अधिकमास जारी हैं और इसकी समाप्ति के बाद शारदीय नवरात्रि का आरंभ होगा। मातारानी को समर्पित नवरात्रि के इन नौ दिनों की शुरुआत 17 अक्टूबर को घट स्थापना के साथ हो जाएगी। इस बार कोरोना के चलते मातारानी के बड़े पांडाल या आयोजन संभव नहीं हैं। लेकिन अपने घर में मातारानी के पूजन के उत्साह में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। मां भगवती का आशीर्वाद चाहते हैं तो उनकी प्रतिमा की स्थापना के दौरान दिशा का जरूर ध्यान रखें। आज इस कड़ी में हम आपको वास्तु में बताए गए उन नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं कि किस तरह प्रतिमा स्थापना की सही दिशा तय करें। इस दिशा में रखनी चाहिए देवी भगवती की स्थापना
वास्तुशास्त्र के अनुसार, हर देवी-देवता की प्रिय दिशाएं होती हैं। इसलिए हर देवी या देवता की पूजा भी उसी दिशा में करनी चाहिए। शास्त्रों में यह विस्तार से उल्लेखित है कि किसी देवी या देवता की प्रतिमा किस दिशा में होनी चाहिए और साधक को किस दिशा में मुखकर करके पूजा करनी चाहिए। यह दिशा है देवी भगवती को अत्यंत प्रिय
देवी भगवती की प्रतिमा पश्चिम या उत्तर की ओर मुख कर रखनी चाहिए। ताकि साधक जब उनकी पूजा करें तो उनका मुख दक्षिण दिशा या पूर्व दिशा में हो। यह दो दिशाएं ही देवी को प्रिय मानी गई हैं। पूर्व या दक्षिण दिशा में मुख कर पूजा करने से साधक को भी कई लाभ प्राप्त होते हैं। पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से चेतना जागृत होती है और दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके पूजा करने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। इससे भक्त सीधे तौर पर भगवान से जुड़ जाता है।
प्रतिमा की स्थापना के साथ यह करना है जरूरी
वास्तुशास्त्र के अनुसार, पूजा घर या मंदिर में जहां भी आप प्रतिमा की स्थापना कर रहे हैं। उसके बाहर हल्दी या सिंदूर से स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाएं। इसके अलावा देवी भगवती की प्रतिमा जब भी घर में स्थापित करें तो ध्यान रखें तो वह बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिए। घर में तीन इंच से बड़ी प्रतिमा नहीं रखनी चाहिए। साथ ही प्रतिमा का रंग या पूजा घर का रंग हल्का पीला, हरा या गुलाबी ही रखना चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। साथ ही घर- परिवार के लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।