गणगौर व्रत दिलाता हैं सुख-सौभाग्य, जानें इसकी पूजन विधि

आप सभी गणगौर व्रत के बारे में तो जानते ही हैं जो कि चैत्र कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता हैं। इस बार यह तृतीया तिथि मार्च 26, 2020 को शाम 07:53 से प्रारंभ हो रही हैं जो कि मार्च 27, 2020 को रात 10:12 तक रहने वाली हैं और गणगौर पूजा शुक्रवार, मार्च 27, 2020 को होनी हैं। खासतौर से राजस्थान में इस व्रत को बड़े स्टार पर मनाया जाता हैं। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं जो कि सुख, सौभाग्य, समृद्धि, संतान, और ऐश्वर्य दिलाने वाला होता हैं। इसलिए आज इस कड़ी में हम आपको गणगौर व्रत की पूजन विधि से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

- चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए।

- इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए।

- इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।

- जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए।

- मां गौरी के सभी रुपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करनी चाहिए।

- इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध पीकर इस व्रत को करना चाहिए। गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं।

- सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है।

- इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है और भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है।

- कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए।

- चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।

- चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।

- इसी दिन शाम को एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें।

- विसर्जन के बाद इसी दिन शाम को उपवास भी खोला जाता है।