शिव सेना अध्यक्ष बाल ठाकरे ने 'गणेश गल्ली चा राजा' को चढ़ाई थी रुद्राक्ष माला

13 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। इस दिन से अगले 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव की विधिवत शुरूआत हो जाएगी। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा जरूर की जाती है क्योंकि उन्हें रिद्धि और सिद्धि का स्वामी माना जाता है और सभी देवताओं में परम पूज्य माने जाते हैं। गणेशोत्सव पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। मुंबई चा राजा अर्थात गणेश गल्ली चा राजा मंडल द्वारा भी गणेशोत्सव का बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता हैं। क्या आप जानते हैं कि शिवसेना अध्यक्ष बाल ठाकरे ने एक बार गणेश गल्ली चा राजा को 1118 पंचमुखी रुद्राक्ष से छड़ी माला चढ़ाई थी।

बता दे, गणेशजी की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती है जिसमें दूर्वा का विशेष महत्व होता है। इसके बिना गणेश जी की पूजा अधूरी समझी जाती है। भगवान गणेश को तो दूर्वा काफी प्रिय होती है, लेकिन तुलसी को इनकी पूजा में नही चढ़ाया जाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य। पुराणों के अनुसार एक असुर रहा करता था जिसका नाम अनलासुर था। जो स्वर्ग से लेकर पृथ्वी तक सभी को परेशान करता था। वह ऋषि-मुनियों, देवताओं और आम लोगों को जिंदा ही खा जाया करता था। तब सभी देवता इस राक्षस के पीछा छुडाने के लिए महादेव के पास कैलाश पर्वत जा पहुंचे। सभी देवी-देवताओं की बात सु्नकर शिवजी ने कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया जिसकी वजह से उनके पेट में जलन होने लगी जो शांत ही नहीं हो पा रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर गणेश जी को खाने के लिए दी। तब जाकर पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। गणेश पूजा में तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाए जाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार एक बार तुलसी गणेश जी को देखकर उन पर मोहित हो कर उनसे विवाह करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन गणेशजी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बात को लेकर तुलसी जी ने उन्हें गुस्से मे दो विवाह करने का श्राप दे दिया । तब गणेशजी ने भी तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह भी एक असुर से होगा। जिसके बाद तुलसी को अपनी गलती का एहसास हुआ और भगवान गणेश जी से माफी मांगी। तब उन्होंने कहा कि तुम कलयुग में मोक्ष देने वाली होगी लेकिन मेरी पूजा में तुम्हे नहीं चढ़ाया जाएगा। फिर तभी से गणेश पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।

क्या आप जानते हैं भगवान गणेश को वैभव और सुख के दाता की शक्तियां कहां से और कैसे प्राप्त हुई आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा।

माता लक्ष्मी की कोई अपनी संतान नहीं थी। इस बात को लेकर एक बार भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को उनके अहम भाव के कारण संतान सुख के अभाव वाली बात पर उन्हें चिंता में डाल दिया। भगवान विष्णु की बात सुनकर लक्ष्मी बहुत चिंतित होकर अपनी बहन पार्वती जी के पास पहुंची और अपनी सारी पीड़ा उन्हें सुनाई। माता लक्ष्मी ने पार्वती जी कहा कि तुम्हारे दो पुत्र है अगर इनमें से एक मुझे दे दो तो मैं भी मातृत्व का सुख प्राप्त कर सकूंगी। माता लक्ष्मी की पीड़ा को समझकर उन्होंने उन्हें भगवान गणेश को गोद दे दिया।

संतान सुख प्राप्त कर माता लक्ष्मी बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने अपनी समस्त सिद्धियां और सुख सम्पत्तियां भगवान गणेश को प्रदान कर दी। इसके अलावा उनका विवाह सिद्धि और रिद्धि कर दिया। तभी से वैभव और सुख की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की पूजा के साथ भगवान गणेश की भी पूजा होने लगी। यही कारण है कि दीवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की भी पूजा जरूर की जाती है।