आखिर क्यों बनना पड़ा था भगवान शिव को हाथी, शनिदेव के प्रकोप से जुड़ी है कहानी

आज शनिवार हैं और सभी आज के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने में लगे हुए होते हैं ताकि उनका आशीर्वाद पाया जा सकें और उनके प्रकोप से बचा जा सकें। शनिदेव की वक्र दृष्टी किसी भी व्यक्ति के जीवन पर बुरा असर डालती हैं। इंसान तो क्या भगवान भी उनकी वक्र दृष्टि से नहीं बच सकते हैं। जी हाँ, भगवान शिव को भी एक बार शनिदेव की वक्र दृष्टि का शिकार होना पड़ा था और उन्हें हाथी बनना पड़ा था। आज हम आपको शिवपुराण में बताई गई इस कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें भगवान शिव को भी शनिदेव का प्रकोप सहना पड़ा था।

शनि भगवान ग्रह चाल के कारण भगवान शिव पर सवार हुए थे। शनिदेव ने अपने प्रकोप से बचने के लिए भगवान शिव को पहले ही सूचित कर दिया था। वह एक दिन पूर्व ही शिव के पास गए और उन्हें प्रणाम कर क्षमा याचना करते हुए बताया कि कल वह उनके ऊपर सवार होने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उनकी ग्रह चाल के मुताबिक शिव जी की राशि में वह कल प्रवेश करेंगे और उनकी वक्र दृष्टी उन पर होगी। शिव जी को यह बात सुन कर अच्छा नहीं लगा क्योंकि भगवान शिव शनिदेव के गुरु हैं। लेकिन शनिदेव ने अपने कर्म का हवाला दे कर उनसे क्षमा मांग कर चले गए। भगवान शिव ने बस शनिदेव से इतना पूछा कि वक्र दृष्टी कब से होगी तो उन्होंने बताया कि अगले दिन सवा पहर तक रहेगी।

शिव भगवान को लगा कि अगले दिन जब शनि आएंगे तो वह कहीं छुप जाएंगे और वह उनके प्रकोप से बच जाएंगें। इसके लिए उन्होंने छुपने के लिए धरती की ओर मुख कर लिया। धरती पर आ कर भी उन्हें लगा कि शनिदेव उन्हें पहचान लेंगे तो उन्होंने एक हाथी का रूप धारण कर लिया ताकि शनिदेव उन्हें न पहचान सकें और वह उनके प्रकोप से बच जाएंगे। जब पूरा प्रहर बीत गया तब शिव अपने लोक पहुंचे।

शिव जब अपने लोक पहुंचे तो शनि भगवान उनसे फिर मिलने पहुंचे। शिव भगवान ने मुस्कराते हुए शनिदेव का स्वागत किया और कहा कि आज तो हम आपको चकमा दे गए। आपकी वक्र दृष्टी से हम बच निकले। इस पर शनिदेव ने हंसते हुए उन्हें बताया कि पूरे दिन जो आप धरती पर हाथी बन कर विचरण करते रहे वह हमारे ही प्रकोप का असर था। पशु योनि ही में आपको भेजना हमारे प्रकोप का कारण था। भगवान शिव यह सुनकर शून्य भाव में रह गए और शनि वहां से निकल गए।