रंग पंचमी 2020 : जानें इसे मनाने का पौराणिक महत्व और परंपरा

हर साल चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का त्यौंहार मनाया जाता हैं जो कि होली के पर्व में ही शामिल हैं। इस साल रंगों का यह पावन पर्व 13 मार्च को होने जा रहा हैं। इस पर्व का पौराणिक रूप से भी बड़ा महत्व माना जाता हैं। आज हम आपको रंग पंचमी के पौराणिक महत्व और परंपरा के बारे में जानकारी लेकर आए हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

रंग पंचमी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह दिन देवताओं को समर्पित होता है। ऐसा कहा जाता है कि रंग पंचमी के दिन रंगों के प्रयोग से सृष्टि में सकारात्मक ऊर्जा का संवहन होता है। इसी सकारात्मक ऊर्जा में लोगों को देवताओं के स्पर्श की अनुभूति होती है। वहीं सामाजिक दृष्टि से इस त्योहार का महत्व है। यह त्योहार प्रेम-सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक है।

महाराष्ट्र में होली के बाद रंग पंचमी खेलने की है परंपरा

महाराष्ट्र में रंग पंचमी का पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें लोग सूखे गुलाल के साथ रंग खेलते हैं। इस दिन विशेष प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और मित्रों और रिश्तेदारों को दावत दी जाती है। नृत्य, गीत और संगीत के साथ यह उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी रंग पंचमी धूमधाम के साथ खेली जाती है।

रंग पंचमी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि त्रेतायुग के प्रारंभ में जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था। धूलि वंदन से आशय ये है कि 'उस युग में श्री विष्णु ने अलग-अलग तेजोमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया। अवतार निर्मित होने पर उसे तेजोमय, अर्थात विविध रंगों की सहायता से दर्शन रूप में वर्णित किया गया है। होली ब्रह्मांड का एक तेजोत्सव है। ब्रह्मांड में अनेक रंग आवश्यकता के अनुसार साकार होते हैं और संबंधित घटक के कार्य के लिए पूरक व पोषक वातावरण की निर्मित करते हैं।