कल आश्विन मास की अमावस्या हैं जिसे सर्वपितृ अमावस्या के तौर पर जाना जाता हैं। इस दिन सभी अपने पितरों की संतृप्ति और उनके आशीर्वाद के लिए श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध के दिन ब्राहमण भोज तो कराया ही जाता हैं लेकिन इसी के साथ ही श्राद्ध में पंचबलि कर्म भी किया जाता है अर्थात पांच जीवों को भोजन कराया जाता हैं। खुद भोजन करने के पूर्व श्राद्धकर्ता को इन सभी के ले भोजन निकाल देना चाहिए। इस कर्म से पितरों को संतृप्ति प्राप्त होती हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
- भोजन पर सबसे पहले अधिकार उस अग्नि पर होता है जिसे उसने पकाया है। जब भी रोटी बनाएं तो पहली रोटी अग्नि की, दूसरी रोटी गाय की और तीसरी रोटी कुत्ते की होती है। पहली रोटी मूल रूप से बहुत ही छोटी बनती है। अंगूठे के प्रथम पोर के आकार की। इस रोटी को अग्नि में होम कर दिया जाता है। अग्नि में होम करते वक्त इसके साथ अन्य जो भी बनाया है उसे भी होम कर दिया जाता है। पांच तरह के यज्ञों में से एक है देवयज्ञ जिसे अग्निहोत्र कर्म भी कहते हैं, यही देवबलि भी है।
- गौबलि अर्थात गाय को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। घर से पश्चिम दिशा में गाय को महुआ या पलाश के पत्तों पर गाय को भोजन कराया जाता है तथा गाय को 'गौभ्यो नम:' कहकर प्रणाम किया जाता है।
- श्वानबलि अर्थात कुत्त को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है।
- काकबलि अर्थात कौए के लिए छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है।
- देवबलि अर्थात पत्ते पर देवी देवतों और पितरों को भोजन परोसा जाता है। बाद में इसे उठाकर घर से बाहर रख दी जाती है।
- पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता। उनके बिल हों, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता है।
- इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है और ब्राह्मण नहीं हो तो ब्राह्मण नहीं हो तो अपने ही रिश्तों के निर्वसनी और शाकाहार लोगों को भोजन कराएं।
- श्राद्ध का भोजन ब्राह्मण भोज के अलावा किसी भूखे या गरीब को भी खिलाना चाहिए। सबसे पहले द्वार आया गरीब या मंदिर के समक्ष बैठे गरीब को यह भोजन खिलाना चाहिए।