल फिल्म थी, जबकि उसी दौर में जितेन्द्र की 'हिम्मतवाला' सुपरहिट फिल्म करार दी गई थी। पाठकों को यह जानकर हैरानी होगी कि अमिताभ की असफल करार दी गई फिल्म 'महान' ने बॉक्स ऑफिस पर 60 लाख का कारोबार किया था, जबकि जितेन्द्र की 'हिम्मतवाला' 45 लाख पर सिमट गई थी। 'महान' इसलिए सफल नहीं थी, क्योंकि उसने बॉक्स ऑफिस पर 1 करोड का कारोबार नहीं किया था। 'महान' में अमिताभ बच्चन ने पहली बार तिहरी भूमिका निभाई थी।

सफलता के इसी दौर में उन्होंने अपने मित्र राजीव गांधी के कहने पर वर्ष 1984 में राजनीति में प्रवेश किया। इलाहाबाद की लोकसभा सीट के लिए उन्होंने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को पराजित किया लेकिन 1986 में बोफोर्स तोप सौदे में अपना नाम आने के बाद उन्होंने राजनीति से हमेशा के लिए संन्यास ले लिया। बोफोर्स तोप सौदे ने उनके फिल्म करियर को बड़ा नुकसान पहुंचाया। इस दौर में उनके परम मित्र मनमोहन देसाई, रमेश सिप्पी और प्रकाश मेहरा ने कुछ फिल्मों - जादूगर, तूफान, शक्ति, अकेला आदि का निर्माण किया लेकिन यह सभी फिल्में असफल रहीं। वर्ष 1986 में प्रदर्शित हुई 'आखिरी रास्ता' उनकी अंतिम सफल फिल्म थी।

इस फिल्म के बाद उन्होंने सिनेमाई परदे से 4 साल के लिए दूरी बना ली। वर्ष 1990 में उन्होंने टीनू आनन्द निर्देशित 'शहंशाह' के जरिये वापसी की। प्रदर्शन पूर्व इस फिल्म का इतना प्रचार किया गया जिसने बच्चे-बच्चे की जुबान से पुन: 'ए' फॉर अमिताभ बच्चन कहलवाया। इस फिल्म का एक संवाद 'रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं, नाम है.....शहंशाह' आज भी दर्शकों की जुबा पर रहता है। राजस्थान में अपने प्रदर्शन के वक्त इस फिल्म ने नया ट्रेंड शुरू किया था। यह प्रदेश के लिए पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे सुबह छह बजे से सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था। साथ ही जयपुर के तीन से ज्यादा छविगृहों में इसे प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म के प्रथम शो के लिए दर्शकों ने सिनेमाघर के बाहर रात्रि 12 बजे से लाइन लगाना शुरू कर दी थी। जयपुर के बंद हो चुके सिनेमाघर 'अंबर' में इसका पहला शो सुबह 6.15 शुरू किया गया था। उस वक्त ब्लैक में इसकी टिकटें 50 से 100 रुपये में बिकी थीं।

अपने सफलतम करियर को देखकर उन्होंने 1995 में 'एबीसीएल' (अमिताभ बच्चन कार्पोरेशन लिमिटेड) नामक फिल्म कंपनी शुरू की। जिसने अपनी पहली फिल्म से फिल्म उद्योग को चंद्रचूड सिंह और अरशद वारसी जैसे सितारे दिए। 1996 में अमिताभ बच्चन ने अपनी कम्पनी के जरिए बंगलौर में 'विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता' का आयोजन करवाया, जिसकी भारत में जबरदस्त आलोचना की गई। इस आलोचना के चलते यह प्रतियोगिता असफल हुई और अमिताभ बच्चन की कम्पनी एबीसीएल करोडों के नुकसान में आ गई। बाजार का पैसा चुकाने के लिए अमिताभ बच्चन ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, यहाँ तक कि उन्होंने अपना बंगला 'जलसा' भी गिरवी रख दिया। आर्थिक मोर्चे पर पूरी तरह से असफल हो चुके अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में पुन: सक्रिय होने का प्रयास किया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। असफलता के इसी दौर में वर्ष 2000 में उनके पास टीवी कार्यक्रम 'कौन बनेगा करोड़पति' का प्रस्ताव आया। काफी जद्दोजहद और पारिवारिक विचार-विमर्श के बाद उन्होंने इस कार्यक्रम को प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। भारत में उन दिनों टीवी चैनल अपने पैर पसार रहा था, ऐसे में अमिताभ बच्चन का टीवी से जुडऩा फिल्म उद्योग के लिए एक करारा झटका था।

'कौन बनेगा करोड़पति' का प्रसारण शुरू हुआ और इस कार्यक्रम को अमिताभ बच्चन ने अपनी धीर गंभीर आवाज और अनोखे प्रस्तुतीकरण से उस वर्ष के सबसे सफलतम कार्यक्रमों में शुमार करवाया। टीवी के जरिये मिली इस सफलता को अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में भुनाया। उन्होंने फिल्मों में फिर से सक्रिय होने के लिए यश चोपडा का दामन थामा जिसके साथ वे दीवार, त्रिशूल, कभी-कभी, सिलसिला में काम कर चुके थे। यश चोपडा ने उन्हें कहा कि मैं तो फिल्म नहीं बना रहा लेकिन मेरा बेटा आदित्य चोपडा जरूर एक फिल्म बना रहा है, जिसमें उसने शाहरुख खान को बतौर नायक लिया है। तुम उससे मिलो हो सकता है उसके पास कोई भूमिका हो जो वह तुम्हें दे सके। आदित्य चोपडा़ ने अमिताभ बच्चन को पहली बार निर्देशित करने का मौका खोना उचित नहीं समझा और उन्होंने उन्हें वो भूमिका दी, जो फिल्म का केन्द्रीय पात्र था। 'मोहब्बतें' प्रदर्शित हुई और इसने सफलता का नया आयाम स्थापित किया। इस फिल्म की सफलता ने अमिताभ बच्चन को ऐसी भूमिकाएँ दिलाने में मदद की जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा तक नहीं था। अब फिल्म लेखक व निर्देशक अमिताभ को केन्द्र में रखकर कथाएँ लिखने लगे। वर्ष 2000 में 'मोहब्बतें' से शुरू हुआ यह सिलसिला इस वर्ष प्रदर्शित हुई 'पिंक' तक लगातार सफलतापूर्वक जारी है। अपने 75 वर्ष पूरे करनेे के बाद भी अमिताभ बच्चन लगातार सक्रिय हैं। वर्तमान समय में उनका शो 'कौन बनेगा करोडपति सीजन-9' सफलता की नई ऊँचाईयाँ प्राप्त कर रहा है। साथ ही वे आने वाले समय में कई फिल्मों में नजर आने वाले हैं जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय आदित्य चोपडा निर्मित और विक्टर निर्देशित 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' है, जिसमें वे पहली बार आमिर खान के साथ काम करने जा रहे हैं। आदित्य चोपड़ा ने अपनी इस महत्त्वाकांक्षी फिल्म की प्रदर्शन तिथि 28 माह पूर्व ही घोषित कर दी। वर्ष 2016 में 'सुल्तान' के 300 करोड कारोबार करने के तुंरत बाद आदित्य ने 2018 दीपावली पर 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' के प्रदर्शन की घोषणा की।

अपनी फिल्मों के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके अमिताभ बच्चन हिन्दी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता रहे हैं जिन्होंने आम फार्मूला फिल्मों के लिए पहली बार राष्ट्रपति फिल्म पुरस्कार प्राप्त किया। मुकुल एस. आनन्द के निर्देशन में बनी फिल्म 'अग्निपथ' पहली ऐसी फार्मूला फिल्म रही जिसके लिए अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ नायक का पुरस्कार प्रदान किया गया। इसके बाद कई और हिन्दी फिल्म सितारों ने अपनी आम फार्मूला फिल्मों के लिए यह पुरस्कार प्राप्त किया है, इनमें एक अदाकार सन्नी देओल भी शामिल हैं जिन्हें 'घायल' के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ था। ऐसा नहीं है कि 'अग्निपथ' से पहले किसी हिन्दी फिल्म अभिनेता को राष्ट्रपति पुरस्कार नहीं मिला, मिला जरूर लेकिन जिन फिल्मों के लिए यह पुरस्कार प्रदान किए गए वे सभी 'ऑफ बीट' फिल्में थी। 'अग्निपथ' पहली मैनस्ट्रीम फिल्म थी।

अमिताभ बच्चन की 75 वर्षीय सफल-असफल जिन्दगी आम पाठकों और दर्शकों के लिए खुली किताब की तरह रही है। उनके बारे में जितना कुछ लिखा जाए उतना कम महसूस होता है। आज 11 अक्टूबर 2017 को अमिताभ अपनी जिन्दगी के 76वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं। हम उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद देने के साथ यह उम्मीद करते हैं कि वे स्वस्थ रहते हुए दर्शकों का इसी प्रकार मनोरंजन करते हुए अपने अभिनय की उन असीमित प्रतिभा का प्रदर्शन करते रहे जिसे उन्हें अभी अपनी आने वाली फिल्मों में दर्शकों को दिखाना है। हालांकि अमिताभ बच्चन इस वर्ष अपना जन्मदिन नहीं मना रहे हैं, क्योंकि इस वर्ष उनके समधि (पुत्रवधू ऐश्वर्या राय बच्चन के पिता) कृष्णराज राय का निधन हुआ है।