रमज़ान का पाक महीना चल रहा है। अल्लाह की इबादत या ईश्वर की उपासना वैसे तो किसी भी समय की जा सकती है। उसके लिये किसी विशेष दिन की जरुरत नहीं होती लेकिन सभी धर्मों में अपने आराध्य की पूजा उपासना, व्रत उपवास के लिये कुछ विशेष त्यौहार मनाये जाते हैं। ताकि रोजमर्रा के कामों को करते हुए, घर-गृहस्थी में लीन रहते हुए बंदे को याद रहे कि यह जिंदगी उस खुदा की नेमत है, जिसे तू रोजी-रोटी के चक्कर में भुला बैठा है, चल कुछ समय उसकी इबादत के लिये निकाल ले ताकि खुदा का रहम ओ करम तुझ पर बना रहे और आखिर समय तुझे खुदा के फरिश्ते लेने आयें और खुदा तुम्हें जन्नत बख्शें। लेकिन खुदा के करीब होने का रास्ता इतना भी आसान नहीं है खुदा भी बंदों की परीक्षा लेता है। जो उसकी कसौटी पर खरा उतरता है उसे ही खुदा की नेमत नसीब होती है। इसलिये ईस्लाम में खुदा की इबादत के लिये रमज़ान के पाक महीने को महत्व दिया जाता है।
रमज़ान या रमदान एक ऐसा विशेष महीना है जिसमें ईस्लाम में आस्था रखने वाले लोग नियमित रूप से नमाज़ अदा करने के साथ-साथ रोज़े यानि कठोर उपवास (इसमें बारह घंटे तक पानी की एक बूंद तक नहीं लेनी होती) रखे जाते हैं। हालांकि अन्य धर्मों में भी उपवास रखे जाते हैं लेकिन ईस्लाम में रमज़ान के महीने में यह उपवास लगातार तीस दिनों तक चलते हैं। महीने के अंत में चांद के दिदार के साथ ही पारण यानि कि उपवास को खोला जाता है।
हर मुसलमान पूरे 30 दिनों तक भूखा रहता है- इस्लाम धर्म के मुताबिक रमज़ान के महीने को नेकियों, आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना माना जाता है।
- मान्यता है कि इस दौरान रोज़े रख भूखे रहने से दुनियाभर के गरीब लोगों की भूख और दर्द को समझा जाता है। क्योंकि तेज़ी से आगे बढ़ते दौर में लोग नेकी और दूसरों के दुख-दर्द को भूलते जा रहे हैं।
- रमज़ान में इसी दर्द को महसूस किया जाता है। सिर्फ भूखे रहकर दूसरों के दर्द को समझने के अलावा इस महीने के रोज़े को कान, आंख, नाक और जुबान का रोज़ा भी माना जाता है।
- मान्यता है कि रोज़े के दौरान ना बुरा सुना जाता है, ना बुरा देखा जाता है, ना बुरा अहसास किया जाता है और ना ही बुरा बोला जाता है। यह पूरा महीना आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना होता है। इसी वजह से हर मुसलमान रोज़ा रख खुद को बाहरी और अंदरूनी हर तरफ से पाक रखता है। यानी खुद की इच्छाओं पर संयम रख बुरी आदतों को छोड़ने की ओर प्रयास करता है।