रूप चतुर्दशी व्रत से मिलता है स्वस्थ और रूपवान शरीर, जानें इसकी पूर्ण कथा

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता हैं। माना जाता है कि आज के दिन की गई पूजा और व्रत से स्वस्थ और रूपवान शरीर की प्राप्ति होती हैं। इसलिए अज के दिन व्रत भी किया जाता हैं। दिवाली से एक दिन आने वाले इस त्योहार से जुडी एक कथा भी हैं। आज हम आपको रूप चतुर्दशी व्रत से जुडी इस कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते है इसके बारे मे।

प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे। एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया। अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़। उनकी देह पर कीड़े पड़ गए, बालों, रोओं और भौंहों पर जुएँ पैदा हो गई।अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं।

तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं। योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है।

नारद जी के कथन को सुन, योगीराज उनसे देह आचार के विषय में पूछते हैं इस पर नारदजी उन्हें कहते हैं कि सर्वप्रथम आप कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान की पूजा अराधना करें क्योंकि ऎसा करने से आपका शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। तब आप मेरे द्वारा बताए गए देह आचार को कर सकेंगे। नारद जी के वचन सुन योगीराज ने वैसा ही किया और उस व्रत के फलस्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया। अत: तभी से इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा।