Shraddha 2021 : जानें श्राद्ध के प्रकार और इनसे जुड़े नियम, अतृप्त आत्माओं को मिलेगी संतुष्टि

हिन्दू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व माना जाता हैं और पुराणों में भी इसका विवरण मिलता हैं। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की असंतृप्त आत्मा की संतुष्टि के लिए भोग लगाया जाता हैं। जिस तिथि को पूर्वजों की मृत्यु होती हैं उस दिन श्राद्ध किया जाता हैं अन्यथा अमावस्या के दिन भी श्राद्ध किया जा सकता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको श्राद्ध के प्रकार और इनसे जुड़े नियमों की जानकारी देने जा रहे हैं जिसे जानकर विधिपूर्वक संपन्न कराया जा सकता हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

श्राद्ध के प्रकार

- नित्य : प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य-श्राद्ध कहते हैं।
- नैमित्तिक : जो श्राद्ध किसी एक व्यक्ति के निमित्त किया जाता है उसे नैमित्तिक-श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में इसका उल्लेख एकोद्दिष्ट-श्राद्ध के नाम से भी मिलता है।
- काम्य : जो श्राद्ध किसी विशेष आकांक्षा या कामना की पूर्ति हेतु किया जाता है वह काम्य-श्राद्ध कहलाता है।
- वृद्धि-श्राद्ध : किसी मांगलिक अवसर अथवा शुभ अवसर पर किए जाने वाला श्राद्ध वृद्धि-श्राद्ध कहलाता है।
- पार्वणश्राद्ध : अमावस्या, पितृ पक्ष या तिथि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण-श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध माता-पिता दोनों की तीन-तीन पीढ़ियों के व्यक्तियों अथवा निकट के संबंधियों के निमित्त पिंड दान आदि द्वारा किया जाता है।

श्राद्ध में इन नियमों का पालन करना जरूरी

- दूसरे के निवास स्थान या भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण द्वारा पूजा कर्म करवाए जाने चाहिए।
- ब्राह्मण का सत्कार न करने से श्राद्ध कर्म के सम्पूर्ण फल नष्ट हो जाते हैं।
- श्राद्ध में सर्वप्रथम अग्नि को भोग अर्पित किया जाता है, तत्पश्चात हवन करने के बाद पितरों के निमित्त पिंड दान किया जाता है।
- चांडाल और सूअर श्राद्ध के संपर्क में आने पर श्राद्ध का अन्न दूषित हो जाता है।
- रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
- संध्याकाल व पूर्वाह्न काल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए।