जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे भगवान महावीर स्वामी जिन्होनें जैन धर्म के अनुयायिओं को जीवन की सच्चाई का बोध कराया। आने वाली 6 अप्रैल को महावीर जयंती का पावन पर्व हैं जो कि जैन समुदाय के लिए एक उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं। जैन समुदाय द्वारा भगवान महावीर की बताई गई बातों का बड़ा महत्व हैं। आज इस कड़ी में हम आपको भगवान महावीर स्वामी के एक ऐसे किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें उन्होनें नरक से बचने का उपाय बताया था। तो आइये जानते हैं इस किस्से के बारे में।
मगध सम्राट श्रोणिक भगवान महावीर का उपासक था। एक दिन जब वह जंगल में शिकार खेल रहा था, उसके हाथों एक हिरन मारा गया। इसके बाद उसे खयाल आया कि इस हिंसा के चलते उसे नरक जाना होगा। वह भगवान के चरणों में आकर बोला, ‘भगवन, क्या हिरन मारने के पाप से बचने का कोई उपाय है, जिससे मुझे नरक में न जाना पड़े?’ इस पर भगवान महावीर ने कहा, ‘श्रोणिक, एक उपाय है। तुम्हारे राज्य में काल सौकरिक नाम का एक कसाई प्रतिदिन पांच सौ पशुओं का वध करता है। यदि तुम केवल एक दिन इन पांच सौ पशुओं को हिंसा से बचा लो तो तुम्हारा नरक जाने का पाप माफ हो सकता है।’
यह सुनकर राजा श्रोणिक बोला, ‘यह काम तो बहुत आसान है। मैं इन पांच सौ पशुओं को मरने से बचा लूंगा।’ राजा ने अपने राज्य के कर्मचारियों को काल सौकरिक के पास भेजा। राज्य के कर्मचारियों ने काल सौकरिक कसाई से बहुत अनुनय-विनय की कि वह इस हिंसा को रोके। उसे धन का लालच भी दिया पर कसाई नहीं माना। इसके बाद राज्य कर्मचारियों ने उसे एक सूखे हुए कुंए में बांधकर उलटा टांग दिया।
महाराजा श्रोणिक अगले दिन भगवान के पास पहुंचे और उनके चरणों में झुकते हुए प्रसन्नतापूर्वक बोले, ‘भगवन, मैंने काल सौकरिक कसाई को एक दिन के लिए पशु वध से रोक दिया है। अब तो मुझे नरक में नहीं जाना पड़ेगा?’ इस पर भगवान महावीर बोले, ‘श्रोणिक राजा, यह तुम्हारी भूल है। उसने उस सूखे कुएं में भी पांच सौ पशुओं के मन में चित्र बनाकर उनको काटा-मारा है। मन से हिंसा की है। हिंसा अंतत: हिंसा ही होती है, चाहे वह असल रूप में हो या विचारों में हो। उसने भाव से हिंसा की है, इसलिए तुम अपना नरक जाना नहीं टाल सकते हो।’