भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजली तीज के रूप में मनाया जाता हैं। इस बार यह त्योंहार 29 अगस्त, बुधवार के दिन मनाया जा रहा हैं। इस दिन सभी महिलाऐं और युवतियां अपने जीवनसाथी की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व माना जाता हैं। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं कजरी तीज की पूजा विधि। ताकि आप विधिपूर्वक पूजा कर इस व्रत का उचित फल पा सकें। तो आइये जानते हैं किस तरह करें कजरी कजली तीज की पूजा।
* कजरी कजली तीज की पूजा के लिए सामग्री में कुमकुम, काजल, मेहंदी, मौली, अगरबत्ती, दीपक, माचिस, चावल, कलश, फल, नीम की एक डाली, दूध, ओढ़नी, सत्तू, घी, तीज व्रत कथा बुक, तीज गीत बुक और कुछ सिक्के आदि पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है।
* पहले कुछ रेत जमा करें और उससे एक तालाब बनाये। यह ठीक से बना हुआ होना चाहिए ताकि इसमें डाला गया जल लीक ना हो।
* अब तालाब के किनारे मध्य में नीम की एक डाली को लगा दीजिये, और इसके ऊपर लाल रंग की ओढ़नी डाल दीजिये।
* इसके बाद इसके पास गणेश जी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा विराजमान कीजिये, जैसे की आप सभी जानते हैं इनके बिना कोई भी पूजा नहीं की जा सकती।
* अब कलश के ऊपरी सिरे में मौली बाँध दीजिये और कलश पर स्वास्तिक बना लीजिये। कलश में कुमकुम और चावल के साथ सत्तू और गुड़ भी चढ़ाइए, साथ ही एक सिक्का भी चढ़ा दीजिये।
* इसी तरह गणेश जी और लक्ष्मी जी को भी कुमकुम, चावल, सत्तू, गुड़, सिक्का और फल अर्पित कीजिये।
* इसी तरह तीज पूजा अर्थात नीम की पूजा कीजिये, और सत्तू तीज माता को अर्पित कीजिये। इसके बाद दूध और पानी तालाब में डालिए।
* विवाहित महिलाओं को तालाब के पास कुमकुम, मेंहदी और कजल के सात राउंड डॉट्स देना पड़ता है। साथ ही अविवाहित स्त्रियों को यह 16 बार देना होता है।
* अब व्रत कथा शुरू करने से पहले अगरबत्ती और दीपक जला लीजिये। व्रत कथा को पूरा करने के बाद महिलाओं को तालाब में सभी चीजों जैसे सत्तू, फल, सिक्के और ओढ़नी का प्रतिबिंब देखने की जरूरत होती है, जोकि तीज माता को चढ़ाया गया था। इसके साथ ही वे उस तालाब में दीपक और अपने गहनों का भी प्रतिबिंब देखती हैं।
* व्रत कथा खत्म हो जाने के बाद के कजरी गीत गाती हैं, और सभी माता तीज से प्रार्थना करती है। अब वे खड़े होकर तीज माता के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करती हैं।