शीतला अष्टमी 2020 : 16 मार्च को रखा जाएगा व्रत, जानें महत्व और पूजन विधि

हर साल चैत्र माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं। होली के बाद आने वाला यह त्यौंहार इस बार 16 मार्च को मनाया जाना हैं। इस दिन मां शीतला देवी की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता हैं। मान्यता है कि शीतला माता चेचक जैसे रोगों से लोगों की मुक्ति प्रदान करती हैं। इसे पर्व को बसौड़ा, लसौड़ा आदि नामों से भी जाना जाता हैं। विशेषकर राजस्थान में इस दिन बड़े आयोजन किए जाते हैं। आज हम आपको इस दिन के महत्व और पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

मान्यताएं और महत्व

शास्त्रों में बताया गया है कि चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मां शीतला देवी की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।

शीतला अष्टमी पूजन विधि

शीतली अष्टमी का व्रत अन्य दूसरे किसी व्रत या उपवास से एकदम भिन्न होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि पर देवी को भोग लगाने के लिए भोग तैयार किया जाता है। फिर इस बासी भोग को अष्टमी तिथि पर देवी को भोग लगाया जाता है जिसे बसौड़ा कहा जाता है। शीतलाष्टमी पर मां की विधिवत पूजा अर्चना और शीतलाष्टक का पाठ पढ़ा जाता है। पूजा संपन्न होने के बाद घर के सदस्यों और आस-पास लोगों के बीच मां के प्रसाद बसौड़ा का वितरण किया जाता है। मान्यता के अनुसार हर साल जो भी भक्त इस व्रत को रखता है और विधिवत पूजा करता है मां शीतला उसके सभी शीतला जनित दोष को दूर करे उन्हें ज्वर, चेचक, नेत्र विका आदि रोगों से दूर करती हैं।