अभी के दिनों मे चारों तरफ सावन के महीने की हरियाली देखी जा रही हैं और इस हरियाली में 'बम-बम भोले' के जयकारे साफ़ सुनाई दे सकते हैं। क्योंकि सावन का महिना अर्थात शिव का महीना और इस पूरे सावन में लोग भगवान शिव की भक्ति करते हैं और उनके दर्शन करने के लिए कई मंदिरों में जाते हैं। ऐसे ही शिव के एक मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो राजस्थान के माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित हैं। इसकी विशेषता यह है कि जहां सभी मंदिरों में भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की जाती है वहीँ इस मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। तो आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
माउंटआबू में अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। दरअसल भगवान शिव के अंगूठे के निशान मंदिर में आज भी देखे जा सकते हैं। इसमें चढ़ाया जानेवाला पानी कहा जाता है यह आज भी एक रहस्य है। माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा गया है और माना जाता है कि यहां भगवान शिव के छोटे-बड़े 108 मंदिर है।
माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर पौराणिक मंदिर है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। इस मंदिर की काफी मान्यता है और माना जाता है कि इस मंदिर में महाशिवरात्रि, सोमवार के दिन, सावन महीने में जो भी भगवान शिव के दरबार में आता है। भगवान शंकर उसकी मुराद पूरी कर देते हैं। इस मंदिर की पौराणिक कहानी है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय नंदी भी थी।लिहाजा पर्वत के साथ नंदी गाय को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी गाय बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया।