ऋषि पंचमी को हिन्दू धर्म में बहुत अधिक माना जाता है जिसको करने से सभी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है। ऋषि पंचमी का व्रत करने से दोषों से मुक्त हुआ जा सकता है। जिसके अंतर्गत सात ऋषियों की पूजा की जाती है। यह गणेश चतुर्थी के दुसरे दिन आती है यानि की भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में पंचमी के दिन मनाई जाती है। इस
दिन चाकू से कटा हुआ या हल के नीचे आई हुई चीज़ का सेवन करना वर्जित है।
कौन करें और क्यों करें ये व्रतइस व्रत को पति और पत्नी दोनों को ही
करना होता है। इससे कभी भी उनपर विपत्ति नहीं आती है। पति अगर न भी करे तो
पत्नी को तो जरुर यह व्रत करना चाहिए। ऋषि पंचमी के दिन न तो जमाई
ससुराल जाये और न हीं भाई पानी बहन के घर जाये। ऐसा करने से दोष लगता है और
खास तौर पर तो जमाई को बिलकुल भी नहीं जाना चाहिए। इस व्रत को करने से घर
में सुख समृधि बनी रहती है और किसी चीज़ की कमी नहीं रहती है। आइये जनते है इस व्रत की कहानी और इसका महत्व के बारे में...
कहानी
एक बार संतान प्राप्ति के लिए ब्राह्मण और ब्राह्मणी सप्त ऋषि का व्रत किया करते थे और जब उन्हें संतान के रूप में बेटी की प्राप्ति हुई तो वह उसे भी यह व्रत कराने लग गये। इसके बाद उन्होंने उसकी शादी भी ऐसे आदमी से की जो उनके घर में घर जमाई बनके रहे। दोनों ससुर दामाद एक साथ खेती का काम करने लग गये। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से बोल दिया की तू मेरे लिए खीर लाया कर और जमाई के लिए राबड़ी, ब्राह्मणी भी ऐसा ही करने लगी। जब एक दिन ब्राह्मण को काम की वजह से बाहर जाना पड़ा तो ब्राह्मणी खाना लेकर आई और जमाई से बोली की एक हांड़ी में खाना आपके ससुर का और दूसरी में आपका है। यह सुन जमाई ने सोचा की ऐसा ससुर के लिए क्या लायी है जो ये बात बोलके गयी की यह आपका और यह आपके ससुर का है।
जमाई ने ससुर की हांड़ी खोलकर देखी तो खीर को देख उसका मन ललचाने लगा और उसने खीर खा ली। जब ब्राह्मण आया और उसने पाया की खीर जमाई ने खा ली है तो उसने गुस्से में आकर कुल्हाड़ी से जमाई के सात टुकड़े कर दिए और उन्हें सात अलग जगह पर छिपा दिए। ब्राह्मण की बेटी का पति तीन दिन से घर नहीं आया तो सप्त ऋषियो ने सोचा की इसका व्रत खुलवाना जरूरी है इसके लिए उन्होंने साथ अलग अलग जानवरों का वेश बनाया और उसके टुकडो को ढूढ उसे जीवित किया और उसे बता भी दिया की तुम्हे अपना सास ससुर के साथ नहीं रहना चाहिए और उसने ऐसा ही किया। वह अपने सास ससुर से अलग रहने लग गये। ये सब उसकी पत्नी के व्रत करने के प्रताप से संभव हो सका।
महत्व इस व्रत को पुरे विधि विधान से करने पर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही घर में किसी भी चीज़ की कमी नहीं होती है। इस व्रत में किसी भी तरह का व्यवधान नहीं आने देना चाहिए क्योकि ऐसा करने से दोष लगता है। इस व्रत को करने से सुख समृधि बनी रहती है। इस व्रत को करने से पति की आयु लम्बी होती है।