शास्त्रों में बताए गए हैं भोजन करने से जुड़े कुछ नियम, इनकी अवेहलना करना पड़ेगा भारी

हिन्दू धर्म में शास्त्रों का बहुत महत्व हैं जिनमें बताई गई बातें व्यक्ति के जीवन के हर पहलू पर असर डालती हैं। शास्त्रों में जीवन से जुड़े हर काम के नियम तय किए गए हैं जिनका अनुसरण किया जाए तो घर में सकारात्मकता बनी रहती हैं और बरकत आती हैं। ऐसे ही कुछ नियम शास्त्रों में भोजन से जुड़े भी बताए गए हैं जिनकी अवेहलना करना आपकी खुशियों पर भारी पड़ सकता हैं। जीवन जीने के लिए भोजन सभी की जरूरत होती हैं लेकिन इससे जुड़े नियम कम ही लोग जानते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको भोजन के नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे आप ना सिर्फ सेहतमंद और दीर्घायु होंगे बल्कि सुखी और समृद्ध भी बनेंगे। तो आइये जानते हैं इन नियमों के बारे में...

ऐसे न करें खाने का अपमान

परोसे हुए अन्न का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए। माना जाता है भोजन मिलना बड़े भाग्य की निशानी होती है। बहुत से लोगों में आदत होती है कि परोसे गए भोजन में कई तरह की गलतियां निकालते हैं, जो की सही नहीं माना जाता। ऐसा करने से देवी अन्नपूर्णा नाराज होती हैं। भोजन के समय सिर पर पगड़ी या टोपी नहीं धारण करना चाहिए। दक्षिण की ओर मुख करके और जूते पहनकर भोजन करना भी अच्छा नहीं माना जाता हैं।

भोजन करते समय मन में न लाएं ऐसे विचार

भोजन करते समय मन में नकारात्मक विचार कभी न लाएं। कुछ लोगों की आजकल आदत हो गई है कि भोजन देखते ही शोर मचाने लगते हैं कि बहुत ऑयली है, मसालेदार है। ऐसा भोजन तो गले से उतरेगा नहीं, इस भोजन को ग्रहण करेंगे तो पचेगा भी नहीं। इस तरह की शंका और विचार मन में कभी भी भोजन करते समय मन में नहीं लाना चाहिए। इससे आप भोजन का पूर्ण आनंद भी ले पाएंगे और सेहत पर भी प्रतिकूल असर भी नहीं होगा।

इस तरह भोजन करना होता है खतरनाक


कई लोगों की ऐसी आदत होती है कि उनसे पास सभी काम के लिए समय होता है लेकिन भोजन के लिए ही समय का अभाव होता है। भोजन हाथों में लेकर घूमते रहेंगे। खाते भी रहेंगे और दुनिया भर की बातों करते भी रहेंगे। कुछ लोग तो भोजन के समय ही पूरी पढ़ाई कर लेना चाहते हैं यानी खाते समय किताब खोलकर बैठे रहेंगे। इन सभी आदतों को शास्त्रों में बहुत ही गलत बताया गया है। इन आदतों से आप बीमार होते हैं और मानसिक एवं आर्थिक परेशानियों का भी जन्म होता है।

ऐसे लोगों के घर कभी न करें भोजन

भोजन को कभी भी स्नान किए बिना, ईश्वर का ध्यान किया बिना और देवताओं को अर्पण किए बिना ग्रहण नहीं करना चाहिए। जो ऐसा करता है उसके लिए गीता में चोर शब्द का प्रयोग किया गया है। ऐसे लोगों को भगवान चोर मानते हैं। गुरु, माता-पिता, अतिथि और अपने लिए काम करने वालों एवं बच्चों को भोजन करने के बाद ही गृह स्वामी को भोजन करना चाहिए। इससे आपका जीवन सुखमय और आनंदित होता है। आपसे स्नेह न रखने वाले, प्रेम न करने वाले व्यक्ति के द्वारा बनाए या परोसे गए भोजन को कभी ग्नहण न करें। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में दुर्योधन के घर भोजन न करके इस बात को समझाया है।

भोजन करते समय दिशा और व्यवहार


भोजन कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके नहीं करना चाहिए। हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन करने से पहले हाथ पैर को धो लेना चाहिए। शास्त्रों का मत है कि गीले पैर भोजन करना चाहिए जबकि गीले पैर बिस्तर पर नहीं जाना चाहिए। उदास मन से और अप्रसन्न होकर भोजन कभी न करें। इन बातों का जो लोग ध्यान रखते हैं वह सुखी और संपन्न रहते हैं।

इस तरह भोजन करने से होते हैं निरोग और धनी


शास्त्रों में बताया गया है कि जमीन पर बैठकर खाने की प्लेट को आसन या चौकी पर रखकर ही भोजन करना चाहिए। साथ ही भोजन हमेशा साफ मन और शरीर के साथ करना चाहिए। भोजन के बाद मन-ही-मन अग्नि का ध्यान करना चाहिए| इस तरह से भोजन करने से आप निरोगी होते हैं और आयु लंबी होती है। देवी अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से धन धान्य में भी वृद्धि होती है।