कल्कि भगवान : एक ऐसे देवता जिनकी जयंती बिना अवतार लिए ही मनाई जाती है

हिन्दू धर्म में हर दिन कोई ना कोई व्रत-त्योहार जरूर आता हैं। और सावन का महीना तो है ही त्योंहारों का महीना। श्रावण शुक्ल छठ अर्थात आज के दिन कल्कि जयंती मनाई जाती हैं और व्रत रखा जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कल्कि जयंती किस उपलक्ष्य में मनाई जाती हैं। पुराणों में अनुसार भगवान कल्कि जो कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार होंगे और जब कलयुग अपने चरम पर होगा तब भगवान विष्णु सावन मास के शुक्ल पक्ष की षष्टि तिथि को कल्कि रूप में पृथ्वी पर अवतरित होंगे। इसी के आधार पर सावन शुक्ल षष्टि को कल्कि जयंती मनाई जाती हैं। आज हम आपको इस कल्कि रूप से जुड़ी शास्त्रों में बताई गई बातों के बारे में बताने जा रहे हैं।

शास्त्रों के अनुसार कलयुग के अंतिम दौर में भगवान विष्णु अपने दसवें अवतार के रूप में कल्कि भगवान का अवतार लेंगे। उनका यह अवतार कलियुग और सतयुग के संधि काल में होगा जो 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार भगवान कल्कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नाम के एक ब्राह्राण परिवार में होगा। भगवान कल्कि सफेद घोड़े पर सवार होकर पापियों का नाश करके फिर से धर्म की रक्षा करेंगे।

इस घटना का जिक्र श्रीमद्गागवत महापुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में कहा गया है जिसके अनुसार गुरु,सूर्य और चन्द्रमा जब एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तो भगवान कल्कि का जन्म होगा।


पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कल्कि का अवतरण कलियुग के अन्तिम समय में होगा। इनके अवतार लेते ही सतयुग का आरम्भ होगा। भगवान कृष्ण के प्रस्थान से कलियुग की शुरूआत हुई थी। नन्द वंश के राज से कलियुग में वृद्धि हुई, वहीं भगवान कल्कि के अवतार से कलियुग का अन्त होगा। कलयुग की अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई है। वर्तमान में कलियुग के 5,119 साल पूरे हो चुके है।