दिशाओं के ज्ञान को ही वास्तु कहते हैं। यह एक ऐसी पद्धति का नाम है, जिसमें दिशाओं को ध्यान में रखकर भवन निर्माण व उसका इंटीरियर डेकोरेशन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार भवन निर्माण करने पर घर-परिवार में खुशहाली आती है। सुख, समृद्धि,सम्पत्ति, यश प्राप्ति तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए वास्तुशास्त्र के कुछ उपयोगी सूत्र अपनाना आवश्यक हैं । आप भी इन सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन को सुखी एवं सफल बनाइए। अगर आपके घर में गलत दिशा में कोई निर्माण होगा, तो उससे आपके परिवार को किसी न किसी तरह की हानि होगी, ऐसा वास्तु के अनुसार माना जाता है। वास्तु में आठ महत्वपूर्ण दिशाएँ होती हैं, भवन निर्माण करते समय जिन्हें ध्यान में रखना नितांत आवश्यक है। ये दिशाएँ पंचतत्वों की होती हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं इन दिशाओं के महत्व के बारे में।
* पूर्व :इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। गृहस्वामी की लंबी उम्र व संतान सुख के लिए घर के प्रवेश द्वार व खिड़की का इस दिशा में होना शुभ माना जाता है। बच्चों को भी इसी दिशा की ओर मुख करके पढ़ना चाहिए।
* पश्चिम :आपका रसोईघर व टॉयलेट इस दिशा में होना चाहिए।
* उत्तर :इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए।
* दक्षिण :इस दिशा की भूमि पर भार रखने से गृहस्वामी सुखी, समृद्ध व निरोगी होता है। धन को भी इसी दिशा में रखने पर उसमें बढ़ोतरी होती है। दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए।
* उत्तर-पश्चिम : यदि आपके घर में नौकर है तो उसका कमरा भी इसी दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला आदि होना चाहिए।
* दक्षिण-पूर्व :इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि होना चाहिए।
* दक्षिण-पश्चिम :इस दिशा में खुलापन अर्थात खिड़की, दरवाजे बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए। गृहस्वामी का कमरा इस दिशा में होना चाहिए। कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं
* उत्तर-पूर्व :इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल आदि होना चाहिए। घर के मुख्य द्वार का इस दिशा में होना वास्तु की दृष्टि से बेहद शुभ माना जाता है।