शरद पूर्णिमा होती है सर्वोपरी, जानें इसकी पूर्ण व्रत विधि

आज शरद पूर्णिमा का त्योहार है जो हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथों में शरद पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा में सर्वोपरी माना जाता हैं। इस दिन से जुडी मान्यता है कि चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उपस्थित होता है जो अपनी विशेष अमृतमयी किरणें देता हैं और बीमारियों को समाप्त करता हैं। इसलिए सभी लोग आज रात को अपने घर की छतों पर खीर बनाकर चन्द्रमा की रौशनी में रखती है और उसका प्रसाद ग्रहण करते हैं। शरद पूर्णिमा के महत्व को देखते हुए इसका व्रत भी रखा जाता हैं। आज हम आपको इसकी पूर्ण व्रत विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।

* इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।

* रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।

* पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।

* पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।