कैसे पड़ा इस तीज का नाम कजली तीज, आइये जानें

हिन्दू पंचांग के हिसाब से भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि का दिन कजली तीज के रूप में मनाया जाता है। यह इस साल 29 अगस्त के दिन बुधवार को मनाई जा रही हैं। वैसे तो हिन्दू धर्म में कई तीज हैं जिनका विशेष महत्व हैं। और उन्हीं में से एक हैं ये कजली तीज जिसका शादीशुदा लोगों के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता हैं। एक सुहागन के लिए यह तीज बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन हर पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है और कुंवारी लडकियां अच्छा वर पाने के लिए। आज हम आपको इस कजली तीज से जुडी कहानी बताने जा रहे हैं कि किस तरह इस तीज का नाम कजली तीज पड़ा। तो आइये जानते हैं।

पुराणों के अनुसार मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था। इस जगह का राजा दादुरै था। इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गीत गाते थे जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों और फैले और सब इसे जाने। कुछ समय बाद राजा की म्रत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई। जिससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति-पत्नी के जनम-जनम के साथ के लिए गाये जाने लगे।

इसके अलावा एक और कथा इस तीज से जुडी है। माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रख दी व बोला की अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध कर के दिखाओ। तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया। शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। इसलिए इसे कजरी तीज कहते है। कहते है बड़ी तीज को सभी देवी देवता शिव पार्वती की पूजा करते है।