श्रावण मास अर्थात भगवान शिव की पूजा-अर्चना और अभिषेक के दिन चल रहे हैं। इन दिनों में सभी भक्तगण भगवान शिव की मन से भक्ति करने में लगे हुए रहते हैं। लेकिन कभी-कभार अनजाने में हुई गलती की वजह से उनकी की गई पूजा का फल उनको नहीं मिल पाता हैं। जी हाँ, ऐसी कई गलतियां हो जाती है जिसका व्यक्ति को ध्यान नहीं रहता हैं। जिसमें से एक है शिवलिंग पर अर्पण किए गए बिल्वपत्र एवं पुष्प का पैरों में आना। जो कि आपको पाप का भागीदार बनाता हैं। तो आइये हम बताते हैं आपको इस गलती को कैसे सुधारा जाए।
अक्सर देखने में आता है कि सही जानकारी के अभाव में श्रद्धालुगण इन निर्माल्य को विसर्जन करते समय किसी नदी तट या ऐसी जगह रख देते हैं, जहां इनका अनादर होता है। हमारे शास्त्रों में किसी भी देवी-देवता के निर्माल्य का अपमान करना घोरतम पाप माना गया है। शिव निर्माल्य को पैर से छू जाने के पाप के प्रायश्चितस्वरूप ही पुष्पदंत नामक गंधर्व ने इस महान पाप के प्रायश्चित हेतु महिम्न स्तोत्र की रचना कर क्षमा-याचना की थी।
अत: इस पवित्र श्रावण मास में श्रद्धालुओं को शिव निर्माल्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। केवल निर्माल्य को किसी नदी तट या बाग-बगीचे में रख देने से अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं समझनी चाहिए। जब तक यह सुनिश्चित न कर लें कि इस स्थान पर निर्माल्य का अनादर नहीं होगा, ऐसे स्थानों पर निर्माल्य न रखें। शिव निर्माल्य के विसर्जन का सर्वाधिक उत्तम प्रकार है कि निर्माल्य को किसी पवित्र स्थान या बगीचे में गड्ढा खोदकर भूमि में दबा देना। वैसे बहते जल में इस निर्माल्य को प्रवाहित किया जा सकता है किंतु उसके लिए यह ध्यान रखें कि नदी का जल प्रदूषित न हो अर्थात निर्माल्य बहुत दिन पुराने न हों। शिव निर्माल्य का अपमान एक महान पाप है अत: इससे बचने के लिए केवल दो ही उपाय हैं- एक तो कम मात्रा में निर्माल्य का सृजन हो और दूसरा निर्माल्य का उत्तम रीति से विसर्जन।