सावन शिवरात्रि के दिन जरूर पढ़ें यह पावन व्रत कथा – हर मनोकामना होगी पूर्ण, मिलेगा शिवलोक का वरदान!

सावन का पावन महीना भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे शुभ माना जाता है, और इस महीने की शिवरात्रि का दिन विशेष फलदायी होता है। आज पूरे भारतवर्ष में सावन शिवरात्रि श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जा रही है। इस दिन भोलेनाथ और मां पार्वती की पूजा कर उनसे वरदान की याचना की जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, जो भक्त विधिपूर्वक व्रत रखते हुए पूजन करते हैं और व्रत कथा का श्रवण या पाठ करते हैं, उनकी हर इच्छा पूर्ण होती है और उन्हें पापों से मुक्ति मिलती है। सावन शिवरात्रि को लेकर मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया था, इसलिए यह दिन विवाह, प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। साथ ही, यह दिन शिवभक्तों को आत्मशुद्धि, संयम और संकल्प का भी संदेश देता है। काशी, उज्जैन, देवघर, केदारनाथ और त्र्यंबकेश्वर जैसे शिवधामों में विशेष पूजा-अनुष्ठान हो रहे हैं। पूरे देशभर में आज जलाभिषेक, रात्रि जागरण, महामृत्युंजय मंत्र जाप, बिल्वपत्र अर्पण और दूध से अभिषेक का अत्यधिक महत्व है।

सावन शिवरात्रि व्रत कथा 2025


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक समय में वाराणसी के जंगल में गुरुद्रुह नामक शिकारी रहता था, जो शिकार करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन उसे शिकार नहीं मिला और इसी तलाश में वह जंगल में भटकते-भटकते झील के पास आ गया। झील के पास एक बिल्व वृक्ष था। गुरुद्रुह शिकार का इंतजार करने के लिए पानी का पात्र भरकर बिल्व वृक्ष पर चढ़ गया। थोड़ी देर बाद एक हिरनी वहां आई, तो गुरुद्रुह ने उसे मारने के लिए अपना धनुष और तीर चढ़ाया। तभी एक बिल्व वृक्ष का पत्ता और जल पेड़ के नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिर पड़ा। ऐसे में गुरुद्रुह से शिवरात्रि के प्रथम प्रहर की पूजा अनजाने में हो गई।

हिरनी ने जब गुरुद्रुह को देखा तो उससे पूछा कि वह उसे क्यों मारना चाहता है। तब गुरुद्रुह ने कहा कि उसे शिकार नहीं मिला, इसलिए मैं तुम्हारा शिकार करूंगा। यह सुन हिरनी ने कहा कि वह अपने बच्चों को अपनी बहन के पास छोड़कर वापस यहीं लौट आएगी। हिरनी की बात मानकर गुरुद्रुह ने हिरनी को छोड़ दिया। इसके बाद हिरनी की बहन वहां आई और फिर गुरुद्रुह ने जैसे ही अपने तीर और धनुष से निशाना लगाया, तो एक और बिल्वपत्र शिवलिंग पर जा गिरा। ऐसे में गुरुद्रुह से अनजाने में दूसरे प्रहर की पूजा हो गई। हिरनी की बहन ने कहा की वह भी अपने बच्चों को कहीं सुरक्षित जगह छोड़कर वापस आएगी और गुरुद्रुह ने उसे भी जाने दिया।

कुछ देर बाद एक हिरन अपनी हिरनी की तलाश में आया और इस बार भी वैसा ही हुआ। फिर गुरुद्रुह से तीसरे प्रहर में अनजाने से शिवलिंग की पूजा हो गई। इस बार भी हिरन ने गुरुद्रुह से वापस आने का वादा किया और शिकारी ने उसे भी जाने दिया। अंत में अपना वादा निभाने के लिए हिरनी और हिरन दोनों गुरुद्रुह के पास आए। गुरुद्रुह को उन्हें देखकर खुशी हुई और जैसै ही उसने अपना धनुष-बाण निकाला तो फिर से बिल्वपत्र और जल शिवलिंग पर गिर गया। ऐसे में उससे अनजाने में चौथे प्रहर की पूजा भी हो गई।

इस प्रकार अनजाने में गुरुद्रुह ने अनजाने में शिवरात्रि की चारों प्रहर की पूजा समाप्त कर ली। ऐसे में शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से उसे सभी पापों से मुक्ति मिली और उसने दोनों हिरनी और हिरन को छोड़ दिया। धार्मिक मान्यता है कि गुरुद्रुह से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद भी दिया।

कथा से मिलने वाले जीवनोपयोगी संदेश


सच्ची भावना से की गई पूजा – चाहे अनजाने में हो या जानबूझकर – भगवान शिव अवश्य स्वीकार करते हैं।

दया और करुणा जैसे गुणों से युक्त मनुष्य को जीवन में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चार प्रहर की पूजा में प्रत्येक चरण का महत्व है – यह शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है।

पूजा विधि (संक्षेप में)

- प्रातः स्नान करके शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, शहद और दही से अभिषेक करें।

- बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, सफेद पुष्प और फल अर्पित करें।

- महामृत्युंजय मंत्र, शिव पंचाक्षरी मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का जाप करें।

- चारों प्रहर में अभिषेक और आरती करें।

- व्रत कथा का पाठ करें और रात्रि जागरण करें।

डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पंचांग आधारित जानकारी पर आधारित है। किसी विशेष निर्णय या अनुष्ठान से पहले योग्य पंडित या ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।